गोविंद सिंह की नियुक्ति: बौद्धिकता और जनसुलभता का नया संगम?



उत्तराखंड के पत्रकारिता और प्रशासनिक परिदृश्य में हाल ही में एक ऐसी नियुक्ति हुई है, जो न केवल चर्चा का विषय बनी है, बल्कि अतीत और वर्तमान के बीच एक साहित्यिक संनाद की तरह उभरी है। वरिष्ठ पत्रकार, भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व डीन और अंतरराष्ट्रीय मामलों के गहन विश्लेषक प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह को उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री की मीडिया सलाहकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह समाचार जहाँ एक ओर उनके प्रशंसकों और परिचितों के लिए हर्षोल्लास का कारण है, वहीं दूसरी ओर यह प्रश्न भी उठाता है कि क्या इतने विशाल व्यक्तित्व और बौद्धिक कद वाला व्यक्ति इस भूमिका में वह सहजता और जनसुलभता ला पाएगा, जो सूचना विभाग के वर्तमान महानिदेशक (डीजी) बंशीधर तिवारी ने अपने अद्वितीय आचरण से स्थापित की है।

गोविंद सिंह: बौद्धिकता और पत्रकारिता का एक युग

प्रो. गोविंद सिंह का नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में एक ऐसी शिखर-संस्था का पर्याय है, जिसने न केवल समाचारों को विश्लेषित किया, बल्कि समाज और राष्ट्र की चेतना को दिशा दी। 90 के दशक में, जब नवभारत टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र अपनी स्वर्णिम ऊँचाइयों पर था, गोविंद सिंह इसके संपादकीय विभाग के कर्णधार थे। उनके लेख, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मामलों पर, न केवल पाठकों को वैश्विक परिदृश्य की गहराई तक ले जाते थे, बल्कि नीति-निर्माताओं के लिए भी एक दर्पण का काम करते थे। उनकी लेखनी में गहन अनुसंधान, तार्किक विश्लेषण और साहित्यिक शैली का वह संगम था, जो पाठक को विचार के सागर में डुबो देता था।
मेरे जैसे एक जिला संवाददाता के लिए, जो साल में एक बार प्रेस कार्ड के नवीनीकरण के लिए उनके दफ्तर 7, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली पहुँचता था, गोविंद सिंह का व्यक्तित्व एक प्रेरणा था। उनकी सौम्य मुस्कान और संक्षिप्त किंतु हार्दिक अभिवादन में वह सहजता थी, जो एक वरिष्ठ संपादक और नवोदित पत्रकार के बीच की दूरी को पाट देती थी। आज, जब वह मेरे फेसबुक मित्रों की सूची में हैं, तो यह निजी गर्व का विषय है कि मैं उस युग का साक्षी रहा हूँ, जब उनकी कलम ने पत्रकारिता को एक नई ऊँचाई दी।
बंशीधर तिवारी: जनसुलभता का एक अनुपम प्रतीक
दूसरी ओर, उत्तराखंड के सूचना विभाग के महानिदेशक बंशीधर तिवारी का व्यक्तित्व और कार्यशैली एक ऐसी कथा है, जो प्रशासनिक दूरी और जनसंपर्क के बीच एक अभूतपूर्व संतुलन रचती है। तिवारी न केवल एक कुशल आईएएस अधिकारी हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी हैं, जिन्होंने सूचना तंत्र को एक जीवंत और समावेशी मंच में बदल दिया। उत्तराखंड के 25 वर्षों के इतिहास में शायद ही कोई सूचना माहनिदेशक उनकी लोकप्रियता और प्रभाव के समकक्ष ठहर सके। पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार जैसे दिग्गज भी इस पद पर रहे, किंतु तिवारी की जनसंपर्क कला ने उन्हें एक अनूठा स्थान दिलाया।
तिवारी की विशेषता उनकी वह सहजता है, जो हर छोटे-बड़े पत्रकार को अपनेपन का अहसास कराती है। चाहे वह एक स्थानीय अखबार का संवाददाता हो या किसी राष्ट्रीय चैनल का प्रतिनिधि, तिवारी का दरवाजा सभी के लिए खुला रहता है। उनकी कार्यशैली में वह पारदर्शिता और संवेदनशीलता है, जो पत्रकारों के मन में उठने वाले असंतोष को शांत कर देती है। एक उदाहरण है, जब हाल ही में एक क्रांतिकारी युवा नेता ने उन पर विज्ञापन से संबंधित आरोप लगाया था। यह मामला भले ही उनके कार्यकाल से जुड़ा नहीं था, किंतु सोशल मीडिया पर उनके पक्ष में उठी समर्थन की लहर ने उनकी लोकप्रियता को और सिद्ध किया।
तिवारी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की छवि को न केवल स्थानीय, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चमकाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चाहे वह यूट्यूब की प्रसिद्ध ट्रैवल ब्लॉगर करली टेल को मुख्यमंत्री के हाथों पहाड़ी व्यंजनों की थाली परोसना हो, या छोटे-छोटे समाचार पत्रों में सरकार की उपलब्धियों को स्थान दिलाना, तिवारी ने हर अवसर को एक सकारात्मक कथा में बदला। उनकी यह कला, जो प्रशासनिक दक्षता और मानवीय संवेदना का मिश्रण है, उन्हें उत्तराखंड के पत्रकारिता जगत में एक मित्र, मार्गदर्शक और संकटमोचक बनाती है।
एक तुलनात्मक चिंतन: क्या गोविंद सिंह तिवारी की छाया में चमक पाएंगे?
गोविंद सिंह की नियुक्ति पर हर्ष व्यक्त करते हुए भी मन में एक प्रश्न उठता है—क्या वह तिवारी की उस जनसुलभता और गतिशीलता को आत्मसात कर पाएंगे, जो उत्तराखंड जैसे राज्य में मीडिया सलाहकार की भूमिका को परिभाषित करती है? गोविंद सिंह का कद निस्संदेह विशाल है। उनकी बौद्धिक गहराई, पत्रकारिता में योगदान और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर उनकी पकड़ उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्व बनाती है। किंतु, तिवारी का आचरण, जो एक प्रमुख विभाग की शक्ति और एक मित्र की सहजता का संगम है, एक ऐसी विरासत है, जिसे अपनाना किसी भी नवागंतुक के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
तिवारी ने जहाँ पत्रकारों के साथ व्यक्तिगत संबंधों को प्राथमिकता दी, वहीं गोविंद सिंह का अतीत अधिकतर संपादकीय और शैक्षणिक क्षेत्रों में रहा है। उनके लेखन और शिक्षण ने देश के पत्रकारिता जगत को दिशा दी, किंतु क्या वह उस प्रत्यक्ष संवाद और त्वरित प्रतिक्रिया की कला को अपनाएंगे, जो तिवारी ने अपने कार्यकाल में प्रदर्शित की? उत्तराखंड जैसे राज्य में, जहाँ मीडिया का परिदृश्य छोटे-बड़े पत्रकारों और अखबारों का मिश्रण है, यह आवश्यक है कि सलाहकार न केवल नीतिगत दृष्टिकोण से मजबूत हो, बल्कि भावनात्मक रूप से भी सुलभ हो।
शीशपाल गुसाईं, वरिष्ठ पत्रकार
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