Hanuman Jayanti:इस गांव नही होती हनुमान की पूजा -गांव में लाल झंडा लगाना भी है प्रतिबंध -जानें वजह

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पवनपुत्र हनुमान को कलयुग का साक्षात देवता कहा जाता है। माना जाता है कि हनुमान चिरंजीवी हैं, जो आज भी धरती पर सशरीर मौजूद हैं। हनुमान बाबा रुद्रावतार हैं और शास्त्रों में उन्हें परम शक्तिशाली बताया गया है। मान्यता है कि हनुमान जी के पूजन से सभी तरह के कष्ट मिट जाते हैं। यही कारण है कि हनुमान जी संकटमोचन कहताले हैं। आज चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि है। आज के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। देशभर में आज मंदिरों तड़के से ही भक्ता उमड़े हुए हैं। देशभर के साथ ही उत्तयराखंड में भी हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। हनुमान जयंती के अवसर पर खास कार्यक्रमों का आयोजन हो रहे हैं। कहीं शोभायात्रा निकाली जा रही है तो कई मंदिरों में महायज्ञ और सुंदर कांड का पाठ किया जा रहा है। उत्तरखंड में जहां हनुमान जन्मोत्सव पर मंदिरों में भक्तों की कतारें लगी हुई हैं तो यहां एक गांव ऐसा भी है जहां हनुमान जी की पूजा तो दूर इनका नाम लेना भी वर्जित है। आज हम आपको बताएंगे इस गांव के बारे और आखिर क्यों हनुमान जी का नाम लेना भी इस गांव में पाप के समान है।

गांव जहां नहीं होती हनुमान जी की पूजा

कलियुग में जहां हनुमान जी को हर संकट में याद किया जाता है और उनकी आराधना की जाती रही है, वहीं उत्तराखंड के चमोली का द्रोणागिरि गांव में हनुमान जी को नहीं पूजा जाता। यहां के लोग हनुमान जी को इस गांव में तो क्या बाहर जाके भी नहीं पूजते। यहां के लोगों के लिए हनुमान जी की पूजा करना किसी अपराध से कम नहीं है। यही कारण है की इस गांव में हनुमान जी का एक भी मंदिर नहीं है। ऐसा करने के पीछे यहां के लोगों की हनुमान जी के प्रति नाराज़गी है।

द्रोणागिरि गांव

द्रोणागिरि गांव उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ प्रखण्ड में जोशीमठ नीति मार्ग पर स्थित है। यह गांव करीब 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां सदियों से हनुमानजी के पूजन पर रोक है क्योंकि हनुमानजी उस स्थान से संजीवनी पर्वत उठाकर ले गए थे। इस गांव में लाल रंग का झंडा लगाने पर भी पाबंदी है। स्थानीय लोगों के अनुसार जब हनुमान बूटी लेने के लिए इस गांव में पहुंचे तो वे भ्रम में पड़ गए। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि किस पहाड़ पर संजीवनी बूटी हो सकती है। तब गांव में उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उन्होंने पूछा कि संजीवनी बूटी किस पर्वत पर होगी? वृद्धा ने द्रोणागिरि पर्वत की तरफ इशारा किया। हनुमान उड़कर पर्वत पर गए पर बूटी कहां होगी यह पता न कर सके। वे फिर गांव में उतरे और वृद्धा से बूटीवाली जगह पूछने लगे। जब वृद्धा ने बूटीवाला पर्वत दिखाया तो हनुमान ने उस पर्वत के काफी बड़े हिस्से को तोड़ा और पर्वत को लेकर उड़ते बने। कहा जाता है कि जिस वृद्धा ने हनुमान की मदद की थी उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। आज भी इस गांव के आराध्य देव पर्वत की विशेष पूजा पर लोग महिलाओं के हाथ का दिया नहीं खाते हैं और न ही महिलाएं इस पूजा में भाग लेती हैं।

श्रीलंका में आज भी स्थित है संजीवनी पर्वत

श्रीलंका के सुदूर इलाके में श्रीपद नामक एक पर्वत है। माना जाता है कि यह वही पर्वत है, जिसे हनुमानजी संजीवनी बूटी के लिए उठाकर लंका ले गए थे। इस पर्वत को एडम्स पीक भी कहा जाता है। यह पहाड़ करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। श्रीलंका के लोग इसे रहुमाशाला कांडा कहते हैं। इस पर्वत पर एक मंदिर भी बना है। यह गांव प्राकृतिक रूप से बहुत सुंदर है। माना जाता है कि इस गांव में कई चमत्कारी जड़ी-बूटियां भी है। कहा जाता है कि रामायण काल में जब लक्ष्मणजी को शक्तिबाण लगा और वे बेहोश हो गए, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने यहीं आए थे। रात के अंधेरे में जब संजीवनी बूटी चमक रही थी तब हनुमानजी उस पर्वत को यहां से ले गए। संजीवनी बूटी से लक्ष्मण के प्राण तो बच गए लेकिन द्रोणागिरि गांव के लोग हनुमानजी से नाराज़ हो गए। पहले यहां के लोग इस पर्वत की पूजा करते थे लेकिन उस दिन से आज तक यहां हनुमानजी की पूजा पर पाबंदी है।

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