सुख दुख का कारण ही मानव का कर्म है:आचार्य ममगाईं

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आज नेशविलारोड देहरादून में छटवें दिन की कथा में प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगाँई जी लोकमणी जखवाल जी की पुण्य स्मृति में सुशीला जखवाल व जखवाल परिवार की और आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा कहा कि पूर्व जन्म के अनुसार सुख दुख हमारे जीवन मे आते हैं कर्म के निषेध होने पर हमारे जीवन मे दो प्रकार की भक्ति आती है निर्गुण और सगुण पूर्व जन्म के असत कर्म के कारण प्राणी रोगी अव्यव्स्थित जीवन के साथ धनाभाव में दुखी व सुकर्म के कारण स्वस्थ तन व धन की प्राप्ति होती है निष्काम कर्म करने वाले बन्धन मुक्त हो जाते हैं उनकी भावी पीढियां सुख व आवागमन के चक्कर मे पड़ जाते हैं सकाम कर्म करने वाले पुण्य क्षीण होने पर धरा पर जन्म लेके सुख आनंद की प्राप्ति करके दुसरो को लाभ देते हैं व सुखी जीवन को प्राप्त करता है दान में अन्न दान श्रेष्ट है लेकिन दूसरे को मान देना भी एक दान के समान है जो पराम्बा के उपासक होते हैं जन्म मृत्यु जरा व्याधि उनके निकट नही आ सकती जो शैव वैष्णव गाणपत्य इनमें से किसी भी देव का मंत्र ग्रहण करना अपने को जन्म मरण के चक्कर से छुड़ाना मनुष्य योनि एक ऐसी योनि है जो दुर्लभ अप्राप्य है व चेतना से भरपूर है ऐसी चेतना युक्त योनि को पाकर अपने जन्म मरण जरा दुख ब्याधियो से अपने को छुड़ा सकते हैं वो परा शक्ति जो वैखरी वाणी के रूप में विराजती है ह्रिदयस्थ भाव मे वाणी व अछि सोच के रूप में मनुष्य के गुण रूप में आती है
आज दान की महत्ता पर कहते हुए आचार्य ममगांई नें कहा यह भारत का संस्कार रहा सच्चाई के मार्ग से न डिग कर पत्नी पुत्र को बेचने के बाद स्वय को चांडाल के हाथ बेच दिया हरिश्चंद्र जैसे राजसुय यज्ञ करने वाले महादानी भारत मे ही हुए हैं तभी धर्म और धर्म मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति परेशान होते हैं किंतु असफ़ल नहीं होते आत्मा परमात्मा पर बोलते हुई आचार्य ममगांई जी नें कहा
आत्मा के शरीर में होने के कारण ही यह शरीर संचालित हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि संपूर्ण धरती, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे भी उस एक परमपिता की उपस्थिति से ही संचालित हो रहे हैं।
आत्मा का न जन्म होता है और न ही उसकी कोई मृत्यु है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है। यह आत्मा अजर और अमर है। आत्मा को प्रकृति द्वारा तीन शरीर मिलते हैं एक वह जो स्थूल आंखों से दिखाई देता है। दूसरा वह जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं जो कि ध्यानी को ही दिखाई देता है और तीसरा वह शरीर जिसे कारण शरीर कहते हैं उसे देखना अत्यंत ही मुश्किल है। बस उसे वही आत्मा महसूस करती है जो कि उसमें रहती है। आप और हम दोनों ही आत्मा है हमारे नाम और शरीर अलग अलग हैं लेकिन भीतरी स्वरूप एक ही है आचार्य शिवप्रसाद ममगांई: आज विशेष रूप से सुशीला जखवाल अंकुर नितिन रमेश मीनाक्षी ताहन त्रिज्ञा कृष्णा अनामिका प्रिया शिखा निकुंज गति निपुण रीना सुधीर आकृति प्रखर सुशीला बलूनी राजेन्द्र केस्टवाल दिपक नौटियाल जी रेजर देवेंद्र काला चन्द्र वल्लभ बछती जी शांता नैथानी राजेन्द्र डबराल विमला डबराल चंद्रमोहन विन्जोला प्रसन्ना विन्जोला आचार्य दामोदर सेमवाल आचार्य दिवाकर भट्ट आचार्य शिव प्रसाद सेमवाल आचार्य सन्दीप बहुगुणा आचार्य हिमांशु मैठाणी आचार्य शुभम भट्ट सुरेश जोशी आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित रहे!!

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