आज बात एक ऐसे भड़ की…… जिनका टिहरी से लेकर उत्तरकाशी तक साख रही।

(ओम रमोला की कलम से)

![]() |
ठाकुर गजेन्द्र सिंह परमार फाइल फोटो |
वर्तमान में परमार जी की बहू कविता परमार जिला पंचायत उपाध्यक्ष हैं कविता परमार जब चुनाव लड़ रही थी तो मैंने यह सुना है कि उस क्षेत्र के लोगों ने कविता परमार जी को कहा था कि हम आपको नहीं ठाकुर साहब को वोट दे रहे हैं। इस तरह के व्यक्तित्व के धनी ठाकुर साहब को हृदय से सलाम।

हमारे पिताजी श्री भगवान चंद रमोला जी ने हमें ठाकुर साहब का एक किस्सा सुनाया कि यमुना घाटी में जब बस की बॉडी रस्सी के सहारे दूसरी पहाड़ी पर भेजी गई तो बस का जो इंजन था वह अपने पीठ पर लादकर कर ले गए थे ।
81वर्षीय ठाकुर गजेंद्र परमार कोरोना संक्रमण से संसार को विदा कर गए।
अंतिम यात्रा से पूर्व इन्होंने परिवार जनों से यही कहा कि बेटा यह घातक बीमारी है। इससे तभी बचाव किया जा सकता है जब सरकारी निर्देशों का पालन और डॉक्टरों की निगरानी में आप रहेंगे। ठाकुर साहब का भरा-पूरा परिवार है। नाती-पौतों को बच्चे देख कर गए।
कौन थे ठाकुर गजेंद्र परमार
—————————————
टिहरी राजशाही परिवार से तालुक्क मौजूदा सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह के रिश्ते में ससुर थे रानी ठाकुर साहब की बहु हुई।
ठाकुर गजेंद्र परमार के व्यक्तित्व को जानना जरुरी है। वो इसलिए की टिहरी रियासत के दौरान यही ठाकुर परिवार के पास गमरी पट्टी में मालगुजारी का जिम्मा था। ठाकुर गजेंद्र सिंह के पिता का नाम कृपाल सिंह था। गमरी (तत्कालीन समय मे गमरी पट्टी ही अस्तित्व में थी अब गमरी से दिचली पट्टी को स्थापित किया गया है।) पट्टी का राज-काज सब यही परिवार देखता था।
टिहरी पुराना राज दरबार से वर्ष 1940 में ठाकुर जीत सिंह परमार गमरी पट्टी के हडीयाड़ी गांव में विस्थापित हो गए थे। (कुछ वर्षों बाद) कर्मशील स्वभाव के चलते ठाकुर जीत सिंह परमार हडीयाड़ी से नौल्या सौड़(आज दैवीधार के नाम से लिखा-पड़ा जाता है) ठाकुर जीत सिंह इलाके के भड़ (पहलवान) भी थे। खेल प्रेमी भी थे। सभी बच्चों को चुस्त-दुरस्त रहने के मंत्र देते थे। ठाकुर जीत सिंह के पांच बेटे हुए। सबसे बड़े ठाकुर रतन सिंह, दूसरे रेंजर निहाल सिंह(वन विभाग में रेंजर के पद पर नियुक्त) तीसरे कृपाल सिंह,चौथे हुकम सिंह (ये पेशे से अभिसूचना इकाई में निरीक्षक रहे इन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था) पाँचवा रुकम सिंह और सबसे छोटे भाई थे ठाकुर कमल सिंह।
दिवंगत ठाकुर गजेंद्र सिंह कृपाल सिंह के बेटे थे।
ठाकुर कृपाल सिंह का 1981 में 87 वर्ष की उम्र में निधन हुआ था। ठाकुर परिवार के बारे में जानना इसलिए जरूरी है कि उत्तरकाशी के सार्वजनिक विकास में इस परिवार ने अपना योगदान दिया।
संघर्ष आगे ले जाता है यह सच है।
ठाकुर गजेंद्र सिंह इसकी बानगी है। जीवन मे कई उतार चढ़ाव देखने के बाद भी आत्मविश्वास था प्रतिभा थी, लेकिन ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार लंबे-चौड़े कद काठी के थे पहलवान थे लेकिन उतने ही विनम्र भी थे। दो पहिये की बुलेट मोटरसाइकिल उठाना उनका व्यायाम का पार्ट था। शुरुआती दौर इनका बेहद संघर्षों भरा रहा। लोक निर्माण विभाग में चौकीदारी,बेलदारी का काम भी किया।
जंगलात(वन विभाग) की गाड़ियां वर्षों तक चलाईं।
