— ‘नयु साल’ ——

नयु साल फिर बौड़ि ऐगी,
नै-नै कौंपळा, मन मा खिलेगी!
देश-परदेश अर गौं गुठ्यार,
खूश्यूं कि रुणझुण बरखा, बार-बार
भलु जसिलु ह्वो
सबुतै नयु साल ।

दुख-बिपदा का खुलि जौंन 'गांठा'
सुख-समृद्धि का ह्वौन,हर्या-भर्या बाटा
कामयाबी का हाथ, बढ़ि जौंन अग्वाडि
मनख्यात का ‘भौ’ खडु ह्वोन,बार-बार
भलु जसिलु ह्वो
सबुतै नयु साल।

दुख्यारौं का दुख
अदबट्टे मा छूटी जौंन,
चौतरफ, प्यार-पिरेम की
छ्वीं-बथ ह्वौन,
उजाळा पिरेम का दिवा
बळयौन ईं बार,
भलु जसिलु ह्वो
सबुतै नयु साल।
ना आख्यूं बटि,कखि आंसू औन!
भूखा नांगा, कखि ना रौन!
सुख बट्यौंन अर दुख छंट्यौंन
यन कामना करु
हर क्वी, ईं बार!
भलु जसिलु ह्वो
सबुतै नयु साल।
बोलि-भाषा अर संस्कार
कखि भी ना रौ 'अपछांण'
अपणा गीत-अपणी रीत
मिली-जुलि, अगनै पौछोला,
हर मन मा औन, यन विचार!
भलु जसिलु ह्वो
सबुतै नयु साल।
———-@कविता कैन्तुरा पुन्डीर
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