सौदागरों के चक्रव्यूह में फंसता उत्तराखण्ड
जयदीप झिंक्वांण, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तराखण्ड की डर्टी पॉलिटिक्स से शायद ही कोई वाकिफ नहीं होगा। भाजपा- कांग्रेस में लंपट और दुराचारी की एक बहुत बड़ी फौज है। जो प्रदेश का अनहित करने के लिये हर वक्त तैयार बैठी रहती है। उत्तरप्रदेश से इस राज्य को आजादी मिले इक्कीस साल बीतने को हैं। इस लिये भी हम आजादी शब्द का इस्तेमाल करेंगे। क्यूंकि बड़ी तादाद में आंदोलनकारियों ने समृद्ध राज्य बनाने के लिये भारत की स्वतंत्रता की तर्ज पर अपनी कुर्बानी दी है। जिनको राज्य बनने के बाद आज तक इंसाफ नहीं मिल पाया। जिनके पीड़ित आज भी न्याय के लिये दर-दर भटक रहे हैं। समय-समय पर सत्ता का सुख भोग रहे भाजपा- कांग्रेस ने अपने निजी स्वार्थ के लिये, यहां के जल, जंगल, जमींन तक माफियाओं के हाथों बेच डाले। सत्ता के इन मगरमच्छों ने आज पूरे प्रदेश को निगल दिया। जिसके डकार तक नहीं लिये। इस प्रदेश का दुर्भाग्य रहा की विकास की फैक्ट्री लगने के बजाय मुख्यमंत्री को बदलने की फैक्ट्री यहां स्थापित की गयी। जिसकी शुरूआत भाजपा ने की थी। अपने निजी स्वार्थ की सौदाबाजी से लिये स्वेत वस्त्रधारी और भगवाधारी चांडालों ने पाला बदलना शुरू किया। जो आज तक देखने को मिल रहा है। इन चांडालों की तरफ से भाड़ में जाये जनता, भाड़ में जाये विकास, बस सत्ता की कुर्सी बनी रहनी चाहिये, यही इनका मकसद रहा। यहां के बेरोजगार दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े महानगरों में कर्छी कंमाडर बने हुये हैं। जो अपना घर-बार त्याग कर दो जून की रोटी के लिये दर-दर भटक रहे हैं। खैर छोड़ये, कुछ विधायक सत्ता में रहते हुये जनता के काम के लिये समर्पित होना चाहते हैं। लेकिन उन्हें मौजूदा सरकार ने रहते हुये बंदर भाड़े में कैद करके रखा। जिसका दंश आज भी कई विधायक झेल रहे हैं। कई बार तो नौबत यह आई कि विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, लेकिन उनके विरोध का असर सत्ता का बाल भी बांका नहीं कर पाया। ये इतने खतरनाक, दुर्दांत और आदमखोर हैं। इनका कुरूप देखने को उत्तराखण्ड में तब मिला जब इन्होंने लोकतंत्र की हत्या कर दी थी। इस दौरान जनता के विकास के पहिये की गति थम गयी थी।
अब २०२२ विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसे ही देखने को मिल रहा है। भाजपा- कांग्रेस सिर्फ नाम की रह गयी हैं । लेकिन चंडाल चौकड़़ी एक है।
शुरूआत करते हैं। हरक सिंह रावत से, ये भाई साहब यूपी से उत्तराखण्ड तक छह बार विधायक रह चुके हैं और अपनी धमक से मंत्री भी बने हैं। ये किसी के नहीं है। बसपा, सपा, जनता पार्टी, कांग्रेस, भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। जिस भी पार्टी का दामन थामा असहज ही महसूस किया। पता नहीं क्या चाहते हैं। अब पाला बदलने की सोच रहे हैं। ये सत्ता के गलियारों से खबर आ रही है। हम नहीं कह रहे हैं। ये कई बार कह चुके चुनाव नहीं लड़ना है। यहां तक धारी देवी की कसम तक खा चुके हैं। इन्हें अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने किये भगवान का भी डर नहीं लगता, जबकि हरक दादा बहुत बड़े धार्मिक व्यक्ति है, ये उनके चारण करते हैं। विवादों से इनका पुराना नाता रहा है।

