सबि भै-बैण्यूं तै राखुड़ि कु त्येवार की भौत भौत बधै छिन ——
एक कविता ????
—–“राखुड़ि”—-
ऐगि राखुड़ि त्येवार
बिधातो कन अटूट अर
स्वांणु बणांयू
भै-बैण्यूं प्यार ।
द्यो-धियांणि,
दीदी-भुलि,
मैत औली,
भैजी भुलौ,
की हथ्गुळयों
राखी धागु
कन भलु सजोली ।
ये राख्या धागो भी कन
अटूट बन्धन च
भै-बैण्यूं कन स्वांणु अर पवित्र
मन च।
सबि दीदी-भुली ये
त्येवार
हंसी-खुशी मनौंदिन,
दूर धारों कखि गाड़ छाळो
बै ऐ नी सकदि
त!
समौंण भैजदि।
कखि कैकि हाथोंन भेजदि
त कबि चिठ्ठी लिफाफा बणैतै।
ऐगि राखुड़ि त्येवार
बिधातो कन अटूट अर
स्वांणु बणांयू
भै-बैण्यूं प्यार ।
—-कविता कैंतुरा खल्वा लुटियाग चिरबटिया रूद्रप्रयाग बटि ।।।।।