उत्तराखंड के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और पत्रकार उमेश कुमार केस में अब बड़ा मोड़ आ गया है. दरअसल, उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी उस अर्जी को वापस लेने का आग्रह किया है, जिसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच के नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. जिसके चलते राज्य आंदोलनकारी भावना पांडेय ने आत्मदाह करने की कोशिश की जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है. बता दें कि उस समय की तत्कालीन सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

उतराखंड सरकार की ओर से दर्ज की गई याचिका में कहा गया कि उनकी तरफ से राज्य सरकार के आधार पर जो सीबीआई जांच के नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, उस अपील को वापस लेने का कोर्ट से आग्रह है.

दरअसल उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अक्टूबर 2020 में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ गंभीर आरोपों को देखते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. हाई कोर्ट ने यह आदेश पत्रकार उमेश शर्मा व अन्य के खिलाफ राजद्रोह मामले में सुनवाई के बाद दिया था और पत्रकार के खिलाफ चल रहे राजद्रोह के मामले को रद्द कर दिया था.

आपको बता दें कि पत्रकार उमेश कुमार ने फेसबुक पोस्ट लिखकर मुख्यमंत्री पर आरोप लगाए थे कि झारखंड में प्रभारी रहने के दौरान उन्होंने पैसे लिए हैं. इस पर अमृतेश चौहान ने पत्रकार उमेश शर्मा व अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. जबकि एफआईआर को निरस्त करने पत्रकारों ने हाई कोर्ट की शरण ली थी और कोर्ट ने एफआईआर को निरस्त कर सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.
जानें, क्या है पूरा मामला
दरअसल, सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने 31 जुलाई, 2020 को देहरादून थाने में उमेश शर्मा के खिलाफ ब्लैकमेलिंग करने सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था. मुकदमे के अनुसार, उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया में खबर चलाई थी की प्रो. हरेंद्र सिंह रावत व उनकी पत्नी डॉ. सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड से अमृतेश चौहान ने पैसे जमा किये और यह पैसे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को देने को कहा था. इसमें डॉ. सविता रावत को मुख्यमंत्री की पत्नी की सगी बहन बताया गया है. पत्रकार उमेश कुमार ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के ‘गौ सेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह घूस ली थी.
वहीं, प्रो. हरेंद्र सिंह रावत ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि ये सभी तथ्य असत्य हैं और उमेश शर्मा ने बैंक के कागजात कूटरचित तरीके से बनाये हैं. उसने उनके बैंक खातों की सूचना गैर कानूनी तरीके से प्राप्त की है. इस बीच सरकार ने आरोपी के खिलाफ गैंगस्टर भी लगा दी थी.
अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद उमेश शर्मा ने अपनी गिरफ्तारी पर रोक के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल व अन्य ने पैरवी की थी. उनकी दलील थी कि नोटबंदी के दौरान हुए लेनदेन के मामले में उमेश शर्मा के खिलाफ झारखंड में मुकदमा दर्ज हुआ था, जिसमें वे पहले से ही जमानत पर हैं। इसलिए एक ही मुकदमे के लिये दो बार गिरफ्तारी नहीं हो सकती. पत्रकार उमेश कुमार व अन्य के खिलाफ अमृतेश चौहान द्वारा दूसरा मामला दर्ज किया गया था. उत्तराखंड हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस रवींद्र मैठाणी ने रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने प्राथमिकी को निरस्त कर दिया था.
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