एक दौर था जब वाहन चालक होना किसी राजपत्रित अधिकारी से कम न था। क्षेत्र में मान-सम्मान होता था। इसी कारोबार को जारी रखते हुए ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार ने 1966 में अपर-लोअर सिस्टम की गाड़ी खरीदी जिसकी वाहन संख्या UPS 6481 थी। परिवार जनों को आज भी वाहन संख्या याद है।
दो साल बाद वर्ष 1968 को ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार को बहुत नुकसान हुआ। नौल्यासौड़ (दैवीधार) में मकान(झोपड़ी) आग की चपेट में आने से पशु समेत घर का सामान कुछ न बचा। फिर यहाँ से रेणुबासा आ कर बस गए। रेणुबासा गंगोत्री हाइवे से लगा क्षेत्र है। इस इलाके में रेणुका देवी(राजराजेश्वरी) का वास है। इसलिए ठाकुर परिवार के लिए यह जगह मुफीद थी। यह परिवार रेणुका देवी का उपासक भी है।
70 के दशक में पौड़ी कमिश्नरी हुआ करती थी आज भी है। उत्तरकाशी के लोगों का पौड़ी आना-जाना था। ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार ने उस दौरान उत्तरकाशी से पौड़ी के लिए बस शुरू की। पौड़ी कमिश्नर से परमिट बनवाया। और लोगों को सुविधाएं दी। जिस जमाने वाहन स्वामी इक्के-दुक्के लोग होते थे।1976 में ठाकुर साहब ने फिर नई गाड़ी ली। उत्तरकाशी से आगे गाड़ियां चलने को डीएम परमिशन देता था। इस नई बस को इसी रूट पर लंका- भैरव घाटी तक पहुँचना था। बाकी सर्विस बस तो चलती ही थी।
इस नई बस में चालक ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार और परिचालक इनके छोटे भाई ठाकुर वीरेंद्र सिंह परमार हुआ करते थे।एक दिन का इनका किस्सा बताता हूँ ये दोनों भाई उत्तरकाशी से निकले इनके आगे सर्विस बस थी। सुक्की टॉप के पास सर्विस बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इन दोनों भाईयों को पता लगते ही ये भी बचाने में कूद पड़े लोग चिल्लाए बस के नीचे एक व्यक्ति दबा पड़ा है। इन दोनों भाइयों ने पलटी बस को खड़ा कर दिया और दबे व्यक्ति की जान बचाई। तब से हर्षिल घाटी के लोग भी इनका लोहा मानते थे। क्या समय रहा होगा।
एक बड़ी चीज जिस जमाने लोनिंग की कोई नही जानता था उस जमाने एसबीआई ने इनके व्यवहार और व्यक्तित्व पर इन्हें गाड़ी का लोन दिया। बहुत बड़ी बात थी। इनके राजनैतिक संबंध भी मधुर थे। बर्फियां लाल ज्वांठा इनके परम मित्रों में थे। हर गांव को जोड़ना इनकी प्राथमिकता थी। यह रोजगार भी था और गांव तक सड़क भी पंहुचती। जब उत्तरकाशी जिला अस्तित्व में आया उस वक्त ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार नवगठित जिला इकाई के सदस्य भी रहे। ठाकुर गजेंद्र सिंह की बहादुरी और ईमानदारी के किस्से बहुत हैं। प्लेटफॉर्म छोटा पड़ जायेगा। फिर 1986 से 95 तक डुंडा ग्राम सभा के प्रधान निर्वाचित हुए। उनकी बनाई गई चाल और खाल आज भी जीवित है। ठाकुर साहब क्षेत्र में लोगों की बहुत मदद करते थे। शादी-व्याह हो या सुख-दुःख में। लोग आज भी याद करते हैं। (डुंडा)सिद्ध पीठ रेणुका मंदिर समिति के अध्यक्ष ठाकुर गजेंद्र सिंह परमार का जन सेवा करते जीवन बीत गया। एक और अंतिम बात उत्तरकाशी जिला अस्पताल के निर्माण में ठाकुर गजेंद्र सिंह का बड़ा योगदान रहा। अस्पताल निर्माण में रेत,बजरी,पत्थर इन्ही की देन है। इसी मिट्टी में अंतिम सांस भी ली। ठाकुर गजेंद्र परमार के पांच बेटे हैं। बड़े बेटे लक्ष्मण परमार, कुलवीर परमार दिवंगत हैं। तीसरे महेंद्र पाल परमार,चौथे यजुवेंद्र और छोटे सुरेंद्र परमार है।
श्रद्धांजलि