मंदिरों के फूल बने दिव्यांगजनों की रोज़गार की डोर 

मंदिरों के फूल बने दिव्यांगजनों की रोज़गार की डोर 

आईटीसी मिशन सुनहरा कल, भुवनेश्वरी महिला आश्रम व आकांक्षा की अनोखी साझेदारी

सन 1998 में स्थापित आकांक्षा संस्था आज मानसिक रूप से मंदित वयस्क दिव्यांगजनों के लिए आशा और आत्मनिर्भरता का केंद्र बन चुकी है। वर्तमान में संस्था 37 दिव्यांगजनों को आश्रय, प्रशिक्षण और सम्मानजनक जीवन प्रदान कर रही है।

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 *आत्मनिर्भरता का अनूठा मॉडल* 

 

संस्था ने दिव्यांगजनों को रोजगार से जोड़ने के लिए मंदिरों से प्राप्त फूलों का पुनर्चक्रण कर धूप-अगरबत्ती निर्माण और मोमबत्ती उत्पादन की पहल की है। उत्पादों की बिक्री से हुई आय को लाभार्थियों में समान रूप से वितरित किया जाता है।

 

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*आईटीसी मिशन सुनहरा कल का सहयोग* 

 

भुवनेश्वरी महिला आश्रम और आईटीसी मिशन सुनहरा कल के सहयोग से अब पाँच मंदिरों से नियमित रूप से फूल एकत्रित किए जा रहे हैं। इन फूलों से दिव्यांगजन धूपबत्ती तैयार करते हैं, जिससे उन्हें सतत रोजगार मिलता है और पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।

 

*सामाजिक और आर्थिक असर*

 

आर्थिक सशक्तिकरण: दिव्यांगजन अब अपनी आय अर्जित कर रहे हैं।

 

सामाजिक सम्मान: परिवार और समाज उन्हें “कमाने वाले” के रूप में पहचानने लगे हैं।

 

सामुदायिक सहयोग: भेल के सेवानिवृत्त अधिकारी और स्थानीय लोग संस्था से सक्रिय रूप से जुड़े हैं।

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पर्यावरणीय लाभ: मंदिरों का अपशिष्ट अब पुनर्चक्रण के जरिए उपयोग में लाया जा रहा है।

*चुनौतियाँ और भविष्य*

 

संस्था के सामने स्थायी फंडिंग, बाज़ार तक उत्पादों की पहुँच और दीर्घकालीन देखभाल जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। भविष्य में संस्था अधिक मंदिरों से फूल एकत्रण, उत्पादों की ब्रांडिंग व ऑनलाइन बिक्री और महिला दिव्यांगजनों के लिए सुरक्षित आवासीय सुविधा विकसित करने की योजना बना रही है।

 

संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी  आलोक सिन्हा का कहना है,

“यदि अन्य संस्थाएँ और सीएसआर सहयोग आगे आएँ तो हर दिव्यांगजन समाज का सक्रिय और सम्मानित सदस्य बन सकता है।”

 

यह पहल न केवल दिव्यांगजनों के जीवन में आत्मनिर्भरता और सम्मान की खुशबू बिखेर रही है, बल्कि पूरे समाज की सोच को भी नई दिशा दे रही है।