पहाड़ के गांवों को आबाद करता मांउट वैली

सफलता हर किसी के जीवन का लक्ष्य है। जीवन चुनौतियों और अवसरों से भरा है लेकिन केवल उन्हीं लोगों के लिए जो वास्तव में अवसरों को प्राप्त करने और चुनौतियों का सामना करने के लिए संघर्ष करते हैं।एसा ही सारी बाधाओं को पार करते हुए ऐसे कुछ कर के दिखाया टिहरी जनपद घनसाली ब्लॉक के दौंणी गांव के रहने वाले माउट वैली डेवलपमेंट एसोशिएशन का स्थापक अवतार सिंह नेगी ने 1985 में माउंट वैली की स्थापना की थी। जिसके माध्यम से वो लगभग सैकड़ों गांव को अपने प्रोजक्टों के जरिये जोड़कर उनके उत्थान व लोगों को रोजगार देने का काम कर रहे हैं। और साथ में कई उत्पातों पर भी काम कर रहे हैं। समाजसेवी माउट वैली के स्थापक अवतार सिंह नेगी से बातचीत की रैबार पहाड़ के सलाहकार सम्पादक दीपक कैन्तुरा ने
- कुशल व्यवहार के धनी डाउन टू अर्थ है अवतार सिंह नेगी
- पिछले 25 वर्षो से पहाड के विकास के लिए निरन्तर काम कर रहे मॉउन्ट वैली।
- महिलाओं के आर्थिक विकास सामाजिक विकास व स्वरोजगार के लिए काम कर रही संस्था
- 30 वर्ष पहले फरीदाबाद से अपने कारोबार छोडकर अपने गांव वापस आए थे। अवतार सिंह नेगी।
- उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के 800 गांवो में सक्रिय रुप से संगठन काम कर रहा है
- कोरोना काल में मॉउन्ट वैली ने लोगों को बांटे निशुल्क मास्क और सैनिटाइजर ।
- आपने कितने गांव को समूह बनाने में जुटे हैं यह प्रेरेणा कहां सी मिली ?
उ- उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश को जोड़कर अभी तक लगभग हमने 300 गाँवों के लगभग 500 से जादा ग्रुप बनाये हैं। जो कृषि, मतस्य पालन, दुग्ध उत्तपादन आदि में लगातार सक्रीय है और लगभग 500 से लोगों स्थाई और अस्थाई तौर पर रोजगार मिल रखा है। अब आपने बात की प्रेरेणा की। मैं बहुत गरीब परिवार से आता था, भोजन काम करने के बाद ही हो पाता था। मैंने जिन्दगी में काफी चुनोतियों का सामना किया। मंजदूरी करके अपनी पढ़ाई की, कॉलेज के आने के बाद छोटा-मोटा काम करता था। मेरे एक गुरु असवाल जी थै जो राष्ट्रपति पुरुस्कार से स्मानित हैं। उनका मेरे लिए बड़ा सहयोग रहा है। छोटे-छोटे संगठन बनाये हैं बचत करना सिखाया और धीरे-धीरे बचत बढ़ती गयी और समुह बनाकर लोगों को खेती और पशुपालन से जोड़ा। पहले हमने पाँच गांवों को चुना और 12 साल तक अपने ही क्षेत्र में काम किया। बहुत लोगों से सम्पर्क हुआ। धीरे धीरे हजारों लोग जुड़ने लगे हैं। माउंट वैली के 500 समूह और 800 गांवों में हमारे प्रोजक्ट चल रहे हैं।
- इन दिनों संगध खेती और जैविक खेती की बड़ी चर्चा है । जैविक खेती में कितनी संभवानाऐ देखते आप ?
उ-पहाड़ का बड़ा दुर्भाग्य है कि खेत बिखरे हुए हैं चकबंदी नही है।जिसकी वजह से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता पर ये है की हम कम जमीन अधिक उत्पादन करें उसमें एक फसल सकरीकण होता है। धान को सकंरीकरण के लिए एक बीज को कम समय में नर्सरी डाल के उका पलान्ट बनाते है। फिर उसी धान से 25 से लेकर 60 तक लगाते है और उसका उत्पादन 3 गुना हो जाता है हम कमपोष्ट की खाद का प्रय़ोग करते है जिसमें कोई कोष्ट भी हो जैसे दही मक्खन मठ्ठा केले के छिल्के गोमूत्र केंचुआ आदि प्रमुख है। घर में अच्छी खाद बनती है और उससे उत्पादन भी अधिक होता है पूरा अर्गेनेक फॉर्म होता है हमारे तीन महिलाओं के तीन फेडिरेशन हैं जो पूरा कृषि बीज को लेके काम करते है। उमंग डेरी के पिछले साल का टन ओवर 1 करोड 3 लाख था वो अपना दूध बेचते है। उनका अपना संगठन है उन्होने एक टाटा एजेंसी खोली है जो 12 सदस्यों का है उसमें 30 प्रतिदिन जाती है उस संगठन को प्रतिमाह 50 से 20 हजार मिल जाता है।
- आप दुग्ध क्षेत्र में काफी काम कर रहे है डेयरी के क्षेत्र में क्या सम्भावनाएं है ?
- हमने दुग्ध क्षेत्र में उन्ही लोगो को प्रमोट किया है जो पहाड में रहते है बाहर से हमने कुछ भी नही मगंवाया है हमारे बहुत सारे प्रोजेक्ट मनरेगा के साथ जुडे हुए है।
· ब्लॉक से लेकर राज्य गारमेन्ट तक इसकी एडवोकेसी की। अपर सचिव को लेकर भारत सरकार तक मनरेगा का मॉडल बनाने में बहुत बडा हाथ रहा है कई जगह हमारा हाथ भी रहा है गावों के अधिकतर घरों में गाय भैसें पाली जाती हैं और उनका दूध निकाल कर उसका व्यापार किया जाता है। गाय भैसों के चारे के लिए कई तरह की घास को उगायी जाती है इसके लिए बैंक से भा लॉन दिलाया जाता है जो भारत सरकार की डीडी योजना है।
60 लाख की योजना उत्तराखंड ग्रामिण बैंक से नाबार्ड के माध्यम से दी गई थी जिसमें से 100 प्रतिशत उनकी रिकवरी हुई है जो महिलाओं के संगठन है उनकी हर महिने की 2 तारीख को बैठक होती है इनकी आय व्यय का एक बिजनेस प्लान भी बनता है। जो तीसरी संगठन है वो गॉरमेन्ट को लेकर कार्य करता है हमारे पास वर्तमान में 8 मशीने है जिनमें 300 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है मैने देखा है कि महिलाओं की रुचि खेती से ज्यादा गॉरमेन्ट कार्य में अधिक है।
- आपकी भविष्य को लेकर क्या योजनाएं है?
उ.- हमारी कोशिशें है कि पहाडों में फूलो की खेती जडी-बूटी, मतस्य पालन, पशुपालन, बागवानी, के अलावा हमारे लक्ष्य़ हैं कि कम जमीन में अधिक से अधिक उत्पादन हो सके। क्योकि उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में कृषि और बागवानी में अपार संभनाए है बागवानी में एक बार का निवेश है यदि सही से बागवानी की जाए तो आपके आर्थिकी को मजबूत कर सकता है। वहीं कृषि क्षेत्र में जैविक खेती की भारी संभावनाएं है किसाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाओं का सृजन भी कर दिया है जिससे अब किसानों को अपने उत्पादो को सीधे मंडी में बेचने की सुविधा भी उपल्बध की है। इतना जरुरी है मेहनत की अति आवश्यक्ता है
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