लोरी के बहाने: गोपाल बाबू गोस्वामी और नरेन्द्र सिंह नेगी जी-प्रसिद्ध लेखक शूरवीर सिंह रावत की कलम से

 लोरी के बहाने: गोपाल बाबू गोस्वामी और नरेन्द्र सिंह नेगी जी

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(लेखक शूरवीर सिंह रावत देहरादून)



बचपन में माँ, दादी-नानी से सुने गीतों(लोरियों) की कुछ अस्पष्ठ पंक्तियां आज भी दिल की अतल गहराइयों में तैर रही है। आगे चलकर रेडियो और फिल्मी पर्दे पर गाई गई लोरियों के प्रति आकर्षण बढ़ा, संगीत और मधुर स्वर से सजी वे दिल को छू जाती। कुछ लोरियों के आज भी मुखड़े ही नहीं दो चार पंक्तियां भी याद है;


यशोदा का नन्द लाला, बृज का उजाला है…, मेरा चन्दा है तू मेरा सूरज है तू…., आजा निन्दिया आजा नैनन बीच समा जा…., राम करे ऐसा हो जाये मैं जागूं तू सो जाये…., चन्दा ओ चन्दा किसने चुराई तेरी….. आदि आदि।


उत्तराखण्ड के दो महान सितारे गोपाल बाबू गोस्वामी और नरेन्द्र सिंह नेगी ने गीत, संगीत व गायन की दुनिया में नये आयाम स्थापित किये हैं। उत्तराखण्डी समाज में कोई विरला ही होगा जिन्हें इनके गीत उद्वेलित और आलोड़ित नहीं करते होंगे। दोनों महान विभूतियों की दो पृथक लोरियां भी अपने समय, समाज और परिवेश को अभिव्यक्त करती है। शब्दरूप में ये लोरियां प्रभाव छोड़ने में भले ही असफल हों किन्तु जब दर्द भरी लरजती आवाज में इन लोरियों को सुनें तो मन भावुकता के गहरे समुन्दर में गोते लगाने लगता है और आँखों में बादल उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं।

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गोपाल बाबू गोस्वामी – नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे….. 


(जंगल गई माँ के देर शाम तक न लौटने पर भूख से व्याकुल दूध पीते बच्चे को छाती से लगाकर उसका पिता बच्चे को लोरी गाते हुए चुप कराने का प्रयास करता है। वास्तविकता में वह अपने को भी दिलासा देता सा प्रतीत होता है।)


नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे हो हीरू घर ऐजा वै, 

घाम ओछैगौ पड़ी रुमुकी हो सुवा घर ऐजा वै। 

नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे…..।


चुप्प चुपै जा मेरी लाड़ली, झिट्ट घड़ी में आली इजुली,

मेरी पोथिली दूध पिवाली हो हीरू घर ऐजा वै। 

नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे…..।


बण घस्यारी घर ऐ गई मेरी सुवा जाणी कां रै गई,

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चुप्प चुपै जा मेरी लाड़ली, तेरी इजू घर ऐ जाली। 

नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे…..।


उडै़ने तारा चाड़ पोथीला डायी बोट्यूं में बै गैई घोल,

आज ले किलै नि आई इजू ओ सुवा घर ऐजा वै। 

नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे…..।


उखौउ कुटी पाणी लै गई, चेली बेटीआ बौड़ी बि राई,

मेरी सुवा तु किलै नि आई, मन बेचैन म्यरू हैगो वे 

हो हीरू घर ऐजा वे। नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे…..।


बाटा-घाटा में जाणि कां होली, मेरी रूपसी मेरी घस्यारी,

नानि भाउ कै कसि चुपौनू, हे भगवान के धन कौंनू, 

चेलि लछिमा भूख लागिगे हो हीरू घर ऐजा वे। 

नानि-भौ भुखै डाड़ मारी वे…..।


नरेन्द्र सिंह नेगी – हे मेरी आंख्यूंका रतन…… 


(दूधपीते बच्चे का सुबह जल्दी उठ जाने पर अकेली माँ घर में बिखरे काम को न समेट पा सकने से खीझ उठती है और बच्चे को सुलाने के बहाने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए एक पूरा खाका ही खींच देती है।)

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हे मेरी आंख्यूंका रतन बाळा स्ये जादी,

दूधभाति द्योलु त्वेथैन बाळा स्ये जादी। 

हे मेरी आंख्यूंका रतन…..।


मेरी औंखुड़ि-पौंखुड़ि छई तू मेरी स्याणी छै गाणी,

मेरी जिकुड़ि-बुकुड़ि ह्वेल्यू रे स्येजा बोल्यूं माणी,

ना हो जिदेरू न हो बाबु जन बाळा स्ये जादी। 

हे मेरी आंख्यूंका रतन…..।


तेरी गुन्दक्याळी हात्यूंकि मुठ्यूंमां मेरा सुखि दिन बुज्यांन,

तेरी टुरपुरि तौं बाळी आंख्यूंमा मेरा सुपिन्या लुक्यांन,

मेरी आस सांस त्वेमा हि छन बाळा स्ये जादी। 

हे मेरी आंख्यूंका रतन…..।


हे पापी निन्दरा तु कख स्येईं रैगे आज,

मेरि भांडि-कुंडी सुंचिणी रैग्येनी घर-बणो काम-काज,

कबतैं छंट्योलु क्य कन्न क्य ब्वन्न बाळा स्ये जादी। 

हे मेरी आंख्यूंका रतन…..।


घतसारि सारिकि पाणी ल्हैगेनी पंदेरों बटी पंदेनी,

बणु पैटि ग्येनि मेरि धौड़्या-दगड़्या लखड़्वैनी-घसेनी,

क्या करू क्या नि करू जतन बाळा स्ये जादी। 

हे मेरी आंख्यूंका रतन…..।


घरबौड़ु नि ह्वायु जु गै छौ झुरैकी मेरी जिकुड़ी,

बिसरी जांदू वीं खैरी बिपदा हेरीकी तेरी मुखड़ी,

समळौ ना वो बत्थ वो दिन बाळा स्ये जादी। 

हे मेरी आंख्यूंका रतन…..।

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