फाइल फोटो-डॉक्टर देवेश्वर भट्ट, समाजसेवी,सूरत |
देहरादून-मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बीते शनिवार को एक गैर राजनीतिक कार्यक्रम में कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बातें रखीं तो उनकी बातों में लॉकडाउन के चलते उत्तराखंड के प्रवासियों का दर्द भी छलक गया, लेकिन कुछ स्वयंभू दलाल टाइप पत्रकार, छुटभैये नेता, चाटुकार और सोशल मीडिया में अपनी ‘पीत पत्रकारिता’ की अपनी दुकान खोले बैठे कुछ भड़भूजे टाइप मतलबपरस्तों की फौज मुख्यमंत्री की कही बातों को तरोड़ मरोड़ कर अपने हिसाब से पेश करने और उनके दिये गये आंकड़ों का मखौल उड़ाने में जुट गयी।
हद तो तब हो गई जब एक न्यूज पोर्टल के पत्रकार ने खुद की खबर में अपलोड किए वीडियो में मुख्यमंत्री के कहे पांच हजार भावी संक्रमित लोग जिनको कि अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ सकता है को ‘पचास हजार’ बताकर उनका उपहास उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गौरतलब है कि उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की भ्रष्टाचारमुक्त सरकार बनने के साथ ही बहुत से दलाल टाइप लोगों की दुकानें बंद हो गई थीं तो उन्होंने बौखलाकर मुख्यमंत्री बनने के पहले दिन से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।
जबकि उस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा था… ‘हम यह भी जानते हैं कि अभी करीब दो लाख प्रवासी लोगों को उत्तराखंड आना है। उनमें से करीब 25 हजार लोग इनफेक्टेड हो सकते हैं और करीब 5000 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है। उनके लिए अभी से हम तैयारी कर रहे हैं। वह प्रदेश की जनता और सभी प्रवासियों को इस बात से आश्वस्त करना चाहते हैं कि उनकी सेहत और सुरक्षा के लिये मेडिकल सुविधाओं समेत तमाम अन्य सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये उत्तराखंड सरकार पूरी जान झोंक देगी। अभी तक हमारे राज्य में कहीं भी वेंटिलेटर व ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी है, लेकिन हम यह कहना चाहते हैं कि अगर आवश्यकता पड़े तो हम पूरी व्यवस्था के साथ तैयार हैं। हमारे पास सारी व्यवस्थाएं हैं इसी वजह से हमने यह निर्णय लिया है कि हम अपने प्रवासी भाइयों और बहनों को वापस लायेंगे और उसका सारा खर्च हम वहन करेंगे। क्यूँकि हम अपने लोगों को सड़कों पर नहीं छोड़ सकते। मुख्यमंत्री ने कहा था कि लॉकडाउन से लोग काफी प्रभावित हुए हैं। प्रदेश के लोग देश के कोने-कोने में अच्छी नौकरी में है। सबसे ज्यादा प्रभावित हॉस्पीटेलिटी का क्षेत्र हुआ है। उस क्षेत्र में कई लोग ऐसे है जो होटलों में ही रहते हैं, होटलों द्वारा ही उनका खाना हो पाता है, राज्य सरकार उनको दो वक्त का खाना तो मुहैया करा रही है परन्तु वही काफी नहीं होता। उनमें डिप्रेशन बढ़ता जा रहा है, उन्हें घर आने की जल्दी हो रही है। अतः यह डर भी है कि कही कोई गलत कदम न उठाये। इसलिए हमने फैसला लिया है कि हम सबको सतर्कता के साथ एवं मेडिकल शर्तो को पूरा करते हुए उनके घर वापस लायेंगे। प्रवासियों की भारी तादात को देखते हुए हमने बसों की जगह स्पेशल ट्रेनों के माध्यम से प्रवासियों को उत्तराखंड में लाने का फैसला किया और इसके लिए केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल जी से बात की। मुख्यमंत्री ने कहा कि रेल मंत्री ने उनकी मांग को स्वीकार करते हुए ट्रेनों की व्यवस्था करवाई जिसके लिए उत्तराखंड सरकार ने रेल मंत्रालय को एक करोड़ की धनराशि अवमुक्त की। कोरोना महामारी के चलते कई संस्थाए व संगठन बढ़-चढ़कर लोगों की मदद में जुटी है जो सरकार द्वारा किए गए राहत कार्यों में हाथ बढ़ा रही है। सूरत में ऐसी ही प्रवासी उत्तराखंडियों की संस्था के माध्यम से प्रवासी उत्तराखंडियों को घर वापस आने के लिए टिकटों का वितरण किया गया था, लेकिन इसी पत्रकार ने इसकी भी झूठी और बेबुनियाद खबर यह कहकर वाइरल कर दी की ट्रेन में आने वाले सभी १२०० लोगों का खर्चा संस्था के अध्यक्ष डॉ० देवेश्वर भट्ट ने स्वयं वहन किया है और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री झूठी बयानबाज़ी कर रहे है। इस खबर से एक तरफ जहां प्रदेश की जनता आक्रोशित है वहीं दूसरी तरफ डॉ० देवेश्वर भट्ट को भी सफाई देनी पड़ गयी। अपने वीडियो संदेश में उन्होंने मुख्यमंत्री और उनकी सरकार का धन्यवाद करते हुए साफ कहा है कि टिकटों का पूरा खर्चा मुख्यमंत्री जी द्वारा उपलब्ध कराया गया हमने तो इस काम को केवल मैनेज किया है, डॉo भट्ट ने झूठी खबर फैलाने वालों को भी चेतावनी देते हुए साफ़-साफ़ कहा है कि मैंने अपना काम किया है कोई भी झूठी खबर बनाकर और गलत संदेश देकर मेरी छवि को ख़राब करने की कोशिश न करें।
त्रिवेंद्र सरकार के तीन साल के कार्यकाल में उत्तराखण्ड के हर नागरिक को पता है कि सीएम त्रिवेंद्र की छवि साफ सुथरे नेता की है। त्रिवेंद्र हमेशा लीक से हटकर जनहित में फैसले लेते रहे हैं। जीरो टोलरेंस के असर से शासन प्रशासन में दलालों, बिचौलियों, औऱ कुछ ठेकेदार टाइप पत्रकारों का दखल बंद हुआ है। ऐसे लोग परेशान हैं और वे बात बात पर त्रिवेंद्र को बदनाम करने का बहाना ढूंढते हैं। जिनको विज्ञप्ति तक बनाना नहीं आता वो भी सीएम को अपशब्द बोलकर अपने को ‘ज्ञानी’ होने का बखान करते दिख जाते हैं।
उत्तराखंड में आजकल छोटी बड़ी बात के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को गाली देने और मजाक बनाने एक फैशन सा चल चुका है। सोशल मीडिया पर मीम बनने लगते हैं, गालियां दी जाती हैं, सरकार पर सवाल नहीं उठाया जाता बल्कि सीधे मुख्यमंत्री पर प्रहार किया जाता है। यह ट्रेंड केवल इस मुद्दे पर ही नहीं है। पिछले कुछ समय से कुछ स्वयंभू पत्रकार, छुटभैये नेता, चाटुकार और सोशल मीडिया पर भेड़चाल चलने वाली उत्तराखंड के दुश्मनों की फौज एक सोची समझी साजिश के तहत त्रिवेंद्र के खिलाफ एजेंडा चलाती रही है।
जबकि हकीक़त ये है कि त्रिवेंद्र सरकार ने जो भी फैसले लिए वह जनता के हित में लिए, अगर इन फैसलों से जनता को फायदा पहुंचता है तो इसका श्रेय राज्य सरकार को निसंदेह जाना चाहिए, और इसी तरह अगर कोई फैसला उल्टा पड़ता है तो भी विफलता के लिए सरकार ही जिम्मेदार मानी जायेगी। लेकिन सोशल मीडिया के स्वघोषित धुरंधरों को तो जैसे हर बात पर त्रिवेंद्र को गरियाने का बहाना चाहिए। हालांकि उत्तराखंड की जनता पिछले तीन सालों से देवभूमि के इन दुश्मनों की फितरत को जान परख चुकी है लेकिन कई तमाचे खाने के बाद फिर भी ये बेशर्म अपनी करनी से बाज नहीं आ रहे हैं।