दुखद खबर:नहीं रहे गढ़भोज को देश विदेश में पहचान दिलाने वाले रूद्रप्रयाग जखोली निवासी लक्ष्मण सिंह रावत, उत्तराखंड में शोक की लहर

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देहरादून- इंसान की चाह कुछ और होती लेकिन खुदा को कुछ और मंजूर होता है ऐसा ही कुछ हुआ उत्तराखण्ड में सबसे पहले गढ़वाल के मोटे अनाज कोदा झगोंरा को प्रमोट करने वाले गढ़ भोज के स्थापक लक्ष्मण सिंह रावत का आज सुबह दस बजे देहरादून इंद्रेश अस्पताल में अटैक आने से आकास्मिक निधन हो गया जिससे पूरे उत्तराखण्ड़ में शोक की लहर छा गई . तबियत बिगड़ने के बाद परिवार वालों ने लक्ष्मण सिंह रावत को इंद्रेश अस्पताल में भर्ती किए गए थे जहा पर उन्होंने अंतिम सांस ली लक्ष्मण सिंह रावत के आकास्मिक निधन पर , रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के औद्योगिक सलाहकार डॉ.के एस पंवार , मैती आदोलन के जनक पद्म श्री कल्याण सिंह रावत, social polygon group ग्रुप के एमड़ी डी एस पंवार,देहरादून मेयर सुनील पूर्व गामा, कैबिनेट मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ,केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत, भाजपा की महिला प्रदेश मोर्चा की अध्यक्षक आशा नौटियाल, भाजपा के रुद्रप्रयाग जिलाध्यक्ष महावीर सिंह पंवार , पूर्व राज्यमंत्री आचार्य शिव प्रसाद मंमगाईं, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मी राणा, ब्लॉक प्रमुख प्रदीप थपलियाल,पूर्व ज्येष्ठ प्रमुख अर्जून सिंह गहरवार, कांग्रेस नेता रघुवीर सिंह रा णा,समाजसेवी शिव सिंह रावत लोकगायक फिल्म अभिनेता पर्वतीय नाट्य मंच के स्थापक बलदेव राणा, लोक गायिका रेखा धस्माना उनियाल, समाजसेवी रघुवीर सिंह बिष्ट, उद्योगपति बचन सिंह रावत फिल्म अभिनेत्री उर्मी नेगी , राजेन्द्र रावत, नरेंद्र सिंह नेगी जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण , लोकगायिका मीना राणा, संजय कुमोला, अंतराष्ट्रीय गढ़वाल सभा के अध्यक्ष ड़ॉ. राजे नेगी, प्रोफेसर डॉक्टर महावीर नेगी लोकगायक धूम सिंह रावत, लोक गायिका बीना बोरा , लोक गायिका पूनम सती, सौरभ मैठाणी,विजय पंत फिल्म , ,सामाजिक कार्यकर्ता गजेन्द्र रमोला, वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद रावत, राज्य आंदोलनकारी मोहन उत्तराखण्ड़ी , कुंवर सिंह गुसांई, कांग्रेस नेता रघुवीर सिंह राणा, गोपाल गुसांई पत्रकार पुष्कर सिंह नेगी भानु प्रकाश नेगी व्यवसाय गबर सिंह कैन्तुरा समेत उत्तराखण्ड के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जगत के लोगों ने उनके आकास्मिक निधन पर गहरा दुख प्रकट किया और उनके निधन को उत्तराखण्ड के लिए अपूर्णीय क्षति बताया।
हमेशा अपनी खून पसीना कि कमाई को हमेशा पहाड़ की सेवा और अपनी संस्कृति की सेवा और समाज में जरुरतमंद लोगों की सेवा में में लगाया है, इसी और पहाड़ी उत्तापादों को नई पहचान दिलाने में लगाया इसका सबसे बड़ा उदाहरण था गढ़भोज ,गढ़भोज के माध्यम से लक्ष्मण रावत ने पहाड़ के कोदा झंगोरा को देश विदेश में एक अलग पहचान दिलाई है, इसी का ही परिणांम है की आज सरकार भी मोटे अनाज को प्रमोट करने में जुटी हैं और पीएम मोदी भी लगातार इस और सरकारो को प्रेरेरित कर रहे हैं ,इसका श्रेय लक्ष्मण सिंह रावत को ही जाता है । वह हमेशा अपनी बोली भाषा संस्कृति कलाकारो को प्रमोट करते थे, हाल ही में उनके लिखे कई गीत भी रिलीज हुए थे, भले आज लक्ष्मण सिंह रावत हमारे बीच में ना हो लेकिन उनका अविस्मणीय योगदान गढ़भोज की पहल और उनके सामाजिक कार्य जनता के बीच रहेंगे।

