कल है शिवरात्री, कब से कब तक रखें उपवास क्या खास है इस शिवरात्रि पर,जाने सुविख्यात आचार्य शिव प्रसाद मंमगाई से

महा शिवरात्रि व्रत 18 फरवरी 2023 को
शिवरात्रि का फाल्गुन कृष्ण पक्ष में ही आना साभीप्राय ही है ,शुक्ल पक्ष में चंद्रमा पूर्ण होता है और कृष्ण पक्ष में क्षीण से होता है उसकी वृद्धि के साथ-साथ संसार के रसवान पदार्थों में वृद्धि और छय के साथ-साथ उनमें क्षीणता स्वाभाविक एवं प्रत्यक्ष है ।क्रमशः घटते घटते वह चंद्रमाअमावास्या को बिल्कुल क्षीण हो जाता है ।अंन्तःकरण में तामसी शक्तियां प्रबुद्ध होकर अनेक प्रकार के नैतिक व समाजिक अपराधों का कारण बनती हैं। इन्हीं शक्तियों का अपर नाम अध्यात्मिक भाषा में भूत प्रेत आदि है और शिव को इनका नियामक माना जाता है ।दिन में यद्यपि जगदात्मा सूर्य की स्थिति से आत्मतत्व की जागरूकता के कारण यह अपना विशेष प्रभाव नहीं दिखा पातीं किंतु चंद्रविहीन अंधकारमयी रात्रि के आगमन के साथ ही अपना प्रभाव दिखाने लग जाती हैं। शंकर भगवान इनको बस में कर देते हैं। और यह दिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शंकर की आराधना का प्रमुख दिन है विश्व की तीन सर्वोच्च शक्तियों में अन्यतम शिव हैं और वेदों से लेकर भाषा ग्रंथों तक में शिव की महता और गरिमा के संबंन्ध में इतना वर्णन किया गया है ।प्रस्तुत पर्व ही देवाधिदेव भगवान शंकर के और माता पार्वती के साथ पाणिग्रहण का प्रिय पर्व है। बता दें अन्य देवों का पूजन दिन में होता है शंकर को रात्रि ही क्यों प्रिय है शंकर संहार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं अतः तमोमयी रात्रि से उनका स्नेह स्वाभाविक ही है। रात्रि संहार काल की प्रतिनिधि है, उसके आते ही सर्वप्रथम प्रकाश का संहार जीवो की दैनिक कर्म चेष्ठाओं का संहार और अंत में निद्रा चेतना का ही संहार होकर संपूर्ण विश्व संहारिणी रात्रि की गोद में अचेतन होकर गिर जाता है ऐसी दशा में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रिप्रिय होना सहज ही हो जाता है ।यही कारण है कि भगवान शंकर की आराधना न केवल इस रात्रि में ही किंन्तु सदैव प्रदोष रात्रि प्रारंभ होने पर के समय में की जाती है ।प्रदोष शिवरात्रि जब ब्रह्मा जी ने कहा मैं बड़ा विष्णु जी ने कहा मैं बड़ा उन दोनों के बीच में एक स्तंभ तैयार हुआ शर्त दोनों की हुई जो स्तंभ का अंत पहले पाएगा वह बड़ा देव माना जाएगा विष्णु जी बाराहा के रूप में नीचे की ओर गए ,और ब्रह्मा उपर जहां केतकी पुष्प से झूठ बुलवाया की स्तंभ का अंत देख लिया विष्णु जी ब्रह्मा को पूजने लगे जो स्थम्भ को फाड़कर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके भ्रुकुटी से भैरव पैदा हुए उन्होंने ब्रह्मा जी का असत्य भाषण करने वाला सिर छेदन कर दिया, और मूर्ति मंदिर रूप से तुम्हारी पूजा नहीं होगी और केतकी तुम पूजा में नहीं आओगे यह शाप ब्रह्मा जी केतकी को दिया शंकरजी नें ,वहीं फिर ब्रह्मा विष्णु जी ने शिव जी को मनाया विष्णु और ब्रह्मा जी के देखते वह स्तंभ छोटा लिंग रूप हो गया पूरी रात फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतर्दशी को र्दवों ने आकर पूजा करी चार पहर में, उपवास में रात्रि जागरण क्यों करते हैं उपवास से इंद्रियों पर नियंत्रण अपने लक्ष्य की प्राप्ति संयमी पुरुष
अपने लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है मादक पदार्थों में मादकता आती यह तो सभी जानते हैं, परंतु अन्न में भी मादकता होती है ।भोजन के बाद आलस्य नींद के रूप में अन्न के नशे को लोग प्रायः अनुभव करते ही होंगे ,अन्न में एक प्रकार की ऐसी पार्थिव शक्ति होती है जो पार्थिव शरीर के संयोग पाकर दुगनी हो जाती है इस शक्ति को हम उपासना द्वारा एकत्र करना चाहते हैं क्योंकि पेट भरा होने के बाद आपको सभी साधन सुलभ चीजें भी अच्छी लगती हैं अगर तुम आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम उपवास करें इस इस बार 2023 की शिवरात्रि 8:00 बजकर 4 मिनट तक प्रदोष त्रयोदशी है ,उसके बाद चतुर्दशी यानी शिवरात्रि का प्रारंभ 18 तारीख को हो रहा है जो दूसरे दिन 19 तारीख को 4:00 बज कर 19 मिनट दिन तक रहेगी यानी व्रत उपवास अट्ठारह फरवरी 2023 को रखना है ।।
आचार्य शिव प्रसाद मंगाई ज्योतिष पीठ ब्यास पदालंकृत देहरादून उत्तराखंड

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