July 27, 2024

चमोली कर्णप्रयाग मा उतर भारत की प्रसिद्ध देवी मां उमा शंकरी की अवतरित गाथा कु पूरु इतिहास-आप भी करा मां उमा शंकरी का दर्शन

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                                किले प्रसिद्ध माँ उमा देवी
दीपक कैन्तुरा( रैबार पहाड़ का)

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प्रसिद्ध देवी मां उमा देवी का मंदिर कर्णप्रयाग चमोली



उमा देवी को जन्म हिमालय का गर्व मा ह्वे । मान्यताओं मा माण्ये जांदू की जब दक्ष प्रजापति का यज्ञ मा सबि राजा महाराजों तें न्यूतू दिये गे पर कैलाशपति बाब क तें ये महा यज्ञ मा नी बुलाये गे तब मां उमा  सी भोलेनाथ कु अपमान नी स्हये गे अर मां उमा दक्ष प्रजापति का 

                   वीडियो मां देखा मां उमा शंकरी की अवतरित गाथा

महायज्ञ मा सती ह्वेगिन  अगला जन्म मा पार्वती का रुप मा अवतरित ह्वेन । जै प्रकार सी एक ही द्यबता का के मंदिर रेंदन पर मां उमा देवी कु उत्तर भारत मा एक ही मंदिर च जु कर्णप्रयाग मा स्थित   च यू मंदिर पिण्डर नदी अर अलकनंदा संगम सी 50 मीटर की ऊंचाई पर स्थित च संगम एक और जख मां उमा देवी कु मंदिर  च वै का ठीक सामणी एक बहुत बडी शिला पर कर्ण मंदिर च।  जैतें कर्ण  शिला भी बोल्ये जांदू । मान्यताओं का हिसाब सी कर्णन यीं शिला पर भैगवान   सूर्य तें खुश रखण क वास्ता तपस्या कैरी थे , कर्णप्रयाग कु प्राचिन नौं स्कंद प्रयाग छाई पर पुराणि मान्यताओं का अनुसार कर्ण का नौं सी अर प्रयाग होण का कारण  स्कंद प्रयाग सी कर्ण  प्रयाग पडी।


मां उमा शंकरी देवी की डोली


श्री नंदा देवी  राजजात यात्रा की तरह मां उमा देवी की डोली 12 बर्ष का बाद मां की डोली साज बांज ढोल दमों भकोरा क दगडी भैर औंदी । अर वै का बाद छ मैना तक जगह जगह घुमिक तें अपणा भक्तों तें दर्शन देंदी जब डोली मंदिर का भैर ओंदी त वै समै पुरी यात्रा कु संचालन कपिरी पट्टी का लोग करदन जो  ससुराल पक्ष का भण्डारी लोग च



मां उमा का मैती लोग डिमरी ब्रहामण च
मां उमा देवी का पुजारी दं भारत का भट्ट लोग च

जब मां की डोली मंदिर का भैर औंदी वै समै चारों तरफ भक्तिमय माहोल ह्वे जांदू वै समै पर सभी भक्त लोग मां उमा की डोली देखण क मां का आर्शीवाद लेणक तें खुश रेंदन सब सी पैलि डोली संगम पर स्नान करदी वैका बाद डोली फिर दुबारा मंदिर मा औंदी वैका बाद छ महिना भ्रमण का वास्ता निकली जांदी या डोली यात्रा कपीरि दशोली चांदपुरी गढी बधाण बद्रीनाथ गोपेश्वर श्रीनगर ह्वेकी वापस मंदिर मां औंदी । देवी की सेवा क तें ऐरवाल ( नृतक होंदन ) जु देवी का दगडा दगडा छ महिना देवी का दगडा नांगा खोटू हिटदन । जों लोगों तें लोग अपनी श्रदा भाव सी लोग युंते चुन्नी चूडी अंगुठी बिन्दियां अर रुप्या भेंट करदन । यों ऐरावालों पर मां उमा की अन्नत कृपा होंदी जब देवी का मंदिर मा प्रवेश ओंदा ही ऐरावला बहुत दुखी ह्वेजांदन अर अपणी झोपडी मां आग लगैक तें नदी मां छलांग लगै द्यदन .स्थानीय भक्तों द्वारा यों द्वि ऐरावालों तें बचाये जांदू । पाणी सी भैर निकालिक तें समझाये जांदू फिर योंकी झोपडी बसायें जांदी ये तरह सी मां उमा की या यात्रा समाप्त व्हेजांदी ।