कुछ पुराणी यादें

लक्ष्मण रावत ने दिलाई गढ़भोज से पहाड़ के     अन्नों को नई पहचान ।

                       अब पहाड़ की रस्याण दून मा

अक्सर ये बातें तो हर किसी के मुंह से सुनने को मिलती हैं की मुझे अपनी माटी- थाती से बेहद लगाव है, मैं हमेशा अपनी जड़ों से जूजना चहाता हूं, बोलते लगभग सब हैं लेकिन  इस पर मनन- कोई- कोई करता है,बोलने और करने पर में जमीन आसमान का फर्क होता है। इंसान कभी पैंसों से बड़ा नहीं ,सोच से बड़ा होता है। यदि उसकी सोच बडी है वह बडा इंसान हैये पंक्तियां सटीक बैठती गढ़ भोज रेस्तरा व श्रीदेव एसोसिएट के डायरेक्टर लक्ष्मण रावत पर । लक्ष्मण रावत का जन्म दिल्ली में हुआ उनकी पढाई-लिखाई भी दिल्ली में हुई। सामान्य परिवार में जन्में लक्ष्मण रावत आज एक सफल व्यवसायी है। 18 वर्ष की आयु में ही पिता का सांया सिर से उठ गया और पूरे परिवार की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गयी।लक्ष्मण रावत ने परिवार के भरण- पोषण के लिए  एक ढाबा चलाया। तीन साल ढाबा चलाने के बाद  – मुंबई चले गये, जहाँ उन्होने सात साल तक कड़ी मेहनत की । फिर उत्तराखण्ड वापस आगये जहाँ उन्होंने अपना टेलिफोन कम्युनेकशन का छोटा सा व्यवसाय शुरु किया ।अपनी कठिन परिश्रम व लगन से कामयाब हो गये। उन्होंने उत्तराखण्ड के दूरस्थ गांवों को दूरसंचार क्रान्ति से  जोड़कर लोगों को एसटीडी व टेलीफोन से जोड़ा है।अपने बलबूते पर पूरे गढवाल में 26000 टेलिफोन बूथ खोले। जीवन में कठिन सघर्ष करते हुई लक्ष्ण रावत आज अपने कई क्षेत्रों में अपना व्यवसाय कर रहे हैं।लक्ष्मण रा                                                                                 वत ने अपने जीवन में कई व्यवसाय किए हैं जिसमें हमेशा सफलता मिली है। लक्ष्मण रावत के व्यापार में सफल होंने का सबसे बडा कारण उनका लोकप्रीय व शालीन व्यवहार है।लक्ष्मण रावत  ने होटलों में भी अपना हुनर दिखाया है।

 लक्ष्मण जब होटल में थे तो उन्होने कई असहाय व बेरोजगारों को अपने साथ रख कर अपने आप उनका रहना खाने का खर्च उठाया । धीरे- धीरे लक्ष्मण रियल एस्टेट के व्यवसाय से भी जुड़े और धीरे- धीरे उनकों रियल एस्टेट में सफलता अर्जित होने लगी । लक्ष्मण रावत की सबसे बड़ी खासियत है कि उन्होंने छोटे काम से बड़ी सोच रखी है। उन्होंने अपने बढते व्यवसाय को देखते हुए श्रीदेव एसोसिएट फर्म की स्थापना की। आज लक्ष्मण रावत अपनी कम्पनी के माध्यम से लोगों को उच्च क्वालटी के मकान – फ्लेट उपलब्ध करवा रहे हैं । लक्ष्मण रावत 2008 में अपनी ग्राम सभा बच्चवाड़ में पाँच साल ग्राम प्रधान तथा प्रदेश में प्रधान संगठन के सचिव भी रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में अपने गाँव में लाखों रुपयों की योजनाएं लाकर विकास के नये आयाम लिखे।

