मेरा पाड़ ऐजा – काफल किनगोड़ हिंसर खेजा


दीपक कैन्तुरा ( रैबार पहाड़ का)

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रंत रैबार- उत्तराखण्ड की रोत्यांली धरती मा बानी-बानी का डाळा बोरदा जड़ी बूटी च फल फूल च जु फल फूल उत्तराखण्ड की धरती की रोनक त बढ़ोदे च दगड़ा दगड़ा यी फल फूल हमु तैं दवै कारुप मा काम करदन अर येंकु स्वाद जु एक बार चाखदू वैकु बार खाणा कु मन करदू समझा जैंन एक बार खाई उ वैका दिवाना बणि जांदन। जथका स्वादिष्ट यख कु खाणु च अर हमारा घर का फल फूल होंदन उथिक स्वादिष्ट हमारी डांड़ी कांठ्यों का फल फूल भी होंदन। यु फलों सी कभी गौरु चरोंदा ग्वीर अपणी भूख मिटोंदा था या बाटा हिटदा बटोई ओंदा जांदा यों फलों तैं खादा था पर लोग अब धीरे धीरे यों फलों कु महत्व समझ ओंण लेगी। यी फल जथका स्वादिष्ट च उंथका ही हमारा स्वास्थ्य का खातिर भौत लाभदायक च।यों फलों मा काफल, हिंसर ,बेड़ू,तिमला, किनगौड़, मेलू( मुवल) भभोरा यनी सौ सी भी भिनी प्रजाती च। जु लोग गौं मा रैंन उंन जरुर बणों मा यी फल खाई होला पर जु शहरों मा रैन ऊत उंकु नौं तक नी जाणदा होला त चला आज यों फलों का माध्यम सी यों फलों की पूराणी याद ताजा करदन


खटा अर मीठा काफल
उत्तराखण्ड का काफलों की अलग रस्याण अर पछ्याण च अर जू चैता का मैना उत्तराखण्ड आई होलू वैन काफल नी खाई त समझा वैंन कुछनी खाई काफल कु (मिरिका एस्कुलेंटा) बोल्ये जादू अग्रेजी मा काफल  समुद्रतल सी 1300 सी 2100 मीटर की ऊंचाई मा मध्य हिमालय का बणों मा अपने आप उंगण वालू यू एक अनौखु फल च एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों का कारण हमारा शरीरक तैं भौत लाभकारी च। आप तैं बथै देंदन की काफल कु प्रकार छोटू सी ढ़ेला वाळू बैर जनु फल गुच्छों मा ओंदू अर जब कच्चू रेंदू तब हरियों होंदु अर पकणा का बाद लाल होंदू। काफल कु स्वाद खट्टू अर मीठू होंदू अर रोगों मा भौत फैदामंद होंदू । काफल मा कै प्रकार की दवै का काम ओंदू काफल कु फल ही ना येकी छाल सी भी चर्मशोधन ( ट्रैनिंग) मा किये जांदू अर आप तैं बथै देंदन की काफल तैं भूख अर शुगर की रामबाण दवै माण्ये जांदू। काफल मा एंटी ऑक्सीडेंट गुण होंणा का कारण कैंसर अर स्ट्रोक ह्वणे की आशंका भी कम ह्वे जांदी अर आप तैं बथै देंदन की काफल जादा दैर तक नी रख्ये जांदू याही वजै च की काफलों तैं उत्तराखण्ड सी भैर नी भेजी सकदन जैंतचें भी काफल खाण होलु वैतें हमारा ड़ांडा गौं ओंण होलू । काफल डांडों मा होंदू अर ठंड़ा जगा होंदू येकु डाळू काफी लंबू होंदू अर यूं छैल का धौरा जादा होंदू। अर पहाड़ तैं मजबूत आर्थिकी देण वालू काफल  तैं आर्युवैद मा कायफल का नौं सी भी जाणिये जांदू। येकी छाल मा मायरीसीटीन,माइरीसीट्रिन व ग्लाइकोसाइड पाये जांदू। ये का फलों मा पाये जाण वालू फाइटोकेमिकल  पॉलीफेनोल सूजन कम करण सहित जीवाणु अर विषाणुरोधी प्रभाव तैं जाण्ये जांदू
 
