
देवी भागवत में ध्याणियों को देवी का प्रतिरूप मानकर पूजन किया गया
कोई भी यज्ञ हो धार्मिक कार्य हो उसमे दिशा ध्याणियों को जरूर बुलाना चाहिए तभी यज्ञ की सफलता होती है सबसे पहले सम्मान ध्याणियों का होने पर देवताओं को दी जाने वाली आहुतियों से देवता भी प्रसन्न होते हैं यह बात ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं जी ने गोपेश्वर मंडल में अनुसुइया माता मंदिर में चल रही श्रीमद्देवी भागवत महापुराण में व्यक्त करते हुए कहा कि भगवती योगमाया की अन्तःप्रेरणा से भगवान विष्णु प्रतियुग में विभिन्न अवतार लिया करते हैं तब इस विषय मे विशेष विचार करने की कोई आवश्यकता नही है क्योंकि वही भगवती क्षण भर में विश्व की सृष्टि रक्षा एवम संहार करने में सर्वदा समर्थ रहती है वही ब्रह्मा विष्णु और शिव जि को भी विभिन्न प्रकार के अवतार लेते रहने की प्रेरणा देती रहती है उसी भगवती योगमाया ने श्रीकृष्ण को सौरिग्रह कारागार से निकलकर नंद जी के भवन में पहुचाया और उनकी रक्षा की वे ही यथासमय कंश के विनासार्थ उन्हें प्रेरणा देकर मथुरा पूरी में ले गयी जब जरासंध से भयभीत होकर श्रीकृष्ण भागना चाहते थे तब देवी ने ही उनको द्वारिका बसाने की प्रेरणा दी आचार्य श्री ने कहा कि जैसे प्रणव ॐ में चार भाग है अ उ म वैसे ही देह में भी चार भाग होते हैं स्थूल सूक्ष्म कारण और तुरीय जो क्रमशः ब्रह्मा विष्णु शिव और शिवा शब्द से बोधित होते हैं उसी तुरीय अवस्था को अंतर्मुख प्रवर्त होने से स्वरूपत्वात चिन्मया शक्ति विशिष्ट ब्रह्मशक्ति बोधक बताया गया है जो गुरु पद आत्मदर्शन बिना अनुभूत नही होता उसी को यहां पर देवी भगवती भुवनेश्वरी या शिवा शब्द से कहा गया है स्वयं भवतीति स्वयम्भू (रुद्रः)देवी तत्त्वं तत्सानिध्यम कारणदेहस्य रुद्रस्य वर्तते लिंगदेहस्य तत्सानिध्यम निरुपितमेव योगमाया भगवती भुवनेश्वरी मणिद्वीप निवासिनी को ही आदिशक्ति कहि जाती है कृष्ण लीला उन्ही की माया का साकार रूप है अहंकार की चर्चा करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जब ब्रह्मा जी अहंकार का सर्वथा परित्याग कर देते हैं तब वे सृष्टि की रचना के प्रपंच से मुक्त हो जाते हैं और जब उसके वश में रहते हैं तब सृष्टि रचना करते हैं इसी प्रकार जो प्राणी अहंकार छोड़ देता है वह संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है अहंकार के अधीन होकर बन्धन में पड़ा रहता है पुत्र कलत्र गृहस्थ आदि बन्धन के मुख्य कारण नही है बन्धन के प्रधान कारण तो अहंकार देहाभिमान है जो प्राणी को अपने पूर्ब संस्कार बश वैसा करने को प्रेरित करता है कि मैं ही सब कुछ हु मैं ही बलवान हु मैंने ही अपने पराक्रम से अमुक कार्य कर लिया है जो अमुक कार्य बाकी है उसे मैं ही पुनः पूर्ण करूँगा अहंकार और देहाभिमान का स्वरूप ही महिषासुर है जो अपने को सर्वशक्तिमान मानता है तब ऐसे अत्यचारियों का नाश करने के लिए आदि शक्ति मां भगवती महालक्ष्मी के रूप में महिषासुर का विनाश करती हैं!!
इस अवसर पर पूर्व जिलाध्यक्ष विनोद कपरवान मण्डल संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य भोलादत सती भगत सिंह विष्ट अनुसुइया मंदिर समिति अध्यक्ष विनोद सिंह राणा सचिव दिगम्बर सिंह विष्ट योगेंद्र विष्ट दुर्गा प्रसाद सेमवाल मनवीर सिंह भास्कर सेमवाल राकेश सेमवाल कुंवर सिंह विष्ट राजेन्द्र विष्ट मण्डल पुष्कर सिंह प्रधान हरेंद्र सिंह विष्ट सिरोली देवेन्द्र बड़थ्वाल भजन सिंह झिंनक्वान पूर्व अध्यक्ष प्रधानाचार्य राजेन्द्र सेमवाल सत्येन्द्र सेमवाल योगेंद्र सेमवाल जिला पंचायत सदस्य आदि भक्त गन भारी संख्या में उपस्थित थे!!!!