लक्ष्मण रावत भले व्यवसाय देहरादून में करते हैं पर उनके मन में पहाड़ की तस्वीर रहती है इसलिए लक्ष्मण रावत ने अपने पहाड़ के खाद्य पदार्थों को एक नई पहचान दिलाने के लिए उत्तराखण्ड का पहले गढ भोज की स्थापना की जिसका उद्घाटन बीज बचाओ आन्दोलन के प्रणेता विजय जडधारी व सोशल व पाँलीगाँन ग्रुप के एमडी डी एस पंवार जी द्वारा 14 जनवरी को गढ़ भोज रेस्तरा का शुभारभ किया गया है। जिसमें पहाड़ के हर अन्न को नई पहचान मिल रही है । लक्ष्मण रावत की 4 वर्षों से की गयी कठिन मेहनत रंग लारही है । गढ़भोज  अपने पहाड़ी अन्नों को अपने ग्राहकों के सामने सुसजित तरिके से परोशने का काम कर रहे हैं जिससे पहाड़ के अन्नों के साथ- साथ हमारी संस्कृति को देश विदेशों में एक नई पहचान मिल रही । इतना ही नहीं गढ़भोज खुलने के बाद कई किसानों व कई उत्तराखण्ड के बेरोजगारों को रोजगार मिलरहा है। सबसे बडी बात यह है की गढ़भोज में विदेशों से नोकरी छोड़कर गढ़भोज के माध्यम से अपनी माटी की तरफ लोटकर आरहे हैं । गढ़भोज में कंडाली की चाउमिन कोदा का पिजा गोबी की रबडी झगोरा का डोसा,बुगणिया ग्वीराल , म्वलमुण्डी भांग और भंगजीर की चटनी , कंडाली कबाब प्याज की खीर के अलावा पहाड़ का हर अन्न के स्वादिष्ट पोष्टिक व सुपाच्य ब्यजनों से पहाड़ के बिलुप्त होते अन्नों के साथ- साथ देवभूमि को दुनियां में एक अलग पहचान मिलरही है । और गांव में किसानों को रोजगार मिलरहा है रावत की यह पहल एक पंत दो काज काम कर रही है . रोजगार के साथ उत्तराखण्ड के अन्नों को नई पहचान मिल रही लक्ष्मण रावत ने यह काम इस समय पर किया जब लोग विदेशी फास्ट फूडों की तरह चाउमिन मोमो व पिजा बर्गर आदि के फास्टफूडों के चंद मिनटो के स्वाद के लिए अपने शरीर को बर्बाद कर रहे हैं । लक्ष्मण रावत पीजा बर्गर चाउमिन इन सभी विदेशी फास्ट फूडों का तोड़ निकालकर स्वदेशी फास्ट फूड गढभोज में तैयार किए उनका कहना है की समय समय पर इनको लाँच किया जायेगा जिसकी जानकारी समाचार पत्रों व सोशल मीडिया के द्वारा ग्राहकों को दी जायेगी । लक्ष्मण रावत द्वारा किये गये सहरानीय कार्य की तारिफ राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर राज्य के नोकरशाहों व समाज के हर वर्ग  जे लोगों ने गढ़भोज का स्वाद चखकर खुब वाही वाही की । यदि कभी ईतिहास में विलुप्त होते पहाडों का इतिहास लिखा जायेगा तो लक्ष्मण रावत का नाम पहले होगा इसमें कोई दोहराय नही है। लक्ष्मण रावत की दृष्टी का परिणाम है। लक्ष्मम रावत को गढभोज के लिये यूफा अवार्ड बदरीकेदारसमिति ने भी उत्तकृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया । लक्ष्मण रावत एक सफल व्यवसाय के साथ एक समाज सेवी भी हैं, वह जरुरतमंदों की मदद भी करते हैं। कोई भी उनके द्वार से निराश लौटकर नही जाता है ।

  

                                             

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