नही रहे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भूवैज्ञानिक, लेखक पद्मभूषण प्रोo खड़ग सिंह वल्दिया

नही रहे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भूवैज्ञानिक, लेखक पद्मभूषण प्रोo खड़ग सिंह वल्दिया






(वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार रावत की फेसबुक वॉल से)




अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भूवैज्ञानिक, कुमाऊं यूनिवर्सिटी के पूर्व उप कुलपति, प्रतिष्ठित लेखक तथा विराट हिमालयी व्यक्तित्व के धनी पद्मभूषण प्रोo खड़ग सिंह वल्दिया जी का कुछ समय से स्वास्थ्य खराब होने के कारण आज 83 वर्ष की आयु में बंगलुरू स्थित उनके निवास पर देहावसान हो गया। उनका जन्म 20 मार्च 1937 को रंगून म्यांमार में हुआ था लेकिन वे पिथौरागढ़ उत्तराखंड के मूल निवासी थे। द्वितीय युद्ध के दौरान जब वे केवल 5 वर्ष के थे तब म्यांमार के आसपास कहीं द्युद्ध की बमबारी के दौरान उनकी सुनने की क्षमता कमजोर हो गई थी,जो उसके बाद फिर कभी ठीक नहीं हो पाई।
हिमालयी भूविज्ञान के गहन जानकार होने वाले प्रोफेसर वल्दिया लखनऊ विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बैंगलोर में प्रोफेसर रहने के साथ-साथ कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वे युवा अवस्था में जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय के पोस्ट डॉक्टरल फैलो रहे। कुछ वर्ष पूर्व “पथरीली पगडंडियों पर” नाम से उनकी आत्मकथा भी प्रकाशित हुई। वे बहुत प्रभावी और प्रखर व्याख्याता माने जाते थे। भूविज्ञान जैसे विषय को भी साहित्यिक शैली में समझाने में उन्हें सिद्धहस्त हासिल थी।हिमालय के प्रतिवर्ष औसतन करीब 5 सेमी उत्तर की ओर जाने और 2 सेमी ऊंचाई की ओर निरंतर उठने की महत्वपूर्ण शोध प्रोफेसर वाल्दिया की ही हैं। इसके अलावा उन्होंने कुछ किताबें भी लिखी जिनमें से उनकी दो पुस्तकें “हाई डैम्स इन हिमालय” और “संकट में हिमालय” हिमालय पर लिखी खास पुस्तकें है।
प्रोफेसर वल्दिया को अपनी विशिष्ट सेवाओं हेतु भारत सरकार द्वारा 2007 में पद्मश्री तथा 2015 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। ईश्वर प्रोफेसर वल्दिया जी की पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें तथा शोकाकुल वल्दिया परिवार को इतने बड़े दुःख को सहने की शक्ति दे।