हिमालय को शोध कें केंद्र में रखें हिमालय क्षेत्र के विश्वविद्यालय: निशंक

 हिमालय को शोध कें केंद्र में रखें हिमालय क्षेत्र के विश्वविद्यालय: निशंक

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गढ़वाल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बोले केंद्रीय शिक्षा मंत्री

मानव जाति की सेवा कर देवभूमि का ऋण चुकाएं डिग्री धारक छात्र


देहरादूनः आप लोगों ने हिमालय में साधना की है, अध्ययन-ज्ञानार्जन किया है, हिमालय के गुण ग्रहण किए हैं। अब समय आ गया है इन सबको पूरे भारत और विश्व के लिए उपयोगी बनाएं, मानवजाति की सेवा करें और इस पुण्य देवभूमि का ऋण चुकाएं। हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए यह भावभरा आह्वान था केंद्रीय मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक का। मौका था-विश्वविद्यालय के आठवें दीक्षांत समारोह का।

पर्यावरण में हिमालय के योगदान और मानवजाति के कल्याण में हिमालय के महत्त्व को रेखांकित करते हुए डाॅ. निशंक ने पीजी और पीएचडी कर चुके छात्रों का आह्वान किया कि कठिन परिश्रम के बूते स्वयं को अपने-अपने क्षेत्रों में सिद्ध करें, क्योंकि आप लोगों के सामने असली चुनौतियां और सवाल अब खड़े हैं। जिस प्रकार गंगा उत्तराखंड से निकलकर करोड़ों लोगों के पाप धोते हुए गंगा सागर में मिल जाती है, उसकी प्रकार आप लोग इस धरती से निकलकर देश-दुनिया के दुःख हरने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाएं। उन्होंने कहा कि हिमालयी विश्वविद्यालयों को हिमालय पर केंद्रित शोध को प्राथमिकता देकर इसका उपयोग पूरी मानव जाति के कल्याण के लिए करना होगा। हिमालय में जैवविविधता है, यह जड़ी-बूटियों का उत्पादक है, यहां नाना प्रकार की वनस्पति है, यह पर्यावरण की पहली पाठशाला है, यह संपदाओं का खजाना है, इसकी अद्भुत संरचना है, इस पर बहुत अध्ययन और शोध की आवश्यकता है। हिमालय पलायन रोकने में कारगर साबित हो सकता है। हिमालय उत्तराखंड के लिए ही हितकारी नहीं, पूरे भारत और विश्व के लिए कल्याणकारी है। नरेंद्र को विवेकानंद बनाने वाला यह हिमालय ही है।

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अध्ययन और शोध में गढ़वाल विश्वविद्यालय की प्रगति की सराहना करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं भी इस विश्वविद्यालय का छात्र रहा हूं। उन्होंने विश्वविद्यालय का आह्वान किया कि वह नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए। यह नीति आत्मनिर्भर भारत का सर्वश्रेष्ठ दस्तावेज है। दुनिया के अनेक देश आज इसकी खूबियों के लिए हमारी सराहना कर रहे हैं और इसे अपने यहां लागू करने को उत्सुक हैं। यह नीति रोजगार ही नहीं देगी, विश्वशांति स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाएगी, क्योंकि यह ’वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा और मानव मूल्यों पर आधारित और केंद्रित है।

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विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो.धीरेंद्र पाल सिंह ने गढ़वाल विश्वविद्यालय में बिताए अपने शोध काल के समय को याद करते हुए छात्रों का आह्वान किया कि वे संस्कारों को साथ लेकर जाएं। 

कुलाधिपति डाॅ. योगेंद्र नारायण ने डाॅ. निशंक का परिचय देते हुए कहा कि 75 से अधिक पुस्तकों के रचयिता, अनेक देशों से पुरस्कार प्राप्त और नई शिक्षा नीति जैसी महत्त्वपूर्ण पाॅलिसी को लाने वाले ऐसे केंद्रीय मंत्री पर पूरे देश को गर्व है। उन्होंने डाॅ. निशंक को हाल ही में ’वातायन’ अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मान से अलंकृत किए जाने और कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा नई शिक्षा नीति में बेहतर सुधारों के लिए सम्मानित किए जाने का जिक्र करते हुए उन्हें बधाई दी।

कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने विश्वद्यालय की उपलब्धियां गिनाते हुए आत्मनिर्भर भारत, वोकल फाॅर लोकल जैसे अभियानों और नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में विश्वविद्यालय की ओर से यथासंभव योगदान देने की घोषणा की। पर्यावरण के क्षेत्र में डाॅ. निशंक की उपलब्धियों और स्पर्श गंगा, नमामि गंगे, स्पर्श हिमालय अभियान में उनकी महत्त्वपूर्ण भागीदारी की सराहना करते हुए प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने कहा कि इस विश्वविद्यालय की प्रगति में डाॅ. निशंक का बड़ा योगदान है, क्योंकि वे यहां के हर कार्य और विकास में गहन रुचि लेते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय कोविड-19 काल की चुनातियों का बखूबी सामना कर रहा है। कुछ माह पहले तीनों परिसरों में कोविड नियमों का पालन करते 48 हजार छात्र-छात्राओं की आॅनलाइन परीक्षाएं आयोजित की गईं। छात्रों को आॅनलाइन अध्ययन कराया जा रहा है, हमारे यहां ई-बुक उपलब्ध हैं।

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कार्यक्रम में कला, संचार एवं भाषा, लाॅ, जीव विज्ञान, प्रबंधन, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान के 1117 विद्यार्थियों को पीजी, 137 को पी-एचडी, 12 को एमफिल डिग्रियां दी गयीं तथा 42 विद्यार्थियों को स्वर्णपदक प्रदान किए गए। कुलपति डाॅ. एनएस पंवार ने अतिथियों का धन्यवाद किया। इस वर्चुअल कार्यक्रम में डाॅ. बीए बौड़ाई, डाॅ. एससी बागड़ी, प्रो. एएन पुरोहित, डाॅ. दिनेश नौरियाल,प्रो. सुमित्रा कुकरेती, पर्वतारोही बछेंद्री पाल, डाॅ. कैलाशचंद्र शर्मा, प्रो. मृदुला जुगरान समेत विभिन्न संकायों के अध्यक्ष तथा अनेक विश्वविद्यालयों के कुलपति उपस्थित थे।


(डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल)

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