
रैबार पहाड़ का-स्थिति के आधार पर देखें उत्तराखंड में कोरोना पूरी तरह नियंत्रित है। यहां अभी केवल 17 केस एक्टिव हैं। देहरादून जिला लाल (रेड जोन )से नारंगी (ओरेंज जोन) हो चुका है और जल्दी इसके हरे होने की संभावना है। अब थोड़ा भय मैदानी शहरों से पहाड़ के गांवों में पहुंचने वालों को लेकर बना हुआ है। गांवों में आने वाले लोग, गांवों में रह रहे लोग, प्रधान इत्यादि प्रतिनिधि सजग रहकर और अपनी जिम्मेदारियों का चौकन्ना होकर पालन कर पुलिस-प्रशासन को सहयोग करें तो उक्त डर से पार पाया जा सकता है। यदि कहीं भी लापरवाही हुई तो स्थिति विकट हो सकती है।
दिल्ली, चंडीगढ़, हरियाणा आदि जगहों पर रह रहे उत्तराखंड के लोगों को उनके मूल गांवोंतक पहुंचाने के लिए सरकार पर भारी दबाव था। स्थितियों का आकलन करने के बाद सरकार ने इन लोगों को गांवों तक पहुंचाना शुरू कर दिया है। संभवतः पांच-सात दिन तक यह प्रक्रिया निपट जाएगी, लेकिन असल चुनौती यह है कि किसी व्यक्ति के माध्यम से गांवों में इस बीमारी का प्रवेश न हो। यद्यपि इन्हें लाने की प्रक्रिया में मेडिकल चेकअप, डिस्टेंसिंग इत्यादि नियमों का पूरा पालन किया जा रहा है, किंतु यह वायरस मानव की कौन-सी कमजोरी का फायदा उठाकर उस तक पहुंच जाए, कहा नहीं जा सकता है।
गांव पहुंचे लोगों को क्वारंटीन करने इत्यादि की बड़ी जिम्मेदारी ग्राम प्रधान को दी गई है। पंचायत भवनों और विद्यालयों को क्वारंटीन सेंटर बनाया गया है, लेकिन जैसे कि खबरें आ रही हैं, अधिकांश लोग इन स्थानों पर रहने को तैयार नहीं हैं। स्थान की कमी, शौचालय और पानी की समस्या इत्यादि इसके कारण हो सकते हैं। इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण यह भी हो सकता है कि लोग अपने सुविधासंपन्न घर को देखकर घर के ही निकट ऐसे केन्द्रों पर रहना नहीं चाहते। इन लोगों में अति आत्मविश्वास है कि हम लगभग डेढ़ महीने से अपने कमरे में बंद थे, हमें यह बीमारी कैसे हो सकती है? जो लोग अपने निजी वाहनों से आए, उनके बारे में इस बात को स्वीकार भी कर लें, परंतु जो लोग बसों में आ रहे हैं, उनके संबंध में तो यह बात नहीं स्वीकारी जा सकती।
यह भी पता चला है कि कुछ लोग चोरी-छिपे पैदल ही घरों को पहुंच रहे हैं। टिहरी गढ़वाल में ऐसे तीन लड़कों के जंगल के रास्ते पैदल घर पहुंचने की खबर है। वहीं, कुछ लोग अपने वाहनों से जाकर सीधे अपने घरों में पहुंच रहे हैं।
अब प्रधान के सामने बड़ी चुनौती है कि लोगों को कैसे क्वारंटीन सेंटरों में क्वारंटीन किया जाए और कैसे होम क्वारंटीन किया जाए!
जिसका घर अकेले स्थान पर है, उसे तो होम क्वारंटीन किया जा सकता है, किंतु चार-पांच घर एक साथ लगते हों तो ऐसे में होम क्वारंटीन करना बहुत मुश्किलभरा काम है। यह तभी संभव हो सकता है, जब संबंधित व्यक्ति के परिजन, पड़ोसी और सभी ग्रामीण सहयोग करें। दूसरी बात, एक ग्राम पंचायत में बहुधा अनेक गांव आते हैं। पहाड़ में विषम भौगोलिक परिस्थितियों और गांवों की आपसी दूरी अधिक होने से यह संभव नहीं कि प्रधान सभी आगंतुकों पर हर समय कड़ी निगरानी रख सके।
कुल मिलाकर गांवों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ यह जंग सभी के सहयोग से ही जीतनी होगी। आगंतुक के साथ ही पड़ोसी और हर ग्रामीण को समस्त मानव जाति के हित के दृष्टिगत अपने कर्त्तव्य का पालन करना होगा। इस समय हर व्यक्ति को अहंकार, भावना इत्यादि को परे रखना होगा।
उधर, यह भी समाचार हैं कि गांवों में आने वाले व्यक्ति को देखकर अनेक लोग मुंह बनाकर ऐसा बर्ताव कर रहे हैं, जैसे वह व्यक्ति ही कोरोना हो। बाहरी लोगों को देखकर स्थानीय लोगों का भयग्रस्त होना स्वाभाविक है, परंतु व्यवहार ऐसा नहीं हो कि आगंतुक आहत हो जाए। ऐसी विकट घड़ी में आगंतुकों की भोजन, पानी इत्यादि की पूरी सहायता की जाए, लेकिन निर्धारित 14 दिन तक शारीरिक दूरी भी बनाई जाए। आगंतुकों को भी चाहिए कि वे स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए स्वयं ही उनसे दूरी बनाए रखें। गांव में रह रहे अपने परिवारों से भी ऐसी ही दूरी बनाएं। याद रखें यह समय भावनाओं में बहने का नहीं, कठिनाइयों को सहने का है। जो हमारा जितना करीबी है, उसे शारीरिक रूप से हमसे उतना ही दूर रहना होगा।
अंत में सरकार के लिए एक सुझाव है कि क्वारंटीन इत्यादि कार्यों के कारण प्रधान पर भार पड़ने के कारण इस कार्य के लिए ग्रामीणों की समितियां बनाई जाएं, जिनमें वार्ड सदस्य और अन्य लोग शामिल किए जा सकते हैं। कमेटी का फैसला मानने के लिए हर आगंतुक बाध्य हो जाएगा और कठोर निर्णय ग्राम प्रधान की हिचकिचाहट भी दूर हो जाएगी, क्योंकि गांव में अकेला आदमी किसी गलत कार्य करने वाले से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता है।
-डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल, देहरादून
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