गौरवान्वित ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ से सम्मानित हुई बदरी केदार की बेटियां.बबीता रावत और शशि देवली

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 गौरवान्वित!– ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ से सम्मानित हुई बदरी केदार की बेटियां.


उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली के जन्म दिवस पर शिक्षा, समाज सेवा, खेल समेत विभिन्न क्षेत्रों बेहतर काम करने वाली महिलाओं, किशोरियों एवं आंगनबाडी कार्यकत्रियों को सम्मानित किया गया। अपनें अपनें जनपद मुख्यालयों में हुये वर्चुअल कार्यक्रम में चमोली जनपद की शशि देवली तथा रूद्रप्रयाग जनपद की बबीता रावत को राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दोनों महिलाओं को पुरस्कार धनराशि का चैक, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह भेंट करते हुए सम्मानित किया गया। ये भी एक संयोग ही है कि दोनों जनपद की जिलाधिकारी भी वर्तमान में महिलायें ही हैं जिनके द्वारा अपने अपने जनपदों में इनको सम्मानित किया गया।


प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने तीलू रौतेली पुरस्कार प्राप्त करने वाली सभी महिलाओं एवं अपनी क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वाली आंगनबाडी कार्यकत्रियों को वीसी के माध्यम से संबोधित करते हुए शुभकामनांए दी। उन्होंने अगले वर्ष से राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार की धनराशि 21 हजार से बढाकर 31 हजार तथा आंगनबाडी कार्यकत्री पुरस्कार की धनराशि 10 हजार से बढाकर 21 हजार रुपये करने की घोषणा भी की। राज्य में 21 महिलाओं/किशोरियों को राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार तथा 22 आंगनबाडी कार्यकत्रियों को अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर राज्य स्तरीय आंगनबाडी कार्यकत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


हमारी ओर से भी बदरी केदार की दोनों मात्रृशक्ति को तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित होने पर ढेरों बधाईयाँ। आपने पहाड़ की बेटियों के लिए नये प्रतिमान स्थापित किये हैं, पहाड़ की बेटियों को हौंसला दिया है। बदरी केदार की कृपा आप दोनों पर हमेशा बनी रहें और हर रोज आपको ऐसे ही अनगिनत सम्मान मिलते रहें।


—- ये थी 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली वीरांगना तीलू रौतेली !


उत्तराखंड वीरांगनाओं की प्रसूता भूमि रही है। यहां की वीरांगनाओं ने भी अपने अदम्य शौर्य का परिचय देकर अपना नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है। ऐसी ही एक महान वीरांगना का नाम है तीलू रौतेली। तीलू रौतेली एक ऐसा नाम है जो रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चांदबीबी, जियारानी जैसी पराक्रमी महिलाओं में अपना एक उल्लेखनीय स्थान रखता है। 15 से 20 वर्ष की आयु के बीच सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है। 


— शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवार बाजी में निपुण किया!


चंपावत डिग्री कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक डॉ. प्रशांत जोशी बताते हैं कि तीलू रौतेली का मूल नाम तिलोत्तमा देवी था। इनका जन्म आठ अगस्त 1661 को ग्राम गुराड़, चौंदकोट (पौड़ी गढ़वाल) के भूप सिंह रावत (गोर्ला) और मैणावती रानी के घर में हुआ। तीलू रौतेली ने अपने बचपन का अधिकांश समय बीरोंखाल के कांडा मल्ला गांव में बिताया। भूप सिंह गढ़वाल नरेश फतहशाह के दरबार में सम्मानित थोकदार थे। तीलू के दो भाई भगतु और पत्वा थे। 15 वर्ष की उम्र में ईडा, चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के पुत्र भवानी सिंह के साथ धूमधाम से तीलू की सगाई कर दी गई।


15 वर्ष की होते-होते गुरु शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवार बाजी में निपुण कर दिया था। उस समय गढ़नरेशों और कत्यूरियों में पारस्परिक प्रतिद्वंदिता चल रही थी। कत्यूरी नरेश धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़नरेश मानशाह वहां की रक्षा की जिम्मेदारी भूप सिंह को सौंपकर स्वयं चांदपुर गढ़ी में आ गया। भूप सिंह ने डटकर आक्रमणकारियों का मुकाबला किया परंतु इस युद्ध में वे अपने दोनों बेटों और तीलू के मंगेतर के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए।


‘जा रणभूमि में जा और अपने भाइयों की मौत का बदला ले’


कुछ ही दिनों में कांडा गांव में कौथिग लगा। इन सभी घटनाओं से अंजान तीलू कौथिग में जाने की जिद करने लगी तो मां ने रोते हुये ताना मारा तीलू तू कैसी है रे! तुझे अपने भाइयों की याद नहीं आती। तेरे पिता का प्रतिशोध कौन लेगा रे! जा रणभूमि में जा और अपने भाइयों की मौत का बदला ले। ले सकती है क्या, फिर खेलना कौथिग! मां के मर्माहत वचनों को सुनकर उसने कत्यूरियों से प्रतिशोध लेने तथा खैरागढ़ सहित अपने समीपवर्ती क्षेत्रों को आक्रमणकारियों से मुक्त कराने का प्रण किया।


शस्त्रों से लैस सैनिकों तथा बिंदुली नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्धभूमि के लिए तीलू ने प्रस्थान किया। पुरुष वेश में तीलू ने छापामार युद्ध में सबसे पहले खैरागढ़ को कत्यूरियों से मुक्त कराया। खैरागढ़ से आगे बढ़कर उसने उमटागढ़ी को जीता। इसके पश्चात वह अपने दल-बल के साथ सल्ट महादेव जा पहुंची। तीलू सल्ट को जीत कर भिलंग भौण की तरफ चल पड़ी, परंतु दुर्भाग्य से तीलू की दोनों अंगरक्षक सखियों को इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। कुमाऊं में जहां बेल्लू शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और देवली के शहीद स्थल को देघाट कहते हैं। 


— तीलू ने कत्यूरी योद्धाओं को गाजर-मूली की तरह काट डाला!


सराईखेत के युद्ध में तीलू ने कत्यूरी योद्धाओं को गाजर-मूली की तरह काट डाला और अपने पिता और भाइयों की मौत का बदला लिया। यहीं पर उसकी घोड़ी बिंदुली भी शत्रुओं का शिकार हो गई। वापसी में घर लौटते हुए एक दिन तल्ला कांडा शिविर के निकट पूर्वी नयार नदी तट पर तीलू जलपान  कर रही थी कि तभी शत्रु के एक सैनिक रामू रजवार ने धोखे से तीलू पर तलवार का वार कर दिया।


तीलू के बलिदानी रक्त से नदी का पानी भी लाल हो गया। तीलू की याद में आज भी कांडा ग्राम व बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथिग आयोजित करते हैं। ढोल-दमाऊं तथा निशान के साथ तीलू रौतेली की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।


तीलू रौतेली के पराक्रम की शौर्यगाथा महज पहाड़ तक ही सीमित रह गई है। आवश्यकता है ऐसे महान योद्धा के रण कौशल, समर्पण और देश भक्ति को प्रकाश में लाने की जिससे लोग खासकर महिलाएं उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा पा सकें।

– डॉ. प्रशांत जोशी, प्राध्यापक इतिहास, पीजी कालेज चंपावत


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