अफ्रीका में रहकर भी उत्तराखण्ड के लिए धड़कता नरेन्द्र राणा का दिल…जानिए नरेन्द्र राणा की गांव से लेकर अफ्रीका तक का संघर्ष का सफर

 अफ्रीका में रहकर भी उत्तराखण्ड के लिए धड़कता नरेन्द्र राणा का दिल…जानिए नरेन्द्र राणा की गांव से लेकर अफ्रीका तक का सफर

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(नीलम कैन्तुरा, रैबार पहाड़ का)



  • ·         नाम…… नरेन्द्र सिंह राणा,जन्मतिथी…20 जनवरी 1980…पिता का नाम , स्वर्गीय नाग सिंह राणा

  •    माता .. स्वर्गीय क्वांरी देबी…धर्मपत्नी किरण देवी…भाई…पपेन्द्र सिंह ,जोगेन्द्र सिंह ,बहन.. वंदना देवी ,मंगला देवी, ममता देवी

  •   सात समुद्र पार रहकर भी अपनी बोली भाषा,माटी और जड़ों से जुड़े हुए हैं नरेन्द्र राणा

  •    अफ्रीका में रहकर भी उत्तराखण्ड के लिए उनका दिल धड़कता है
  •        बुरांश ड़ांड़ी कांठी और एन आर फिल्म चैनल के माध्यम से नवोदित जरुरतमंदों को मंच देकर उत्तराखण्ड की बोली भाषा को दे रहे हैं बढ़ावा

  •        2008 से अफ्रिका में अपना व्यापार करके उत्तराखण्ड के कई बेरोजगारों को उपलब्ध करवाया रोजगार

  •     अफ्रीका में लगातार अपने व्यापार का कर रहे विस्तार

  •      जरुरतमंद हुनरबाज प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने में निभा रहे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका

हर व्यक्ति के जीवन में अच्छा और बुरा वक्त आता है। लेकिन सफलता उन्हीं के कदम को चूमती जो बुरे वक्त को भी अपनी मेहनत और लगन से अच्छे वक्त में बदलने का मादा रखते हैं। ऐसा कुछ कर दिखाया  हड़ियाणा के नरेन्द्र राणा ने …जनपद टिहरी गढ़वाल के घनसाली ब्लॉक के हिन्दाव पट्टी के ग्राम हडियाणा(मल्ला) क्वन्क्यासौड़ में मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ..और घर की जीविका पिता पर ही निर्भर थी।और उनके पिता अपनी दुकान में कठिन परिश्रम करके परिवार का भरण-पोषण करते थे। पिता से प्रेरित होकर नरेंद्र सिंह राणा ने भी कुछ करने की मन में ठानी उन्होंने अपनी प्राथमिकता शिक्षा कठूड़ हिंदाव में स्थित एक विद्यालय से पूरी की।और उनको पढाई के लिए एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता था। दसवीं की पढ़ाई समाप्त करके नरेंद्र सिंह राणा रोजगार के लिए गाँव से दूर हरियाणा चले गए।

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  जहां  नरेंद्र सिंह राणा प्राइवेट कंपनी में काम करने लगे। उस समय वह मात्र 1 हजार से 1200 रुपए तनख्वाह लेते थे। वहाँ उन्होंने तीन साल काम किया। और  अपने काम को  बड़ी मेहनत और लगन से किया  सन 1999 में उनके पिता नाह सिंह राणा का साया उनके परिवार के सर से उठग या । जिस कारण उन्हें अपनी नोकरी  छोड़कर वापस अपने गाँव लौटना पड़ा और एक साल  तक अपने पिता की दुकान को संभालना पड़ा,।लेकिन दुकान में ठीक ढ़ंग से गुजर –बसर न होंने के कारण उन्होंने गांव से बाहर जाने की ठानी और वह नोकरी करने के लिए मुंबई चले गए । और उनको एक होटल में जॉब भी मिल गई जहां उन्होंने अपने करियर की शुरुवात बर्तन धुलने से की थी। होटल गोल्ड़न क्रोन में उन्होंने डेढ़ साल तक काम किया। उसके बाद में मुंबई में होटल सितारा में तंदूर कुक का काम किया। उसके बाद उन्होंने मुंबई के एक पाँच सितारा होटल आईटीसी ग्रैंड मराठा, अंधेरी में काम किया।  बाद में  उन्होंने बाँसूरी और आईबीवाय होटल में काम किया। उस दौरान उनकी मुलाकात शैलेष रावल से हुई और बातचीत के दौरान शैलेष रावल ने उन्हें अफ्रीका आने का प्रस्ताव दिया। लेकिन नरेंद्र सिंह राणा का विचार न्यूजीलैंड जाने का था। लेकिन पारिवारिक परिस्थितयों के कारण वह न्यूजीलैंड नहीं जा सके। उसका कारण यह था कि परिवार वाले उनका विवाह 23 वर्ष की उम्र में ही करवाना चाहते थे, जो कि नरेंद्र सिंह राणा को नहीं भाया और उन्होंने शैलेश  द्वारा दिया गया प्रस्ताव स्वीकार कर अफ्रीका जाने का फैसला लिया। अफ्रीका आने से पहले उनकी सगाई बुढना घूराण गांव की किरन देवी से हुई। और किरन देवी से शादी होने के बाद नरेन्द्र राणा के जीवन में एक नई किरन दिखने लगी । और 2008 में नरेन्द्र राणा 2008 में शैलेश रावल के साथ बिजनैस पार्टनर बन गए। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नही देखा और लगातार अपने दम पर अपने व्यापार का लगातार विस्तार करते गए। जैसे कोल्डस्टोर,सुपरमार्केट, और गाडियों के विजनेस के साथ( एनआर) क्लब स्थापित करके अपने क्षेत्र से कई बेरोजगार युवकों को अपने साथ रोजगार दिया। नरेन्द्र राणा भले आज सात समुद्र पार हो लेकिन उनको आज भी अपनी माटी थाती और बोली भाषा से बेहद लगाव है। और हमेशा उन्होंने अपनी माटी और संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसका सफल परिणाम है कि उन्होंने उत्तराखण्ड के युवा गायक गायकों को और कलाकारों को मंच प्रदान करने के लिए उन्होने 2018 में बूरांश डांड़ी कांठी और 2020 में एन आर आई फिल्म की स्थापना करके उत्तराखण्ड के कलाकारों को मंच प्रदान किया। नरेन्द्र राणा अपनी मेहनत लगन और दूरगामी सोच से लगातार बुलंदियों को छु रहे हैं।

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