शंकर सिंह भाटिया
देहरादून। मतदान के तुरंत बाद भाजपा में भितरघात के आरोप लगने लगे थे, एक के बाद एक सात भाजपा प्रत्याशियों ने इस संबंध में आरोप लगाए, बाद में इनकी संख्या बढ़ने लगी और करीब एक दर्जन हो गई। भाजपा में किस प्रत्याशी के साथ भितरघात हुआ कितना हुआ? यह अलग सवाल है, लेकिन यह तय है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ बहुत बड़ा भितरघात हुआ है। पूरी प्लानिंग के साथ पार्टी के अंदर के ही कुछ बड़े किरदारों ने इसमें भूमिका निभाई है, ऐसी पुख्ता सूचनाएं निकलकर बाहर आ रही हैं। इसके परिस्थितिजन्य प्रमाण मौजूद हैं, जिन्हें खुली आंखों से देखा जा सकता है।
इस चुनाव में मतदान के बाद भाजपा के कम से कम एक दर्जन उम्मीदवारों ने भितरघात के आरोप लगाए थे। भितरघात का मतलब है पार्टी के अंदर ही अपने प्रत्याशी को हराने के लिए काम किया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐसे कोई आरोप नहीं लगाए, लेकिन पूरे चुनाव में एक तरफ वह अपनी सीट को देखते रहे, दूसरी तरफ दल का नेता होने के नाते अन्य प्रत्याशियों के क्षेत्र में भी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। तब एक बात सामने आई थी कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अकेले पूरे राज्य में दौरे कर रहे हैं, पार्टी के दूसरे बड़े नेता अपने क्षेत्र से बाहर नहीं निकल रहे हैं। इस वजह से वह अपने क्षेत्र में पूरा समय नहीं दे पाए।
जहां तक भितरघात की बात है, पिछले दो चुनावों में जो उन्होंने जीते तब भी स्थानीय स्तर पर भितरघात हुआ है। ये चिन्हित लोग हैं, इस बार भी उन्होंने अपना काम किया है, लेकिन इस बार का भितरघात यहीं तक सीमित नहीं रहा। इस बार भितरघात को लेकर कुछ बड़े नामों की चर्चा है। चूंकि भाजपा हाईकमान ने पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, इस स्थिति में पूर्ण बहुमत से या फिर जोड़-तोड़ से सरकार बनने की स्थिति में उन्हें ही मुख्यमंत्री बनना तय था। पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर करने का एक ही रास्ता हो सकता था कि उन्हें चुनाव में हराया जाए और भिरतघातियों ने यह कर दिखाया।
भितरघात के लिए किस तरह की कूटरचना की गई, इसके संकेत भी सामने आ रहे हैं। खटीमा सीट पर मतदाता वर्ग पर नजर डालते हैं तो वहां सबसे अधिक पहाड़ी वोटर हैं, तो दूसरे स्थान पर थारू जनजाति के लोग हैं। इसके अलावा पंजाबी, बनिया और मुस्लिम समुदाय का भी अच्छा खासा वोट वर्ग वहां मौजूद है। पहाड़ी और थारू मतदाता इस सीट पर निर्णायक स्थिति में हैं। भाजपा-कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार पहाड़ी वर्ग से आते हैं, पहाड़ी वोटरों पर दोनों का अपना प्रभाव रहा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी का प्रभाव पहाड़ी वोटरों में अधिक हो गया, लेकिन धामी के प्रभाव को पहाड़ी वोटर में कम करने के लिए धामी के खिलाफ पंडितवाद चलाया गया।
इस क्षेत्र में पहाड़ी वोटरों के बाद थारू वोटर सबसे अधिक हैं। उन्हें धामी के खिलाफ करने के लिए एक सूचना प्रसारित कराई गई कि यदि भाजपा सत्ता में आती है और धामी मुख्यमंत्री बनते हैं तो थारूओं की जमीन उनके हाथ से चली जाएगी। गौरतलब है कि बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी रमेश सिंह, जो कि थारू वर्ग से हैं को इस बार सिर्फ 937 वोट मिले हैं, 2017 के चुनाव में इन्हें 17 हजार से अधिक वोट मिले थे। थारू वोट को प्रभावित करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया। इस सूचना को घर-घर पहुंचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया। कांग्रेस प्रत्याशी इतने सक्षम नहीं थे, वह इतना खर्च कर पाते। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि यह पैसा देहरादून और दिल्ली से आया था। यही वजह थी कि कांग्रेस प्रत्याशी विज्ञापन प्रकाशन से लेकर वाहनों के संचालन में बहुत बड़ी राशि खर्च की। इसको लेकर भी लोग आश्चर्यचकित थे। सूत्र बताते हैं कि यह पैसा बहुत बड़ी मात्रा में दिल्ली और देहरादून के स्रोतों से खटीमा पहुंचा। इससे कांग्रेस प्रत्याशी का मजबूती से प्रचार किया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि थारू समुदाय के वोट एकमुश्त कांग्रेस प्रत्याशी को दिलाने के लिए इस पैसे का बहुत ही रणनीतिक तरीके से उपयोग किया गया।
अब तक की स्थिति के अनुसार खटीमा सीट से सबसे बड़े वोट वर्ग पहाड़ियों पर धामी का प्रभाव सबसे अधिक रहा है, जिसके दम पर वह पिछले दो चुनाव जीते हैं। भाजपा के प्रभाव से दूसरे वोट वर्ग से भी उन्हें वोट मिलते रहे हैं। पहाड़ियों के बीच ठाकुर-पंडितवाद चलाकर उन्हें तोड़ने की कोशिश हुई है। इसमें बहुत अधिक सफलता मिलने की संभावना नहीं दिखती। लेकिन यूनिफार्म सिविन कोड के नाम से मुुस्लिम और जमीनों के नाम से थारू वर्ग को एकतरफा धामी के खिलाफ किया गया। बहुत बड़ी मात्रा में पैसा बहाए बिना यह सब कर पाना संभव नहीं था।
इस तरह खटीमा सीट पर पहाड़ी वोटरों में ठाकुर-पंडितवाद चलाया गया। मुस्लिम वोटरों में को धु्रवीकृत करने के लिए यूनिफार्म सिविल कोड के नाम से डराया गया और थारू वोटरों को भाजपा से दूर करने के लिए भाजपा के सत्ता में आने पर उनकी जमीनों को दूसरे समुदायों के नाम करने को लेकर डराया गया। खटीमा में जो इस तरह का धु्रवीकरण बना वह धामी के हार का कारण बना। इसके लिए दिल्ली और देहरादून से आई धन की बड़ी खेप ने बड़ा काम कर दिया। इस पैसे के पीछे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए कुछ स्थापित नामों की ओर भी इशारा किया जा रहा है। हालांकि भाजपा के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीज ने भितरघात को फिजूल की बात कह कर दरकिनार करने की कोशिश की है। यदि ऐसे भिरतघातियों पर एक्शन नहीं हुआ तो पार्टी के भविष्य के लिए यह घातक हो सकता है। यदि 2012 में कोटद्वार सीट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को हराने के लिए भितरघातियों के कृत्यों की उन्हें सजा दिलाई गई होती तो शायद यह घटना फिर से नहीं होती। भितरघात की इस तरह की घटनाएं भविष्य में भाजपा जैसी अनुशासित कही जाने वाली पार्टी के लिए नासूर बन सकती हैं।

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