आज भी सात वर्षों से पथराई नम आंखों से घर की चौखट पर पति मुकेश लाल के घर वापस आने की आश में बैठी है शारदा देवी


- सात वर्ष पूर्व परिवार के भरण-पोषण के लिए महाराष्ट्र के पुना शहर गये थे नोकरी करने अब तक न लौटे
- आवसविहीन शारदा ने दो बच्चों के साथ मजबूरी में देवर के आवास को बनाया है अपना आशियाना
- शारदा देवी ने शासन-प्रशासन से की है अपने लिए आवास हेतू आर्थिक सहायता की मांग
- फाटा में किसी जनशक्ति बैंक में करती थी साफ सफाई का काम कोरोना महामारी के चलते बैंक बंद होने से गई नोकरी
रामरतन सिंह पंवार/जखोली

सरकार द्वारा पहाड़ मे निवास करने वाले गरीब परिवारों को आवास दिलाने की योजना दम तोड़तीं नजर आ रही।आज भी पहाड़ मे कई परिवार ऐसे भी हैं जिनको गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने का लाईसेंस तो दे दिया गया मगर कमजोर सरकारी सिस्टम के चलते उन परिवारों को उनकी परिस्थितियों को देखते हुए आवास जैसे महत्वपूर्ण जरुरत को पूरा नही किया गया जो कि पहाड़ मे आज के आधुनिक युग मे साफ नजर आ रहा है।आलम यह है कि आज भी आवास विहीन परिवारो की तादात सबसे अधिक है।
बता दे कि विकासखंड अगस्यस्तमुनि के अन्तर्गत ग्राम पंचायत फलई तहसील बसुकेदार की रहने वाली पैत्तींस वर्षिय शारदा देवी बताती. है कि मेरे पति आज से सात साल पूर्व अपने परिवार के भरण-पोषण हेतू
अपने गांव फलंई से महाराष्ट्र के पुना शहर मे नौकरी करने निकले थे, लेकिन सात बर्ष बीते जाने के बावजूद जब शारदा देवी के पति मुकेश लाल अपने घर वापस नही आये तो वो निराश हो गयी।आज भी यह असहाय महिला सात साल से लापता पति की घर वापस आने की आश लगाये बैठी है। बता दे कि शारद देबी के दो बच्चे है जिसमें कि 17 साल की एक लड़की व 12 साल का एक बेटा है दोनों भाई-बहिन स्कूल पढने जाते है।हमने शारदा देबी से जब बात-चीत से जानने की कोशिश की की अपने बच्चों का लालन-पालन व पढाई. का खर्च किस तरह उठाते है तो शारदा देबी ने बताया कि पूर्व में मै गुप्तकाशी फाटा मे किसी जनशक्ति नाम के बैंक मे तीन सालो से साफ-सफाई का काम करती थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते बैंक बंद हो गया,जिस कारण से मुझे नौकरी से हटा दिया गया। और मै बेरोजगार हो गयी हूँ तबसे लेकर और आज तक मेहनत-मजदूरी से अपने दोनों बच्चो का किसी तरह भरण पोषण कर रही हूँ।शारदा देबी बताती है कि आज मेरे सामने सबसे बड़ा संकट रोजी-रोटी के साथ-साथ रहने के लिए आवास का भी है, जो मेरे हिस्से का आवास था वो पूर्ण रुप से क्षतिग्रस्त है,जिससे में अपने देवर गीरीश के मकान मे अपने बच्चों के साथ किसी तरह रातें गुजारने को मजबूर हूँ।आखिर इस महगांई के जमाने मे कैसे रुपये-पैसो के में अपने रहने के लिए आवास बना सकती हूँ।मुझे कोई सरकारी सहायता भी आज तक कहीं से प्राप्त नही हुई. है कि मै अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूं।शारदा देबी ने शासन प्रशासन से अपने लिए आवास हेतू आर्थिक सहायता की माँग की है।