 
विटामिन-सी कु खजाना च किनगोड़


पहाड़ मा किनगौड़ हर कखी होंदू पुंगड़ियों का बिट्टों सी लेकी बणों मा होंदू यू बाटू का किनारा मा खूब मात्रा मा पाये जांदू। समुद्रतल सी 1200 सी 2500 मीटर तक की ऊंचै पर पाये जाण वालू किनगोड़ कु वैज्ञानिक नौं बरूरीस एरिसटाटा च।आर्युवेद मा इसेदारुहल्दी का नौंउ सी जाण्ये जांदू अर बानी- बानी की रोगों तैं ठीक करदू।दुनिया मा किनगौड़ की की 656 अर उत्तराखण्ड मा लगभग 22 प्रजाति पाये जांदिन। मूल रुप सी किनगोड़  त्वचा रोग अतिसार पीलिया आँखों का संक्रमण, शुगर समेत येका अलौ कै बीमारी का निधान मा लाभकारी पाये जांदू। पोषक तत्व अरमिनरल्स की बात किये जाव त ये मा प्रोटिन 3.3 प्रतिशत,फाइबर 3.12 प्रतिशत कॉर्बोहाइडेरटस 17.39 मिग्रा प्रति सौ ग्राम विटामिन- सी 6.9 मिग्रा प्रति सौ ग्राम मैग्नीशयम 8.4 मिग्रा प्रति सौ ग्राम पाये जांदू अर आर्यूर्वैदिक मा किनगोड़ की बहुत बड़ी भूमिका च।किनगोड़ एक अर गुण अनेक किनगोड़ मा बिटामिन सी भरपूर मात्रा मा मिलदू। जु त्वचा अर मूत्र संबधी  समस्याओं मा भौत लाभकारी होंदन। किनगोड़ खाणा कु मजा ही कुछ अलग च अर किनोड़ की चटणी कु स्वाद लाजबाब च येका अलावा किनगोड़ का जेड़ा बड़ा काम ओंदन येका जेड़ा शूगर की बीमारी तैं रामबाण ओषधी च ।
 
 
हिंसर( हिंसालू)

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बणों मा गोरु  चरोंण जाण या घास लाखडूक तैं जांदा था कभी ऊंनु फुन बटिन ओंदा था या स्कूल बटिन ओंदन त हिसरु का झलकों पर मैसियां रेंदन अर कभी कभी पेट त हिंसर सी भरिये जांदू थौ हिंसर द्वीं प्रकारे की होंदी काली हिंसर अर पिंगली हिंसर  हिमालयी क्षेत्र मा समुद्रतल सी 750सी1800 मीटर तक की ऊंचाई पर भौत जादा मात्रा मा पाये जांदू अर येकु स्वाद भौत गजब कु होंदू जैकु स्वाद चख्यों होलू वैका घिचा मा जरुर पाणी ऐ जालू  हिमालय क्षेत्र मा उगण वालू भौत स्वादिष्ट फल च। युं बणों मा अर बाटों का किनारा पर अपणे आप ऊगी जांदू। हिंसक कु वैज्ञानिक नौं (रुबस इल्पिटिकस है) जो रोसेसी कुल कु एक पोधा च हिंसर। हिंसर जथका स्वादुष्ट च उंथका ही रोग निवारण वाळू भी च । पैली से लेकी अर वर्तमान समै तक हिंसर मा पूरु वैज्ञानिक विशलेशण अर परीक्षण का बाद ये तें एंटी ऑक्सीडेंट अर एंटी टयूमर अर घावघौ भरणा क तैं भी प्रयोग किये जांदू अच्छी फार्माकोलॉजी एक्टिविटि का दगड़ा-दगड़ी हिंसर मा पोषक तत्व जना कॉर्बोहाइट्रेट सोड़ियम कैल्शियम मैग्निशियम पोटेशियम आयरन जिंक  और एसकाराविक एसिड़ प्रचुर मात्रा मा पाये जांदू । ये मा विटामिन सी 32 प्रतिशत मैगनीज 32 प्रतिशत अर फाइबर 26 प्रतिशत अर शुगर की मैत्रा 4 प्रतिशत तक पाये जांदी येका अलाव हिंस कु प्रयोग जैम जेली चटनी  बणोण मा भी किए जाणु च । हिंसर का कुंगला ठुकलू तैं घीचा पर होंया छाळों का काम ओंदू एक द्वि बार खाणाक तैं छाळा ठीक ह्वे जांदन

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घिंघारू ( घिंघारु)
उत्तराखण्ड मा घिघारु की बात ही कुछ अलगच मध्य हिमालय का क्षेत्रों मा समुद्रतल सी 3000 सी 6500 फीट की उंचाई पर होंण वाळा घिंघारु कु एक ग्वल झलकु होंदू । घिघारु तैं छोरा बड़ा चाव सी खांदन अब त घिंघारु कु खून बढ़ोणा का खातिर जूस भी बणणू च ।विदेशों मा ये का पातकों की चाय पति बणाये जांदी पर्वतीय क्षेत्र मा पाये जाण वालू घिघारु जैकी क्वी कदर नी होंदी उ कथका लाभदायक च येका बारा मा क्वी नी जाणदू जबकी घिघारु हमु तैं रामबाण  दवै च । अर दिल का रोगों का खातिर घिघारु अमृत च ये गुण की खोज जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान पिथौरागढ़न करी थै।उक्तरक्तचाप अर हाइपरटेंशन जनी बीमारी तैं दूर करदू जब की येकु बच्यू अवशेष त्वचा तैं फुकेण सी बचोंदू । येका अलौ घिघारु सी कै ब्यूटी प्रोडक्ट भी बणदन।छाल कु काढ़ा स्त्री रोगों का निवारण मा लाभदायी होंदू। घिघारु की लकड़ी भी काफी जरुरी काम ओंदी।
आखिर मा सच मा हमारु पहाड़ स्वर्ग च जख बणों मा भी फल फूल होंदन जोंकी दुनिया दिवानी च अर आज यूं फल फूलों की दवै बेणी च ।
 
 
 

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