नमिता बिष्ट
देहरादून। आज 25 अक्टूबर को इस साल का आखिरी सूर्यग्रहण है। इस का दुष्प्रभाव उत्तराखंड में भी देखने को मिलेगा। जिसके चलते चारों धामों सहित सभी छोटे बड़े मंदिरों के कपाट बंद रखे गए है। इस अवधि में किसी भी श्रद्धालु को पूजा और दर्शन करने की अनुमति नहीं होती है। लेकिन उत्तराखंड का एक ऐसा भी मंदिर है जिसे ग्रहण के दौरान बंद नहीं किया जाता है। तो चलिए जानते है इस मंदिर के बारे में..
ग्रहण के दौरान आज भी कल्पेश्वर मंदिर बंद नहीं
सीमांत चमोली जिले के उर्गम घाटी में कल्पेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर के कपाट किसी भी ग्रहण काल में बंद नहीं होते हैं। यह परंपरा पौराणिक कल से सतत चली आ रही है। 24 घंटे यह मंदिर खुला रहता है और कभी भी इस मंदिर के गर्भगृह में ताला नहीं लगाया जाता है। मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव के जटाओं से गंगा को रोका जाता है। इसलिए ग्रहण काल में भी ये मंदिर खुला रहता है।
मंदिर में शिव के उलझे हुए बालों की पूजा
कल्पेश्वर मंदिर “पंचकेदार” तीर्थ यात्रा में पांचवे स्थान पर आता है | इस मंदिर परिसर में “जटा” या हिन्दू धर्म के मान्य त्रिदेव में से एक “भगवान शिव जी” के उलझे हुए बालो की पूजा की जाती है | कल्पेश्वर मंदिर के पुजारी दक्षिण भारत के नम्बुदी ब्राहमण है | इन पुजारी के बारे में कहा जाता है कि पुजारी आदिगुरु शंकराचार्य के शिष्य है |
ऋषि दुर्वासा ने यहीं पर की थी तपस्या
कल्पेश्वर का मुख्य मंदिर भक्तों के मध्य ‘अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव’ के नाम से प्रसिद्ध है | शिवपुराण के अनुसार, ऋषि दुर्वासा ने इसी स्थान पर वरदान देने वाले कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी और तभी से यह स्थान “कल्पेश्वर” कहलाने लगा। केदारखंड पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है| इसके अलावा अन्य कथा के अनुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था |
शाप से मुक्ति पाने के लिए इंद्र ने की थी शिव अराधना
कल्पेश्वर मंदिर कल्प्गंगा में स्थित है। कल्प्गंगा को प्राचीन काल में “हिरण्यवती” नाम से पुकारा जाता था| इसके दाहिने ओर तट की भूमि दुरबसा भूमि कही जाती है | इस स्थान पर ध्यान बद्री का मंदिर है| कल्पेश्वर चट्टान के पास में एक पुराना गड्ढा है| जिसके भीतर गर्भ में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है| यह भी कहा जाता है कि देवग्राम के केदार मंदिर पर पहले कल्पवृक्ष था और यहाँ देवताओं के राजा इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्ति पाने के लिए शिव-आराधना कर कल्पतरु प्राप्त किया था|
यहीं पर हुई थी देवताओं और दानवों की बैठक
कल्पनाथ प्रबंध समिति के सचिव रघुबीर सिंह नेगी का कहना है की शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान शिव ने जटाओं से मां गंगा को रोका था। इसलिए यहां कपाट बंद नहीं होते। समुद्र मंथन के दौरान यहीं पर देवताओं और दानवों की बैठक हुई थी। ग्रहण के दौरान आज भी कल्पेश्वर मंदिर बंद नहीं है।
‘कलेवर कुंड’ के जल पीने से मिलती है रोगों से मुक्ति
बता दें कि इस मंदिर में भगवान शिव की स्वयंभू जटाएं एक उभरी हुई शिला के रूप में शोभायमान हैं। मन्दिर के समीप एक ‘कलेवर कुंड’ स्थित है, जिसका जल सदैव स्वच्छ रहता है। तीर्थयात्री यहाँ से पवित्र जल ग्रहण करते हैं और उसे पी कर अनेक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं।

Explore the ranked best online casinos of 2025. Compare bonuses, game selections, and trustworthiness of top platforms for secure and rewarding gameplaycasino activities.