“रेडियो हिमालय” परियोजना की समीक्षा हेतु, एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट सपोर्ट

(आई.डी.एस.) परिसर में आयोजित किया गया. उल्लेखनीय है कि “सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्य” विषय को लेकर उत्तराखंड राज्य के सन्दर्भ में, जन-जागरूकता एवं समुदायों की भागेदारी हेतु इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट सपोर्ट (आई.डी. एस.) ने “रेडियो हिमालय” परियोजना का क्रियान्वयन “IERP – गोविन्द बल्लभ पंत रास्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान” के सहयोग से किया गया था. “रेडियो हिमालय” परियोजना के तहत 15 मिनट अवधी के 24 रेडियो एपिसोड का प्रसारण आकाशवाणी केंद्र देहरादून (100.5 FM) तथा डिजिटल प्लेट फॉर्म के माध्यम से जून माह 2025 तक पाक्षिक रूप से किया गया था.

“सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्य” विषय को लेकर उत्तराखंड राज्य के सन्दर्भ में, जन-जागरूकता एवं समुदायों की भागेदारी एवं “रेडियो हिमालय” की उपयोगिता व प्रासंगिकता की समीक्षा करते हुए रेडियो हिमालय के संकल्पनाकर जयप्रकाश पंवार ने रेडियो हिमालय की परिकल्पना को प्रस्तुत करते हुए बताया कि, उत्तराखंड राज्य में सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्य को लेकर रेडियो के माध्यम से जन जागरूकता फ़ैलाने का यह अपनी तरह की एक अनोखी पहल थी, जिसे समुदायों / श्रोताओं द्वारा खूब पसंद किया गया. कार्यशाला में रेडियो हिमालय के सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्य को समग्रता में प्रस्तुत करते रेडियो एपिसोड को सुना गया. ओंनलाइन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्राप्त फीडबैक की समीक्षा करते प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर ने बताया कि दर्शकों ने रेडियो हिमालय की बहु उपयोगिता का वर्णन करते हुए प्रतियोगिता परीक्षाओं हेतु एक ओंनलाइन शिक्षण सामग्री कहा जो छात्रों को बहुत मदद कर सकता है. श्रोताओं ने अपने फीडबैक में माना कि रेडियो हिमालय ने सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्य की जनजागरूकता फ़ैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, व इसे भविष्य में भी जारी रखा जाना चाहिए.

रेडियो हिमालय की समीक्षा कार्यशाला की अद्यक्ष्यता करते हुए समाजशास्त्री देवेन्द्र बुडाकोटी ने सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा विगत दसकों की विकास को लेकर की गयी विभिन्न पहलुओं व रिपोर्टों की चर्चा करते हुए कहा कि, जिन अपेक्षाओं के साथ विभिन्न पहलें की गयी उनमें कभी भी लक्ष्यों को पूर्णतया प्राप्त नहीं किया जा सका है, लेकिन दुनिया के विकास के लिए सतत रूप से सक्रीय रहना जरुरी है. इन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु सभी सदस्य देशों की एकजुटता आवश्यक है, तभी परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं. बुडाकोटी ने कहा कि रेडियो हिमालय ने भारत के एक छोटे से हिमालयी प्रदेश उत्तराखंड में सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्य को लेकर देश में पहली बार एक नवोन्मेषी पहल की है.
कार्यशाला के मुख्य वक्ता प्रो. वीरेन्द्र पैनुल्यी, (जो रिओ + अर्थ समीट लीमा सम्मलेन के प्रतिभागी रह चुके है) ने रेडियो हिमालय को सयुंक्त रास्ट्र सतत विकास लक्ष्यों की जन जागरूकता फ़ैलाने का एक सुदृढ़ माध्यम बताया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि विशेषकर उत्तराखंड हिमालय की अलग परिस्थितियां हैं, इस हेतु विकास योजनाओं की योजना बनाने समय बहुत सावधानियों को ध्यान में रखा जाना चाहिये. सतत विकास के लक्ष्य एक दुसरे से जुड़े हुए हैं, व इन लक्ष्यों के बीच एकीकरण और समन्वयन पर जोर देना चाहिए तभी तेजी से लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है. प्रो. पैनुल्यी ने कहा की सतत विकास लक्ष्यों के हॉट स्पॉट को पहचानना बहुत जरुरी है, इनकी अनदेखी विकास परियोजनाओं को धरासायी कर देती है. उन्होंने कहा की रेडियो हिमालय ने बहुत सरलता के साथ व सफलता की कहानियों को शामिल कर इसको जन जन तक लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम बनाया है, इसकी में खुले मन से प्रसंसा करता हूँ.
इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट सपोर्ट के कार्यकारी निदेशक व मानवविज्ञानी भारत पटवाल ने जलवायु परिवर्तन, बालिका शिक्षा, पेयजल एवं स्वच्छता के क्षेत्र में उनकी संस्था द्वारा किये जा रहे कार्यों के धरातलीय अनुभव को साझा करते हुए कहा कि, सतत विकास के उपरोक्त तीन लक्ष्यों की चुनौतियाँ को देखते हुए त्वरित निर्णय लिए जाने जरुरी होते है. उन्होंने उदहारण देते हुए बताया की यदि आपदा में गांव के पुल व रास्ते टूट जाएँ तो बच्चों की शिक्षा को तो रोका नहीं जा सकता. या स्वास्थ्य की दिक्कत आ जाये तो त्वरित निर्णय की जरुरत होती है. ऐसी परिस्तिथि में विशेषकर पर्वतीय राज्य में विकास योजनाओं में वैकल्पिक व्यस्वस्था का भी प्रावधान किया जाना चाहिए. पटवाल ने कहा की यह अच्छी बात है कि उत्तराखंड राज्य ने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, लेकिन अभी भी दुनिया की रैंकिंग में भारत का स्थान सबसे पीछे के देशों में शामिल है.
धाद संस्था से जुडी सामजिक कार्यकर्त्ता धनवंती भंडारी ने ग्रामीण विकास योजनाओं के अनुभव सुनाते हुए कहा कि पंचायतों में जनता की भागीदारी न के बराबर है, विना ग्रामीणों की सहभागिता के योजनाओं का निर्माण व किर्यान्वयन धरातल पर सही तरह से नहीं हो पाता है, व धन की बर्बादी हो जाती है. उन्होंने मनरेगा परियोजना का उदहारण देते हुए बताया की इस योजना में बहुत बुजुर्ग भी काम करते देखे गए है, जबकि वे शारीरिक रूप से अक्षम है. कई ऐसे लोग भी सूची में शामिल हैं जो गांव में रहते ही नहीं हैं. भंडारी ने कहा की यही वे कारण हैं जो सतत विकास लक्ष्यों में बाधक बने हुए हैं.
श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के समन्वयक गिरीश डिमरी ने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों को उत्तराखंड सरकार के पंचायती राज विभाग ने क्लब कर 9 हिस्सों में समन्वित कर लक्ष्यों को प्राप्त करने का बीड़ा उठाया है. लेकिन धरातल पर आकर बड़ी चुनौतियाँ सामने खड़ी हो जाती है. डिमरी ने कहा की ग्राम पंचायत विकास योजना (जी.पी.डी.पी.) में ग्राम समुदाय की भागेदारी जरुरत के अनुरूप नहीं हो पा रही है, वहीँ एक –एक ग्राम पंचायत अधिकारी के पास क्षमता से कई गुना गांवों की जिम्मेदारी होने के कारण योजनाओं का निर्माण उचित ढंग से नही हो पाने के कारण महज खानापूर्ति हो रही है. डिमरी ने कहा कि पंचायतें सतत विकास लक्ष्य की अंतिम कड़ी है, यदि यही कमजोर होगी तो लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता. डिमरी ने रेडियो हिमालय को ग्रामीण समुदायों को सतत विकास लक्ष्य हेतु जागरूक करने की भूमिका की सराहना की व कहा की राज्य के पंचायती राज विभाग को रेडियो हिमालय की इस सृंखला को आगे बढ़ाना चाहिये.
