सादर सेवा-सौळि दगड़्यों। आजकल कुम्भ मेळु लग्यूं च, त ये अवसर पर अपड़ि एक नईं कविता लीक तैं आप सबु का बीच उपस्थित छौं। आशा च आप तैं मेरी य कविता भी जरूर पसंद आलि।

लैगि कुंभ फेर ऐंसु , हरिद्वार धाम।

भजदा भगत ऐक यख , प्रभु तेरो नाम।

कुंभ की कथा सुणौंदु ,लगदु के यु मेळु।
दुरु दुरुन औंदा लोग , जुड़दु के यु थौळु।
जब प्राण संकट मा ऐन , इंद्र देवराज।
तबविष्णु जी की शरण गैन,छोड़ि राज काज।
समोदर मथण प्रभो , उपाय बताई।
देवता दैत्य कट्ठा सबुन , काज यू निभाई।
क्षीर सागर मथेगि , समोदर छोळेगी।
मंदराचल कि मथणी,बासुकी नेतण बणीगे।
मुख बटीन दैंत लैगि , नाग तैं खैंचण।
पुछड़ि देबतौं न पकड़ि , लैगिन मथण।
पर मंदराचल त डूबण लैगि,ह्वैगि बिघ्न भारी।
तब कच्छप को रूप धैरि, विष्णु अवतारी।
समोदर मा जैक सारी , विपदा दूर कैरि।
पर्बत उठैन पीठी , रिंगण बैठि रौड़ी।
पर इनु क्य ह्वै अनर्थ,कालकूट उबजि ग्यायी।
सृष्टि म चौतरफा , त्राहि त्राहि मची ग्यायी।
धरती म तब ऐन शिबजि, बागम्बर धारी।
बिषपान कैरि प्रभु , बचै सृष्टि सारी।
हलाहल पीनि सारू , कंठ मा समायी।
तबरि बटिन बाबा भोले , नीलकंठ ह्वायी।
फिर त एक एक कैक , कै रतन ऐन।
सुख चैन कैक द्विई , दलौं मा बंटेन।
उच्चैश्रवा घोड़ू निकळि , ऐरावत हाथी।
कामधेनु कल्पवृक्ष , डाळि पारिजाति।
पांचजन्य शंख चंद्र , वारुणी अर रम्भा।
धन्वन्तरि लक्ष्मी जी , कौस्तु मधु कुम्भ।
पर अमरत देखिक तौंमा, ह्वैगि मारा मार।
खैंचा तकड़ि द्वि दलौं म , जुद्ध ह्वै अपार।
घड़ु उठैलि देबतौं न , उड़ीग्या आगास।
दैंत पीछा पीछी तौंका , अमृता का सास।
कै जगौं त तौमा , पौंठाजोड़ी होण लैगि।
छीना झपटी अमरत, कै जगौं मा खतेगी।
कुछ खतेणि नासिक , उज्जैन हरिद्वार।
कुछ खतेणी तीरथों का , राजा परियाग।
जख जख खतेणी , तख लगदु कुम्भ मेळु।
बारा बरसु बाद जुड़दु , यूँ जगौं मा थौळु।
सुख शांति चौतरफा , दुख न कै बिमारी।
जस कुशल रौन सब्बि , अर्ज या हमारी।।
रचना-
बेलीराम कनस्वाल
भेट्टी, ग्यारह-गौं,घणसाळि,टीरी गढ़वाळ।