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डॉ नूतन गैरोला देहरादून


प्लीज़ टेक इट सीरियसली कहने का समय है। covid_19 या कोरोना सामान्य फ्लू जैसा नहीं है
हमारी इम्युनिटी के मेमोरी सेल में ये कभी दर्ज नहीं हुए अतः हमारे शरीर के सैनिक यानी रोग निरोधक क्षमता इससे लड़ने के लिए तैयार नहीं और बीमारी शरीर मे पसर कर     श्वसन तंत्र यानी रेस्पिरेट्री सिस्टम पर अपना पहला  आघात करती है और हाइपोक्सिया की स्तिथि बनाती है। साथ ही शुरुआत में मितली, उल्टी या हल्का लूज़ मोशन भी हो सकता है।
बुखार सिरदर्द, मांसपेशियो में दर्द, सूखी खांसी, नाक बहना, दम घुटने, छाती में टाइटनेस,   
बाकी निमोनिया, सेप्सिस,  मल्टीपल ऑर्गेन फेलियर के भी कॉम्प्लिकेशन आ सकते है।

 इम्यूनोकॉम्प्रोमाइसड, डाइबिटीज़, हाई ब्लडप्रेशर, वृद्ध लोगो, क्रोनिक लंग डीज़ीज़ के मरीजों के लिए बीमारी खतरा है।

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मैं भारत की स्तिथि सोचती हूं तो पहाड़ में जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे गांवों में क्षेत्रफल के हिसाब आबादी कम है। हालांकि पहाड़ों के ग्रामीण लोग बहुत मिलनसार होते है। ( मिलनसार बीमारी को ख्याल में रख कर लिखा )पर अगर मैदानी क्षेत्र की बात करूं और मेट्रोपोलिटन शहर की बात करूँ तो हमारी आबादी, भीड़ है।  झुग्गी झोपड़ियां, सलम एरियाज, बहुमंजिली इमारतों, खोली में, सड़कों में लोग खचाखच ही हैं और धार्मिक स्थलों की तो क्या कहने? पैर रखने की जगह भी बमुश्किल होती है। 
ऐसे में कोई भी इनफ़ेक्शन आसानी से फैलता है। चूंकि अन्य किस्म के सर्दी जुखाम फ्ल्यू के लिए शरीर में इम्युनिटी है|  इंफेक्शन के कुछ समय बाद हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काम करना शुरू कर देती है अतः हम उस फ्लू से 3 से 7 दिन में धीरे धीरे खुद ठीक हो जाते हैं या थोड़ा बहुत सिम्प्टोमैटिक ट्रीटमेंट देना होता है और किन्ही केसेज में हमें बचाव prevention के लिए वैक्सीन देनी पड़ती हैं। बस खतरा वहां भी उन लोगो को ही होता है जिनकी इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। जो कोर्टिकोस्टेरॉइड जैसी दवा पर हैं या डाइबिटीज या किसी तरह की मेडिकल कंडीशन में है या इम्युनिटी डेफिशिएंसी में या जिनके फेफड़े पहले से कंप्रोमाइस्ड स्टेट में हैं तो उनकी तकलीफ ज्यादा हो सकती है।

लेकिन कोरोना की चपेट में आने वालों की कोरोना के लिए innate या aquired immunity  नहीं है।इसलिए यही तकलीफें उनके लिए भारी पड़ जाती हैं और  ना ही इसका कोई वैक्सीन बना है न दवा। सिर्फ सिम्प्टोमैटिक ट्रीटमेंट ही दिया जाता है यानी लक्षण और तकलीफ को कम करने की दवा। 
अभी भारत मे 75 कोरोना के केस दर्ज हुए और कलबुर्गी में भी एक बुजुर्ग की मौत भी हुई, जो सऊदी से  लौटे थे, और विश्व मे 125000 केसेज,  लेकिन यह सिर्फ एक आइसबर्ग का टिप है। जो दिख रहा है उससे कई गुना ज्यादा मरीज अभी इनकुबेसन पीरियड में होंगे। जिन्हें देख कर कोई भी नही कह सकता कि ये मरीज है या वे खुद भी स्वस्थ फील कर रहे होंगे क्योंकि इस बीमारी का इन्क्यूबेशन पीरियड भी लंबा है अतः जब तक मरीज बीमार होता है या उसमें लक्षण उत्पन्न होते है तब तक वह कई लोगो को बीमारी फैला चुका होता है, और यह निर्भर करता है कि वो कितने लोगों से मिला, मेलमुलाकात किया किसी बड़े कार्यक्रम, गोष्ठी, जलूस, जलसे आदि में शिरकत की हो तो फिर यह सब को बंट गया समझिये।