सामाजिक कार्यकर्त्ता चन्द्रमोहन थपलियाल ने कहा कि, खेती व पशुपालन से जुड़े कारोबार ख़त्म हो गए है. ऐसे में सतत विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति कठिन हो रही है. उन्होंने कहा की खेती व पशुपालन के विकल्पों के बारे में सोचा जाना चाहिए. गांवों से पलायन कर चुके परिवारों की हजारों हेक्टेयर भूमि बंजर पड़ी है, उसके उपयोग के बारे में सरकार को शख्त कदम उठाने होंगे. तभी राज्यों की बंजर पड़ी भूमि का उपयोग किया जा सकेगा. थपलियाल ने कहा की सतत विकास लक्ष्यों के इन अवरोधकों को हटाने के लिए सरकार को नए क़ानून बनाने होंगे व उनको लागू भी करना होगा.
सामुदायिक विकास विशेषग्य शुशील डोभाल ने कहा कि पंचायतें सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में है. इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जब तक जनभागीदारी शामिल नहीं होंगी तब तक यह केवल एक रवायत होगी. विकास योजनाओं के निर्माण से लेकर क्रियान्वयन तक हर कदम में समुदाय की सक्रीय सहभागिता जरुरी है. जनता की सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु, रेडियो हिमालय जैसी पहल एक आशा जगाती है.
भू – वैज्ञानिक शैलेन्द्र भंडारी ने उत्तराखंड की विशिष्ठ भौगोलिक परिस्तिथियों का हवाला देते हुए कहा कि हिमालयी राज्यों की विकास योजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन हेतु अलग एक्सपर्ट योग्यता व अनुभव की जरुरत होती है, लेकिन अक्सर देखा गया है कि धरातल पर इसका ही अभाव दिखता है. केवल एक्सपर्ट होने से काम नहीं चलेगा, इसमें अनुभव सबसे महत्वपूर्ण है. इस लिहाज से पर्वतीय राज्य उत्तरखंड को बहुत बड़े एक्सपर्ट पूल की जरुरत है.
अन्य वक्ताओं पत्रकार अजीत, सामाजिक कार्यकर्त्ता मोहित नेगी, मदन डोभाल, देवराज भट्ट, कविता रावत, मनोवैज्ञानिक भुवनेश, पंकज ईस्टवाल आदि ने कार्यशाला में भाग लेते हुए सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु केंद्र से लेकर राज्य व विकास की प्रथम धुरी ग्राम पंचायतों के बीच सहज समन्वयन पर जोर दिया. व कहा की जहाँ गैप है उसको भरा जाना चाहिए. कार्यशाला के अंत में समस्त प्रतिभागियों ने एक स्वर से रेडियो हिमालय के माध्यम से सयुंक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों की जन जागरूकता को उत्तराखंड राज्य के बड़े भूभाग के समुदाय तक पहुचाने की पहल की प्रसंसा की व रडियो हिमालय की इस श्रृंखला को भविष्य में भी जारी रखने की संस्तुति प्रदान की.
कार्यशाला के अंत में रेडियो हिमालय के मुख्य शोधकर्ता जयप्रकाश पंवार ने रेडियो हिमालय की परिकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के आर्थिक सहयोग हेतु धन्यवाद ज्ञापित करते हुए, रेडियो हिमालय के सभी श्रोताओं, रेडियो कार्यक्रम में प्रतिभाग करने वाले व्यक्तियों, शोधार्थियों, वैज्ञानिकों, संस्थाओं का आभार व्यक्त किया. मुख्य शोधकर्ता पंवार ने उत्तराखंड सरकार के उत्तराखंड पब्लिक पालिसी एंड गुड गवेर्नेंस, मीडिया पार्टनर आकाशवाणी देहरादून व डिजिटल सहयोगी चैनल माउटेन का भी विशेष आभार व्यक्त किया. अंत में रेडियो हिमालय की समन्वयक दीपा ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया.