साभार :वरिष्ठ पत्रकार, अर्जुन सिंह बिष्ट की फेसबुक वाल से

सोशल मीडिया पर अचानक कुछ मित्रों ने एक विषय उठाया। 2 दिन पहले बद्री केदार मंदिर समिति के पूर्व सीईओ व वर्तमान में वन संरक्षक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके वरिष्ठ अधिकारी बीडी सिंह को चार धाम यात्रा के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपना सलाहकार बनाया।
इस आदेश के तुरंत बाद बीडी सिंह निशाने पर आ गए। सोशल मीडिया की इन पोस्टों पर आने वाली प्रतिक्रियाएं मिश्रित थी कुछ सिंह के विरोध में थी तो कुछ उनके पक्ष में। इन पोस्टों को पढकर यकायक मुझे केदारनाथ आपदा का ध्यान आ गया। उस समय की कुछ तस्वीरें जेहन में तैरने लगी।
मोबाइल खंगाला तो कुछ तस्वीरें मिल गई। इन तस्वीरों में देखा जा सकता है की बीडी सिंह मंदिर समिति के सीईओ रहते हुए एक सामान्य श्रमिक की तरह है कैसे भगवान भोलेनाथ की सेवा कर रहे हैं। तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि वह मंदिर परिसर से मलवा हटाने के लिए एक श्रमिक की तरह जुटे हुए हैं। एक छोटा सा सवाल मित्रों, अगर उस समय बीडी सिंह की जगह है कोई ias अधिकारी मंदिर समिति का सीईओ होता तो क्या वह इसी तरह मंदिर के भीतर से मलवा हटा रहा होता।
बीडी सिंह को मंदिर समिति संचालित करने और यात्रा संचालित करने का व्यापक अनुभव है। लगातार 12 साल टेंपल कमिटी का सीईओ रहते हुए उन्होंने यात्रा का न केवल सफल संचालन किया बल्कि मंदिर समिति पर किसी तरह का आरोप भी नहीं लगा। स्वाभाविक है कि इतने लंबे समय तक मंदिर समिति का सीईओ रहते हुए भगवान बद्री केदार के अनन्य भक्त रहे मुकेश अंबानी जैसे देश के शीर्ष उद्यमियों से जान पहचान हो ही जाएगी। तो क्या सवाल यह भी उठता है कि क्या बद्री केदार के सीईओ का बड़े लोगों से संपर्क होना इन मंदिरों के लिए किसी तरह का नुकसान का कारण बन सकता है। जहां तक संपर्कों की बात है मैंने बहुत सारे ऐसे लोग भी देखे हैं जो मामूली थानेदार या प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क होने पर भी इतराते हैं। ऐसे में बीडी सिंह ने अंबानी जैसे परिवार के साथ अपने संपर्कों को मेंटेन रखा है तो इसमें गलत क्या है।
मैं उन्हें तब से जानता हूं जब यह ऋषिकेश के सहायक वन संरक्षक हुआ करते थे। यह जान पहचान इसलिए लगी कि मैं तब फॉरेस्ट बीट देखता था। थोड़ा सा करीबी इसलिए हो गयी कि हम दोनों ही चमोली से थे, लेकिन सच बताऊं बीडी सिंह जी के सीईओ रहते हुए इन 12 वर्षों में न तो मैं बद्रीनाथ जा पाया और ना ही केदारनाथ। वह पहले फोन पर इतने सुलभ हुआ करते थे जितने आज दुर्लभ। शायद यही कारण है कि इन 12 वर्षों में उनके साथ शायद 12 बार भी बात नहीं हो पाई होगी।
लेकिन उनके काम के बारे में जानकारी होती रहती थी। बहुत बार तो ऐसे अवसर होते थे कि जब यात्रा स्थगन काल में भी वे धामों की व्यवस्था ठीक कराने में लगे रहते थे। भगवान बद्री विशाल के साथ रहते रहते बीडी सिंह अब काफी धार्मिक प्रवृत्ति के हो चले हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को इस बात के लिए साधुवाद की उन्हें कम से कम एक काम के अनुभवी व्यक्ति का राज्य हित में उपयोग करने के लिए चुना। वरना आज हम देखते हैं कि बहुत सारे ऐसे नाकारा लोग भी सरकारी सिस्टम में मौज कर रहे हैं जिन्हें न तो काम ही आता है और न ही वे काम करना चाहते हैं।
यह भी सच है कि उन्हें मंदिर समिति के वर्तमान अध्यक्ष अजेंद्र अजय के दबाव में ही यहां से विदा किया गया था, अजेंद्र अजय की छवि भी ईमानदार राजनीतिक की है, लेकिन बीडी सिंह बद्री केदार की परंपराओं को भी स्थानीय होने के नाते बहुत बेहतर समझते हैं। सिंह को विभाग का ईमानदार अफसर भी माना जाता है। मित्रों मेरा मानना है कि हम लोग जब चश्मा पहनते हैं तो सामने वाली वस्तुएं में हमें उसी रंग में दिखाई पड़ती हैं जिस रंग का चश्मा होता है। शायद बीडी सिंह की नियुक्ति के बाद सामने आई नाराजगी और प्रशंसा भी कुछ ऐसे ही रंग बिरंगे चश्मे से प्रभावित हो सकती है।
बीडी सिंह जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं, उम्मीद करता हूं कि यात्रा में आपके दीर्घकालीन अनुभवों का लाभ मिलेगा। बस थोड़ा फोन की घंटी का नोटिस लेते रहिएगा।

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