वरिष्ठ और जाने-माने पत्रकार व लेखक जय सिंह रावत की पुस्तक ‘उत्तराखंड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास’ का लोकार्पण

वरिष्ठ और जाने-माने पत्रकार व लेखक जय सिंह रावत की पुस्तक ‘उत्तराखंड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास’ का लोकार्पण

electronics

रावत की लेखनी सधी हुई भी है और धारदार भी—वह किसी को दंडवत प्रणाम नहीं करती, न ही किसी से माफी मांगती है।

 

जय सिंह रावत की यह पुस्तक उत्तराखंड की 25 वर्ष की राजनीतिक स्मृति को ऐसे खोलती है, जैसे किसी नदी की तलहटी को साफ करके उसके असली पत्थर, कीचड़, चमक और दरारें एक साथ सामने रख दी गई हों। किताब को पढ़ते हुए बार-बार लगता है कि लेखक सिर्फ घटनाएँ नहीं बता रहे, बल्कि सत्ता के उन रास्तों पर पाठक को खुद ले जा रहे हैं, जहाँ फैसले लिए गए, नेता बदले गए, और जनता कभी आशा तो कभी आघात से गुज़री। इस पुस्तक में राजनीति किसी चमकीले मंच पर खड़ा नेता नहीं, बल्कि वही है जो भीतर, सचिवालयों, कमरों, बैठकों और शिकवों में घटती आई।

रावत की लेखनी सधी हुई भी है और धारदार भी—वह किसी को दंडवत प्रणाम नहीं करती, न ही किसी से माफी मांगती है। उन्होंने नित्यानंद स्वामी से लेकर पुष्कर सिंह धामी तक पूरे कालखंड में हुए नेतृत्व परिवर्तन, विवाद, घोटालों, अवसरों और विफलताओं को बेखौफ़ ढंग से रखा है। पढ़ते समय महसूस होता है कि लेखक किसी एक दल या चेहरे के प्रति पक्षपाती नहीं, बल्कि पत्रकारिता की उस ईमानदार नस्ल से आते हैं, जो लिखते समय सिर्फ सच की तरफ़ झुकती है—चाहे वह कितना ही असहज क्यों न हो।

इस पुस्तक के पीछे की मेहनत इसकी सबसे बड़ी रीढ़ है। रावत महीनों मोटरसाइकिल से दस्तावेज़ खोजने जाते रहे—16 किलोमीटर दूर स्थित अभिलेखागार, भोपालपाणी तक, बार-बार। यह यात्रा सिर्फ दूरी की नहीं, धैर्य की भी थी। वे पुरानी फाइलें टटोलते, पीली पड़ चुकी काटिंग्स निकालते, और फिर लौटकर अपनी डायरी में दर्ज करते। यही कारण है कि यह किताब अफवाहों या सुनी-सुनाई बातों पर नहीं, दस्तावेज़ों की सीधी पकड़ पर खड़ी दिखती है।

दिनेश शास्त्री का संपादन इस तेज धार को आकार देता है। वे खुद स्वीकारते हैं कि रावत ने इसे जितनी निडरता से लिखा था, उनसे कुछ को नरम करना पड़ा—पर धार कम नहीं हुई, बस पन्नों के बीच व्यवस्थित हो गई। समारोह में उनके उस स्वीकारोक्ति में भी राजनीति के प्रति एक गहरी समझ झलकती है: सत्ता की कहानियों को दर्ज करते समय संपादक और लेखक दोनों को कभी-कभी शब्दों से ज़्यादा बुद्धि चाहिए होती है।

रावत ने हर युग की राजनीति को बिना पर्दा उठाए नहीं छोड़ा—चाहे वह भगत सिंह कोश्यारी का महत्वपूर्ण पर विवादित दौर हो, भाजपा के भीतर नेतृत्व चयन की खींचतान हो, निशंक का समय हो, विजय बहुगुणा की वह सरकार जो आपदा के घावों में डगमगाई, या हरीश रावत का वह अध्याय जहाँ मुख्यमंत्री कुर्सी शक्ति के मुकाबले किस्मत से ज्यादा हिली। लेखक ने इन सब पर कोई पर्दा डालने की कोशिश नहीं की। वे बताते हैं कि पार्टी के भीतर फैसले कैसे हुए, कहाँ नेतृत्व ग़लत चुना गया, कौन से चुनाव किस वजह से पिघले, किस दौर में घोटाले सत्ता की दीवारों पर दाग बने और किस समय जनता ने विश्वास खोया—रावत इन सब पर लिखते समय किसी वाक्य को बचाते नहीं, सीधे मारते हैं।

