इस बार पद्म पुरस्कारों की सूची से उत्तराखण्ड़ गायब,आखिर क्यों?

दीपक कैन्तुरा, की कलम से

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नई दिल्ली। 2023 के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान हो गया है। इस बार कुल 106 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा। जिसमें 6 पद्मविभूषण, 9 पद्मभूषण, 91 पद्म श्री पुरस्कार शामिल हैं और इन पुरस्कार पाने वालों में 19 महिलाए शामिल है, लेकिन जैसे पुरस्कारों के नाम का ऐलान हुआ तो उत्तराखण्ड़ को इसबार निराशा हाथ लगी और पद्म पुरस्कारों की सूची से उत्तराखण्ड़ का नाम गायब था। इससे कई सवाल खड़े होते हैं।

बता दें कि उत्तराखण्ड़ के लोगों की समाज के हर क्षेत्र में अपनी अग्रण्य भूमिका रही है चाहे सामाजिक हो या सांस्कृतिक या पर्यावरण की। पर्यावरण के लिए उत्तराखण्ड़ की बेटी गौरा देवी ने अपने प्राणों की परवाह ना कर चिपको आंदोलन चलाया जो देश में नही पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुआ, लेकिन अभी तक गौरा देवी को सरकारी स्तर पर मरणोपरांत कोई ऐसा सम्मान नहीं दिया गया ।

वहीं लोक गीतों के क्षेत्र में गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जो अपने गीतों से हमेशा जन चेतना जगाने का कार्य करते हैं और जिनके गीतों को तीन पीढ़िया सुनती आ रही हैं। वहीं स्वर्गीय जीत सिंह नेगी, स्वर्गीय हीरा सिंह राणा, स्वर्गीय चंद्र सिंह राही, स्वर्गीय कबूतरी देवी ऐसे पहाड़ पुत्र है जिन्हें पद्म सम्मानों से क्यों वचिंत रखा गया जो अपने आप में एक सोचनीय विषय है।

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पर्यावरण के क्षेत्र में जगत सिंह जंगली जिन्होंने अपने बलबूते पर बंजर जमीन में बांज का वन तैयार किया। इसके साथ चमोली जिले के सणकोट के नारायण सिंह नेगी , रुद्रप्रयाग के सतेंन्द्र भंड़ारी, उत्तरकाशी के प्रताप सिंह पोखरियाल, डॉक्टर तिलोकचंद सोनी जैसे कई अनगिनत नाम है जो लगातार पर्यावरण बचाने का कार्य कर रहे हैं। वहीं सामाजिक क्षेत्र में हंस फाउड़ेशन की माता मंगला ,भोले जी महाराज जो निस्वार्थ भाव से समाज में जरुरतमंदों की मदद कर रहे हैं और लोगों को शिक्षित बना रहे हैं, ऐसे कई नाम हैं जो समाजसेवा में जुटे हैं। साथ ही बात करें तो क्षेत्रीय सिनेमा में अभिनय की बदोलत पहचान बनाने वाले प्रसिद्ध अभिनेता बलदेव राणा,बलराज नेगी,उर्मी नेगी, संयोगिता ध्यानी अनूज जोशी,अशोक चौहान, आशू, हास्य के क्षेत्र में पहचान बनाने वाले घनानंद घन्ना भाई, किशना बगोट जैसे तमाम कलाकार हैं
साथ ही लोक कवि गिरीश तिवारी गिरदा, जन कवि अतुल शर्मा,बीना वेंजवाल, बीना कंड़ारी, डॉक्टर वीरेंद्र बर्त्वाल,रमाकांत बेंजवाल , डॉक्टर नंदकिशोर हटवाल, नरेंद्र कठैत, डॉक्टर योगम्बर सिंह बर्त्वाल जैसे अनगिनत साहित्यकार,इतिहासकार लेखक हैं जो अपनी बोली भाषा बचाने के लिए लगातार प्रयासरत है। वहीं गायन के क्षेत्र लोक गायिका रेखा धस्माना उनियाल कल्पना चौहान,मीना राणा,संगीता ढ़ौढ़ियाल ,रेशमा शाह,पूनम सती, हेमा नेगी करासी जैसे सैकड़ो कलाकार है, जिन्होंने अपना जीवन कला के क्षेत्र के लिए समर्पण कर दिया।यही नहीं पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रहे बहुत सारे साथी भी अपने मूल काम के साथ समाज के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। बात करें खेल के क्षेत्र में इंटरनेशनल खिलाडी जितेंद्र सिंह बिष्ट अल्मोड़ा का जो एक मात्र उत्तराखंड से फीफा अंडर 17 वर्ल्ड कप खेले जो उपकप्तान रहे , कोच विरेन्द्र सिंह रावत जिनको अनगिनत इंटरनेशनल और नेशनल अवार्ड ने नवाजा गया है जो 24 साल से राज्य खेल फुटबाल के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित किया हुवा और आज 53 साल की उम्र मे भी वही जोश और जूनून से खिलाडी, कोच और रेफरी को उचित मुकाम दे रहे है वैसे कई सैकड़ो खिलाडी है।

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उत्तराखण्ड़ के हर क्षेत्र में प्रतिभाओं का खजाना है लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी गृहमंत्रालय ने उत्तराखंड को इस लायक नहीं समझा है। इससे सरकार के साथ नौकरशाही पर भी सवाल उठना लाजमी है की आखिर उत्तराखण्ड़ पद्म पुरस्कार से वंचित क्यों? यह सवाल सबके जहन में हैं।

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