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भू कानून पर मुख्यमंत्री धामी की पहल ऐतिहासिक, भू-कानून पर ठोस कदम उठाने वाले पहले सीएम बने धामी: विस्तृत विश्लेषण

भू कानून पर मुख्यमंत्री धामी की पहल ऐतिहासिक

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देहरादून। भू कानून और उत्तराखंड राज्य का चोली दामन जैसा साथ है। राज्य गठन के समय से ही राज्य के लोग हिमाचल प्रदेश जैसे सशक्त भू कानून की मांग करते आ रहे हैं। इस बीच कई सरकारें आई और गई, लेकिन भू-कानून के इस विषय को किसी भी सरकार ने छूने की हिम्मत नहीं दिखाई। राज्य गठन के 24 साल बाद यह पहला मौका है, जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने इस इस संवेदनशील विषय को न केवल छूने का साहस दिखाया बल्कि इसको लेकर के कुछ ठोस करने का वायदा भी राज्य के वासिंदों से किया है। निश्चित रूप से मुख्यमंत्री धामी की यह घोषणा देवभूमि की दुखती रग पर एक ऐसा मरहम है, जो आने वाले समय में इस राज्य को बड़ी राहत दे सकता है।

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने शुक्रवार की अपनी पत्रकार वार्ता में जब इस संवेदनशील विषय को छुआ तो शायद किसी को उम्मीद नहीं रही होगी कि वह आज भू कानून को लेकर इतने बड़े ऐलान करने वाले हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि निकाय क्षेत्रों के बाहरी इलाकों में बाहरी लोगों को 250 मी का भूखंड आवासीय उद्देश्य से खरीदने का जो प्रावधान था उसके उल्लंघन होने की खबरें हैं। यानी लोगों ने अपने कई कई परिजनों के नाम से ढाई ढाई सौ मीटर करके बड़े पैमाने पर नियमों को दरकिनार कर जमीनें खरीद ली हैं। उन्होंने ऐसे लोगों की जांच करते हुए ढाई सौ मीटर के अतिरिक्त जमीनों को सरकार में निहित करने की जो घोषणा की है उसे सराहा जाना चाहिए।

 

 

इस घोषणा के बाद अब कम से कम ऐसे लोग उत्तराखंड में जमीनें खरीदने के लिए आगे नहीं आएंगे, जो ढाई सौ मीटर का एक भूखंड खरीदने के बाद किसी और परिवारजन के नाम से दूसरा भूखंड खरीदने की योजना बना रहे हैं। दूसरा उन्होंने 2018 के उस भू कानून में परिवर्तन करने की घोषणा की जो तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत जी की सरकार ने बनाया था। मुझे अच्छी तरह याद है कि उस दिन जब मुख्यमंत्री आवास से लगे हाल में तत्कालीन शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक जी ने कैबिनेट के इस फैसले की जानकारी मीडिया को दी तो उत्तराखंडियत की सोच रखने वाले हम ज्यादातर पत्रकार साथी सकते में थे। हम लोगों ने कौशिक पर सवालों की बौछार कर दी थी। तब कौशिक ने मीडिया को जवाब दिया कि जिस उद्देश्य से भूमि ली जाएगी अगर उससे इतर भूमि का उपयोग किया गया तो भूमि को सरकार जब्त कर लेगी। कौशिक ने यह भी बताया था कि किसी निवेश के उद्देश्य से ले ली गई भूमि पर 2 साल के भीतर काम शुरू नहीं होता है तो भी उस जमीन को भी सरकार में निहित कर दिया जाएगा।

 

कौशिक जी के इस जवाब के बाद मीडिया कर्मियों की आशंकाएं काफी हद तक दूर हो गई थी, लेकिन धीरे-धीरे उसके बाद पता चला कि मंत्रिमंडल के उसे निर्णय की आड़ में बड़े पैमाने पर पर्वतीय इलाकों तक में जमीनी खरीदने का गोरखधंधा शुरू हो गया। असल में बात यह है कि राज्य में अफसर और बाबू पर्दे के पीछे बड़ा खेल करने के अभ्यस्त हो चुके हैं। देहरादून में तो एक ही प्लॉट कई-कई लोगों को बेचने के मामले सामने आ चुके हैं।
शायद यही वजह थी कि पिछले वर्ष भू कानून व मूल निवास की मांग को लेकर परेड ग्राउंड के पास बड़ी संख्या में अप्रत्याशित रूप से लोग जुटे।

 

मुझे मुख्यमंत्री धामी जी के द्वारा इस समय इस तरह की किसी घोषणा का कोई भान भी नहीं था, क्योंकि इस समय यह मामला करीब-करीब ठंडा पड़ा हुआ है। जब उन्होंने आने वाले बजट सत्र में एक वृहद भू कानून लाने और नियमों के विपरीत खरीदी गयी भूमि को जब्त करने की घोषणा की, तब न तो इस विषय को लेकर के बहुत शोर शराबा हो रहा है और न ही किसी तरह का पॉलिटिकल दबाव है।

 

इसका मतलब साफ है कि उत्तराखंड में जमीनों की खरीद फरोख्त को लेकर कहीं न कहीं उनका मन उद्वेलित रहा होगा।
भू कानून को लेकर के मुझे एक पुराना किस्सा भी याद आ रहा है। 2007 में जब जनरल खंडूरी साहब ने सत्ता संभाली थी तो सरकार के 100 दिन पूरे होने पर एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। पैसेफिक होटल में आयोजित इस पत्रकार वार्ता में जनरल साहब अपने 100 दिन के कार्यकाल की उपलब्धियों में इस बात को प्रमुखता से गिना रहे थे कि उन्होंने ऐसा सशक्त भू कानून लागू कर दिया है कि अब लोग 250 मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीद पाएंगे। जैसे ही जनरल साहब ने अपनी बात समाप्त की तो वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत जी ने सवाल दागा कि आप जिस कानून की बात कर रहे हैं वह तो शहरी क्षेत्र में लागू है और आज जमीनों की खरीद फरोख्त ग्रामीण क्षेत्र में हो रही है। इसलिए सरकार भू कानून को लेकर जो गाल गाल बजा रही है उसका कोई मतलब नहीं है। रावत जी का यह सवाल इतना तीखा था कि इसके बाद खंडूड़ी साहब के मैनेजरों ने पत्रकार वार्ता ही खत्म कर दी और पत्रकारों को लजीज भोजन की टेबिल की ओर भेज दिया।

 

हालांकि पिछले वर्षों में मेरे संज्ञान में कोई ऐसा स्पेसिफिक मामला तो नहीं है कि कहां-कहां जमीनें नियम विरुद्ध खरीदी गई, लेकिन बहुत सारे मित्रों के द्वारा यह जानकारी जरूर मिलती है कि फलां इलाके में फलाने सेठ ने जमीन खरीदी है। मुख्यमंत्री जी ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि ऐसे बहुत से मामले हैं, तो यह तय है कि उन्होंने भू कानून को लेकर यह बड़ा ऐलान करने से पहले तमाम जानकारी जुटा ली होगी। निश्चित रूप से बृहद भू कानून लाने और गलत तरीके से खरीदी गयी जमीनों को सरकार में निहित करने का उनका यह ऐलान इस राज्य के भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा। क्योंकि आम धारणा बन रही है कि अगर राज्य में इसी तरह जमीनों की लूट होती रही तो यह राज्य अपना अस्तित्व खो देगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी को इस साहसिक निर्णय के लिए बहुत-बहुत साधुवाद।

वरिष्ठ पत्रकार अर्जून सिंह बिष्ट की फेसबुक वॉल से