किताब की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यह सत्ता की कहानी को केवल आलोचना के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवंत, द्रष्टा-दृष्टि वाले इतिहास के रूप में रखती है। यह केवल यह नहीं कहती कि क्या गलत हुआ; यह भी बताती है कि उत्तराखंड कैसे बना, किसने सपने में इसे तराशा, लाल किले से देवेगौड़ा के भाषण में उठी पहली चमक कैसे वर्षों बाद राज्य रूप में बदली। यह राजनीति को सिर्फ आज या कल से नहीं जोड़ती—यह उसे उन पहाड़ों की स्मृति से जोड़ती है, जहाँ उम्मीदें धीरे-धीरे पर स्थिर नदी की तरह बहती हैं।

रावत की लेखनी का साहस यह भी है कि वे यह स्वीकार करते हैं—राजनीति केवल विफलता नहीं; यह उस संघर्ष का हिस्सा भी है जिसमें गाँव तक सड़क पहुँची, युवाओं ने अवसर पाए, और कई बार सरकारें भले टूटती रहीं, पर राज्य की यात्रा आगे बढ़ती रही। यह पुस्तक उसी यात्रा की डायरी है—कभी उजली, कभी धुंध भरी, कभी तीखी।

यह किताब उत्तराखंड की राजनीति पर गंगा की परवाह जैसी है—धीरज से बहती हुई, रास्ते-रास्ते अपने किनारों को छूती, कभी गहरी धार में उतरती, कभी शांत सतह पर चलती। इसमें कहीं कलह के पत्थर हैं, कहीं उपलब्धियों के सफेद रेशे, और कहीं सत्ता की रेत जो हाथ में आते-आते फिसल जाती है। रावत ने अपनी 45–50 वर्षों की पत्रकारिता का पूरा अनुभव इसमें उँडेल दिया है। वे पत्रकार नहीं लगते, इतिहास के साक्षी लगते हैं। यही कारण है कि उनकी यह आठवीं पुस्तक केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक साहसी दस्तावेज़ है—जो नेताओं को आईना दिखाती है, पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है और राज्य की राजनीति को भावनाओं से नहीं, तथ्यों से समझने की शक्ति देती है। जो भी इस पुस्तक को पढ़ेगा, वह देखेगा कि इसमें लेखक ने किसी को बख्शा नहीं—और यही इस पुस्तक की असली ईमानदारी है।

पुष्कर सिंह धामी , मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने “वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत जी को इस महत्वपूर्ण पुस्तक के लिए मैं हार्दिक बधाई देता हूँ। ‘उत्तराखंड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास’ हमारे राज्य की 25 वर्षों की राजनीतिक यात्रा का सबसे प्रामाणिक दस्तावेज़ है। श्री धामी ने कहा मैं हमेशा कहता हूँ—AI कितना भी आगे बढ़ जाए, किताबों का कोई विकल्प नहीं। इसलिए मेरी सभी से अपील है— ‘बुके नहीं, बुक दीजिए।’ उन्होंने कहा तकनीक जरूरी है, लेकिन अपनी बोली–भाषा उससे भी जरूरी। गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी—ये हमारी पहचान हैं। सरकार इनका डिजिटलाइजेशन कर रही है, ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहे। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ—अपने घर–विद्यालयों में स्थानीय भाषाओं का उपयोग बढ़ाएँ। भाषा और संस्कृति जितनी जीवंत होंगी, उत्तराखंड उतना ही मजबूत होगा। उन्होंने कहा मैं फिर से रावत जी को बधाई देता हूँ और विश्वास दिलाता हूँ कि राज्य सरकार भाषा, साहित्य और हमारी विरासत को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव कदम उठाती रहेगी।”

भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व राज्यपाल

पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि वे जय सिंह जी को इस महत्वपूर्ण कृति के लिए हार्दिक बधाई देते हैं। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को पढ़कर यह विश्वास और दृढ़ होता है कि देहरादून की धरती पर आज भी उत्कृष्ट बुद्धिजीवी सक्रिय हैं।

उन्होंने कहा कि जय सिंह जैसे पत्रकार पत्रकारिता जगत के आदर्श हैं। उनके लेखन की सबसे बड़ी खूबी उनका संतुलन है—वह संतुलन, जिसे वे कभी नहीं खोते। कोश्यारी ने बताया कि उन्होंने जय सिंह जी की टीवी डिबेट भी देखी हैं, जहाँ उनकी स्पष्टता, गंभीरता और तटस्थता हमेशा बनी रहती है। कोश्यारी ने यह भी कहा कि उत्तराखंड बौद्धिक और सांस्कृतिक संपदा से अद्भुत रूप से समृद्ध रहा है।”हम जैसे बूढ़े लोग भी ऐसी किताबों से बहुत कुछ सीखते हैं,” उन्होंने मुस्कराते हुए जोड़ा।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की शोधपरक कृति विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। साथ ही उन्होंने आशा व्यक्त की कि रावत जी इस पुस्तक का दूसरा संस्करण भी अवश्य—और बहुत शीघ्र—प्रकाशित करेंगे।

हरीश रावत , पूर्व मुख्यमंत्री

वरिष्ठ और जाने-माने पत्रकार व लेखक जय सिंह रावत की पुस्तक ‘उत्तराखंड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास’ के विमोचन अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री और भविष्य में बनने वाले मुख्यमंत्री—दोनों को इस पुस्तक से सीख लेनी होगी कि राज्य को आगे कैसे बढ़ाना है और निर्णय कैसे लेने हैं। कैसे कर्तव्यों का पालन करना है।
उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों में राज्य से जुड़े जितने भी राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं, यह पुस्तक उनका विस्तृत दस्तावेज है। हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखंड किस ढंग से मिला, किस प्रकार दिल्ली में प्रदर्शन हुए—यह सब बहुत सुंदर तरीके से राज्य को प्राप्त करने की लंबी यात्रा का हिस्सा रहा है।

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान नई दिल्ली में हुए प्रदर्शनों में त्रेपन सिंह नेगी और महाराजा मानवेंद्र शाह ने हिस्सा लिया, जबकि रामनगर में देवी सिम्वाल, गोविंद सिंह महर और लक्ष्मण सिंह सक्रिय रूप से जुड़े थे। वह उन्होंने देखा। हरीश रावत ने यह भी कहा कि राज्य निर्माण के लिए वह पौड़ी गढ़वाल के सांसद प्रताप सिंह नेगी के साथ स्याल्दे से बैजरों तक की राज्य निर्माण की यात्रा तक वह रहे।

दिनेश शास्त्री और संजय कोठियाल

पुस्तक के लोकार्पण में दिनेश शास्त्री और संजय कोठियाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। दोनों ने इस पुस्तक पर विस्तार से प्रकाश डाला और उत्तराखंड की पत्रकारिता के इतिहास तथा देश की आज़ादी में पत्रकारिता के योगदान पर भी महत्वपूर्ण बातें रखीं। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक शानदार, जानदार और अत्यंत मूल्यवान है। संजय कोठियाल ने कहा कि उन्होंने और जय सिंह रावत जी ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के समक्ष यह बात उठाई थी कि उत्तराखंड में आज़ादी से लेकर आज़ाद भारत तक जिन वरिष्ठ और प्राचीन पत्रकारों ने काम किया है, उनकी स्मृति में सूचना विभाग में एक गैलरी बनाई जाए। हरीश रावत ने इस सुझाव को स्वीकार किया और सूचना निदेशालय में ऐसी एक गैलरी स्थापित की गई। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उन प्राचीन समाचार-पत्रों को, जिनका देश की आज़ादी में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उन संस्करणों का डिजिटल रूप में संरक्षित करें तथा उनके अध्ययन के लिए एक समर्पित स्थान भी निर्धारित किया जाए।

शीशपाल गुसाईं , लोकार्पण स्थल में

_____________________________