यूं देवी द्यपतों का थान च यू देवी दयबतों की अपणी अपणी महता च । यख देश विदेशों मा प्रसिद्ध मां नंदा देवी का अलावा चन्द्रबदनी शिला सौड की जगदी मॉ मठियांणा धारी देवी यना कै अनगिनत देवी द्यपता च जौंकू अपणु परचू च यनि आज हम रैबार का माध्यम सी हम आप तक पौछोंणा च प्रचाधारी जसीली देवी उमा देवी कु गाथा कु रैबार आपका मुख सामणी रखणा च उमा देवी कु अवतरित गाथा कु इतिहास, पुरा उत्तर भारत मा एक ही मंदिर च जू आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित च अर कत्यूरी शैलि मा बणियों च  पर्वतराज की पुत्री उमा च हिमा हिमालय का गर्व मा मॉ उमा देवी कु जन्म ह्वे बोल्ये जांदू की जब सती जी दक्ष प्रजापति का यज्ञ मां सती ह्वेन । तब शिव जी न अपणु ताण्डव दिखायें । ये का बाद उमा देवी न पर्वतराज हिमालै का गर्व मा जन्म ले । शुन्या मुन्या का कू शिव मंदिर स्थित च । वै मंदिर मा पर्वत कन्या न ळिव पाणे की कठिन तपस्या करी । पर  उमा की मां मेणावती न बोली उमा बेटी तु यनु नी कैर । आज भी जनजातीय भोटिया लोग  मां शब्द कु प्रयोग एक साक्षय का रुप मा आज भी प्रचलित च । आज भी ना क तें वख मां शब्द कु प्रयोग करये जांदू । लोक गाथाऔं मा यु माण्ये जांदू की मॉ उमा न आकाश मार्ग सी सांकरी सेरा मां आकाश मार्ग सी जन्म लिनी । मान्यताओं का अनुसार माण्ये जांदू की एक दिन मां शंकरी एक बुर्जग डिमरी बामण का स्वीणा मा आइ बोली की में फलाणा फलाणा दिन में  कर्णप्रयाग का फलाणा सेरा मा जन्म लैलू पर एक शर्त च की आपन में पकेण छों अर कै साफ वस्त्र सी डकोणुन । मान्याताओं का अनुसार डिमरी ब्रहामण वै सेरा मा छों । जनि मॉ उमा देवी आकाश मार्ग सी अवतरित व्हे वनि डिमरी ब्रहामण मॉ उमा तें वस्त्र सी डकली पर सहयोगवस मॉ कु एक पैर भैर रेगी जैका वजै सी मॉ उमा कु एक खोटू सुन्न ह्वेगी । आज भी उमा देवी जै मनखि पर प्रकट होंदी त वै समै पर लडखांदी च यु भी वै समै एक साक्षय का रुप मा जीतु जागदू उदाहरण च  । मां उमा देवी कू मंदिर प्राचिन शंकराचार्य जी का प्रथम ज्योतीषमठ बद्रीआश्रम पुर्नस्थापना कैरी । यू मंदिर कत्युरी शैली शिल्प कला सी निर्मित च । उमा देवी तें ऊ डिमरी  ब्रहामण अपणा घर लेकी गै अर अपणी बेटी की चार सेंती पालि तब सी डिमरी लोग मॉ उमा भवानी का मैती माण्ये जांदन अर करपूर पट्टी का कपीरी पट्टी का भण्डारी लोग मॉ उमा का ससुराली माण्ये जांदन । हर 12 साल बाद मां उमा देवी की एक भब्य द्यूला यात्रा होंदी मॉ उमा देवी की यात्रा कु आयोजन ससुराल पक्ष का लोग करदन , वै समै पर एरावाला विशेष नृत्य करदन जख एरावाला देवी यात्रा निकालदिन सबि पुजारी गौं लोग कर्णप्रयाग बटि भट्ट लोग माण्ये जांदू की ऊं दक्षिण भारत बटि यख आंया च । मां  उमा देवी कु पैलि पडाव उमटा गौंमा निकलदन द्वि दिन नागकोट डिमर मा रात मा वखि रुकदन कपीरी क्षेत्र का लोग 6 महिना तक मां उमा देवी