यह वायरस मुख्यतः तीन तरह से आदमी से आदमी में फैल रहा है
Air born .. छींक और ड्रॉपलेट के माध्यम से 
Contact..( सबसे मुख्य कारण ) हाथ मिलाने, झप्पी पप्पी , गलबहियां तो है ही इनडायरेक्टली उन सतह से जिन पर रुग्ण मरीज से उत्सर्जित वायरस पड़े हो चाहे वे छीकने से ड्रॉप्लेट के माध्यम या प्रयोग किये टिस्यू पेपर, सीडी के ग्रिल, फोन, पेन, लेपटॉप, बर्तन, मरीज का तौलिया यहां तक कि मास्क के बाहर की सतह आदि को छूने।     या फीको ओरल रुट में संक्रमित मिट्टी पानी से
Faeco Oral Route: मरीज को मितली, उल्टी और लूज़ मोशन की शिकायत भी शुरुआत में हो सकती है और उसके स्टूल /मल के नमूनों में  वायरस पाया गया है। अतः मल या सीवेज के पानी से संक्रमित मिट्टी, पानी फिर सब्जियां, फल इनसे भी यह बीमारी फैल सकती है। उत्तर यही है कि सब्जियों फलों और फिर हाथ को साफ पानी से धोए।

हालांकि एलिज़ाबेथ शेनइडर ( भुक्तभोगी ) कहती है कि उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमण तब हुआ जब वे एक छोटी पारिवारिक पार्टी में थी और किसी को भी छींक खांसी और कोई तकलीफ नहीं थी फिर भी पार्टी में मौजूद 40 प्रतिशत लोग 3 दिन के अंदर इस बीमारी की चपेट में थी। उनका कहना है कि वो हाथ धोने वाली विधि को स्ट्रिक्टली अपना रहीं थी। उनका कहना है कि हाथ धोने वाला प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित नहीं। यह सुरक्षा तभी सम्भव है जब मानव से मानव का सम्पर्क न हो।। और वो संक्रमित व्यक्ति को समय पर आइसोलेशन में चले जाने की सलाह देती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने घर मे ही अपना ट्रीटमेंट लिया एक nasal स्प्रे और स्यूडोइफेड्रिन ली, और नेति पॉट से अंदुरनी नाक की धुलाई करती थी और वे 16 दिन तक ठीक हो गयी।

यह बीमारी पेंडमिक अर्थात वैश्विक स्तर पर महामारी घोषित हो चुकी है अब समय है कि इसे गंभीरता से समझे और खुद भी संक्रमण से बचे और इसकी जागरूकता फैलाये और लोगो को इसके सुरक्षा के तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करें यानी कि संक्रमित होने से बचने और फैलाने के कारक न बनें इसके लिए उन्हें  प्रेरित करें। इसके लिए उन्हें अपने दैनिक व्यवहार में आवश्यकतानुसार फेर बदल करना होगा।

यानी कि फिलहाल आयोजनों मेलमुलाक़तों को तिलांजलि देनी होगी। 

आज कि एक खबर में पढ़ा कि उत्तराखण्ड की सरकार ने स्कूलों को 31 मार्च तक बंद किया है तो यह एक सराहनीय कदम है। सभी सरकारों को और सभी नागरिकों द्वारा उठाया गया सुरक्षात्मक रवैया ही बीमारी को मिटाएगा। अगर हम इसे हल्के में ले रहे है तो हम अपने समाज देश को स्वास्थ के इस खतरे की ओर धकेल रहे है और उसमें हम भी निवाला हो सकते है।   एक बीमार व्यक्ति एक वायरस बम की तरह बन सकता है जो बीमारी के वायरस फैलाने का जरिया होता है और बीमारी की चेन बनाता है कोई भी बीमार न हो। इटली जैसी स्तिथि न आने पाए। 
अतः घुम्मकड़ी और जरूरी कार्यों से भी इधर उधर जाना कम करें। ताकि बीमारी एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में विस्तारित न हो। खुद को घर से बाहर जाने से रेस्ट्रिक्ट करे,    हाथ बार बार धोने की आदत डालें विशेषतया जब घर से बाहर असुरक्षित (बीमारी के लिहाज से) जगह पर मसलन भीड़ वाली जगह रेलवेस्टेशन, बस स्टॉप, अस्पताल आदि  जैसी जगह आप हो तब हाथों में अल्कोहोल युक्त सेनिटाइजर इस्तेमाल करे।
भीड़ वाली जगह मास्क लगा सकते हैं। 
आप अपने आंख नाक, मुंह, चेहरा बिना हाथ धोए न छुए। न ही किसी के भी चेहरे को छुवे।