दूसरा नंबर पर आते हैं, खानपुर विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन का, जो अपने आप को आईएफएस क्वालिफाइड हैं। लेकिन ये पढ़े लिखे अनपढ़ लगते हैं। इनके बड़बोलापन ने इनको कईबार उलटे मुंह गिराया, शनिवार को गृह मंत्री अमित शाह के मंच पर इनको जगह नहीं मिली और मुंह की खाकर चले गये। ये भाई साहब पत्रकारों को धमकी देते हैं। कहते हैं किसी भी विषय पर मुझसे डिबेट कर ले, लेकिन पत्रकारिता विषय पर इनको डिबेट करने के लिये कहा जाय तो, ये बौने साबित हो जायेगें । शायद कभी इनका पाला किसी ज्ञानवान पत्रकार से नहीं पड़ा होगा। जो इनकी सारी हेकड़ी निकाल दे। खैर पत्रकार भी करें क्या, मीडिया फील्ड आज कार्पोरेट घरानों का दामाद बन चुका है। वर्तमान समय में पत्रकारिता की हालत ऐसी हो चुकी है। जैसे रास्ते में पड़ी कुतिया के समान, जिसे कोई भी लात मार सकता है।
तीसरे नंबर पर आते हैं, प्रीतम सिंह पंवार जो भाजपा का दामन थाम चुके हैं। यूकेडी पार्टी के ये सबसे बड़े गुलाटीमार हैं। जो अपनी पार्टी को अनाथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये। वो विधासभा की जनता को कैसे सनाथ बनायेंगे, कभी ये कांग्रेस सरकार में भी मिनिस्टर रह चुके हैं। खैर यूकेडी पार्टी इस वक्त वेंटिलेटर पर है और अंतिम सांसे गिन रही है। आज यूकेडी के हालत ऐसी हो गयी है, जो अंधेरे में अपना रास्ता ढूंढ रही है, लेकिन उजाला करने वाला कोई नहीं दिखाई दे रहा। इस पार्टी से जितने भी विधायक बने और मौजूदा सरकार में मंत्री रहे उन्होंने उसी पार्टी की गोद भराई की। उसके बाद वो उनही के हो गये।

चौथे नंबर पर आते हैं पुरोला विधायक राजकुमार जो पहले कांग्रेस के थे, अब भाजपा में शामिल हो गये।
पांचवें नंबर पर आते हैं, विधायक कैंड़ा जो अभी हाल ही के वक्त में भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा- कांग्रेस में इस वक्त २०-२० वर्डकप चल रहा है। वर्डकप कौन जीतेंगा ये दिसंबर तक पता चल पायेगा। हरीश रावत कभी लेग स्टंप का विकेट ढूंढते तो, कभी ऑफ स्टंप का, हालांकि उन्हें कामयाबी भी मिली है, लेकिन मुख्यमंत्री धामी ने भी ने पावर प्ले में अधिक रन बनाने की सोच ली है। जिससे उनकी टीम वर्ड कप जीत सके ये उनका प्रयास है। दिसंबर तक ये जोड़तोड़ भाजपा- कांग्रेस में देखने को मिलेगा। इधर से उधर शामिल हुये भाजपा कांग्रेस के विधायक की वजह से जनता अनाथ हो गयी है। अब उनका माई- बाप कोई नहीं रहा। सरकार किसी की भी आये पॉलिसी वही रहेगी। यहां सौदागरों की फौज है, जो उत्तराखण्ड को चक्रव्यू में फंसाने की साजिश करेगी और विकास के मुद्दे कोसों दूर छूट जायेंगे। ये हर सरकार में देखने को मिलेगा।
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