पुरा क्षेत्र मां घुमिक तें अपणा दर्शकों तें दर्शन देंदी अपणी छ महिना की यात्री पुरा करणा का बाद मां उमा देवी अपणा थान पर ए जांदि वै समै एक भब्य आयोंजन किये जांदू जै आयोजन मां कै देश विदेश का श्रद्धालू शामिल ह्वेक तें मां उमा देवी का दर्शन करीक तें मन्नत मांगदन । यीं भब्य यात्रा मा सास्कृतिक समाआवेश का दगडी  सनातन  धर्म की संस्कृति दिखेंदी । कर्णप्रयाग कु पैलि कु नौं स्कंद प्रयाग थौ आप तें बथै द्यदन की द्वापर का अंत सी पैली  कर्णप्रयाग तें स्कंद प्रयाग बोलदा था  । द्वापर मा जब महाभारत कु युद्ध ह्वे तब दानवीर कर्णन कर्ण कुण्ड की शिला पर उमा देवी कु यज्ञ कैरी अर वै यज्ञ मा बडा बडा ऋषि मुनी विधवान यख बुलेन । जब पंडित न कर्ण की जन्म पत्री देखी त वै मा सूर्य की स्थापना कैरी । कर्ण प्रयाग कु दुर्गम राक्षस न सतयुग मा सूर्य भगवान की तपस्या कैरी त वैंन सूर्यभगवान सी अमरतत्व कु वर मांगी जब सूर्य भगवान न अमरत्व का बर मागण सी इनकार कैरी तब वैंन सूर्य भगवान सी सहस्त्र कवच मांगी ,  । वै कवच तें स्वी तोडी सकदू थौ जैन सूर्य भगवान की हजार साल तक तपस्या कन  । वै का बाद दुर्गम नामक राक्षस न पाताल लोग मा  तहस नहस मचोण शुरु कैरी सबि देवी द्यपतों तें परेशान करण लेगी तब द्यपतों न सोची की यु त इन्द्र की गदी भी छिनी द्योलू । तब ऊ ब्रहम जी का पास भेजी ब्रहम जीन शिव जी का पास भेजी शिव जीन विष्णु जी का पास भेजी जु यी श्रृष्टी का रचियता च तब नारद मुनि प्रकट ह्वेन तब नारद मुनि न एक जगह बथै बद्री नाथ जख 1दिन की पपस्या कु फल एक हजार वर्ष कु होंदू , जब शिव जीन माता मूर्ती का गर्व मा जन्म लिनी  तब शिव जी तें जगत कल्याण का वास्ता शिव जी तें बद्रीनाथ भेजी जख 1दिन नर तपस्या करदाव एक दिन नारयण तपस्या करदा यनि यनि करदा करदा 999 कवच टूटी गैन तब सहस कवच न बोली की यु क्या ह्वे । सहस कवच सूर्य भगवान का शरणागत मा चलिगिन  त पिछने पिछने नारद मुनि  भागी भागी तें सूर्य भगवान का पास गैन तब सूर्य भगवान न बोली मैरु मुल आदीम च यु मेरी शरणागत मा चयू मिललू तुमतें द्वापर मा मिलला जब नारयण जन्म लेला कृष्ण का रुप मा नर अर्जून का रुप मा अर दुर्गम करण का रुप मा जब कर्ण न जन्म ले त वैका बाद कर्ण न कर्णप्रयाग सूर्य भगवान की उपासना कैरी जु सूर्य भगवान मा गिरवी कवच कुण्डल मिलिन तब सी स्कंद प्रयाग कु नौंउ कर्ण का नों अर प्रयाग होणा का कारण यख कु नौं कर्णप्रयाग  पडी ।
फा- बोल्ये जांदू की जु बद्रीनाथ की यात्रा पर जांदू यदि ऊ मां उमा देवी का दर्शन नी करदू त ऊंकी यात्रा अधुरी रेंदी हम सभि भक्तों तें यु ही रैबार देलू की आप जरुर एक बार मां उमा देवी का दर्शन करला त मां उमा देवी की क्षत्र छाया आप पर बणिकी रोली आप तें उमा देवी कु जस मिललू यीं आशा अर उम्मीद का दगडी नेटवर्क 

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