किसी खांसी के मरीज से सुरक्षातमक लगभग 2 मीटर की दूरी बना कर रखें । 

प्रयोग द्वारा खांसने, छीकने के तरीकों पर भी बहस चल रही है। और कहा जा रहा है कि आप अपने elbow यानी कोहनी के जोड़ से भीतर या अपनी बाहों में कंधे के पास नाक मुंह सटा कर अपनी फूल स्लीव बाह वाली कमीज की बाहों पर छींक सकते हैं। रुमाल से हाथ पर छीकने से ज्यादा सुरक्षित तरीका यही है जिसमें ड्रॉपलेट के जरिये इंफेक्शन का फैलने का खतरा कम है और आपके हाथों से संक्रमण का चांस कम हों जाता है।

 और खुद खांसी होने पर या नाक बहने और बीमार होने  पर पब्लिक प्लेस, मीटिंग, गोष्ठी आदि में न जाएं और अपनों से भी दूरी में रहें। घर मे सबके अलग अलग तोलिये, साबुन व इस्तेमाल की चीज रखिये। एक दूसरे का न इस्तेमाल करें। व बीमार व्यक्ति एक कमरे के भीतर ही खुद को स्थापित करे कोशिश करे कि उसका टॉयलेट अलग हो। साथ तीमारदारी करने वाला व्यक्ति मास्क पहने व जहां तक संभव हो दूरी से बात करें।

यह इंफेक्शन वस्तुवों के माध्यम से भी फैल रहा है। आप स्वस्थ है तो पब्लिक ऑफिस के  फोन, कम्प्यूटर, दरवाजे की हुंडी, सीडी के ग्रिल बालकनी के पेरपेट, पब्लिक कार के हैंडल आदि से फैलने का डर होता है। तो hand wash और नो टच टेक्निक और चेहरे को छूने से बचिए।
 आइसोलेशन और कवारेनताईन इसका फाइनल उत्तर है।  विदेशों से संक्रमित जगहों और सस्पेक्टड व्यक्तियो मिल कर आने वाले लोग खुद से घर मे आइसोलेशन में रहें। इन्क्यूबेशन पीरियड प्लस संक्रामक अवस्था प्लस हवा और सतह पर निहित वायरस की जीवित रहने की क्षमता अगर इतने समय के लिए ह्यूमन से ह्यूमन के कॉन्टेक्ट को बाधित कर दिया जाए या एक विशेष दूरी बना कर ही संपर्क में रहा जाए तो कोरोना मिट सकता है  ( मेरा अपना आंकलन )

हम आजकल गलबहियां, झप्पियां, पप्पीयां लेने देने से बचें।
और एक प्रतिकूल परिस्तिथियो से कारगर तरीके से सामना करने कर लिए तैयार रहें।

यह ध्यान रखिये हेल्थ फैसिलिटी देने वाले भी इंसान हैं और वे भी लगातार कार्य करते हुए संक्रमित होते रहे हैं। चीन का व अन्य स्थानों का उदाहरण लीजिये। तो मरीजों की संख्या की बढ़ोतरी के साथ हेल्थ फैसिलिटी प्रोवाइडर की संख्या कम हो सकती है।  और icu की उपलब्धता भी न हो।  फिर डॉक्टर्स मरीज की उम्र, रिस्क आदि देख कर ही कहेंगे कि इसको एडमिट करो या इसको नहीं और फिर भर्ती होने की जद्दोजहद होगी। 

अतः इसे आगे बढ़ने से रोके। खुद और समाज को सुरक्षित रखें।
कोरोना से डर कर नहीं पुख्ता सावधांनी और समझदारी से निबटा जा सकता है। और इन परिस्तिथियों को पलटा जा सकता है। 

13, मार्च, 2020

डॉ नूतन गैरोला
देहरादून

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