बगत द्येखा आज बौड़ी ऐगै -नवोदित कवियत्री कविता कैन्तुरा की कविता आजकी हकीकत पर जरूर सुणियां

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—-बगत—–

युवा कवयित्री कविता कैन्तुरा



बगत द्येखा आज बौड़ी ऐगै 
सालौ बटि छोड़ी घौर कूड़ी
आज  घसै- लिपै ह्वेगी। 


(सुनिए वीडियो में कविता की कविता)

बांजी कूडी़
 बन्द खंद्वारौं
किबाड़ खुली 
 सुन्न छा जु,
गौं-गुठ्यार 
 आज खिलपत ह्वेगिन।


 भौत कुछ बिसरी  छा
रीति-रिवाज घौर-कुड़ी
सब 
बांजा ढोळी 
हम
परदेशो मा बसिगे छा।

उंद जायुं मनखि द्यौखा 
आज बोड़ी औणु
बांजा ढोळी बोंड-वोबरा
 आज कन भली सजणूं

फुंगड्यूं बै हर्ची,
 बेटी ब्वारी 
आज फिर द्येखण लैगी
ब्वे- बाबा कि आंखि  भी 
जग्वाळ मा थकीगी छे 
तौका नौना- ब्वारी भी आज 
घौर बोड़ी ऐगीन।

सालौ  भटक्यू-बिसर्यू  मनखि 
आज बौड़ी औणु 
फुंगड्यूं  कांडा-किरमौड़ काटी 
आज तो पर फिर अन्न उगौणूं। 

सालौ बै छोड़ी फुंगड्यूं तै
आज फिर खुजौणुं
बुरांश काफल, कंडाली चौसू,
खाणौ भारी तरसुणु!
  
वक़्त बौड़ी ऐगी
परदेश की फैडी छट्ट छोड़ी 
सबि गौं की तरफ ऐगिन।


बजारू खाणौ छोड़ी 
कोदू-झंगोरु आज ख्वजोणूं 
 तो बगदा धारा- छोय्या पंदेरूं 
पाणी फिर खूजोण बैठी।

द्यौखा दुं, आज कन समै ऐगी !
छोट्टा- बड़ा आज सबि घौर
बोड़ी ऐगिन।

वक़्त बौड़ी ऐगी
परदेश की फैडी छट्ट छोड़ी 
सबि गौं की तरफ ऐगिन।

—–कविता कैंतुरा खल्वा लुठियाग चिरबटिया —-

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