रिगोली के ‘रावण’ के विदा हो जाना
डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, देवप्रयाग
ईश्वर किसी को विशेष उपहार से नवाजता है। उसे हम ‘गॉड गिफ्ट’ कहते हैं। ऐसे मनुष्य जीते जी हर किसी को जितना सुख और आनंद देते हैं, यहां से विदा होने के बाद उतना ही बड़ा असह्य कष्ट दे जाते हैं। यहां बात उत्तम सिंह कैंतुरा की कर रहे हैं। रामलीला मंचन में जबरदस्त अभिनय के कारण दिल्ली और लोस्तु-बडियारगढ़ क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय और प्रसिद्ध रहे कैंतुरा जी का 62 वर्ष की अपर्याप्त आयु में चले जाना बहुत खल रहा है। यह घटना अविश्वसनीय तो लग रही है,विधि का क्रूर मजाक भी प्रतीत हो रहा है।
गठीला बदन, चौड़ा माथा, लंबे केश, रोबदार आवाज, लंबा कद,गले में रुद्राक्ष इत्यादि की मालाएं और गहरे आत्मविश्वास के साथ बात करने का निराला अंदाज। यह उनका व्यक्तित्व था।
लोग गांव से नौकरी करने दिल्ली जाते हैं और वे दिल्ली से गांव आए थे। दिल्ली में ही पैदा हुए, परंतु लोस्तु पट्टी के मल्ली रिगोली अपने गांव आकर फिर मुड़कर दिल्ली नहीं गये। नौकरी नहीं की। उनके दादा जी अपने जमाने के सेठ थे, इसलिए घर चलाने में बहुत दिक्कत नहीं हुई। क्षेत्र में उनका रुतबा कई पीढ़ियों से था। उनके दादा का नाम हरिसिंह और पिता का नाम लाल सिंह कैंतुरा था।
दिल्ली की रामलीला में उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था। उनकी अभिनय क्षमता पर अनेक फिल्मी हस्तियां आकर्षित थीं। बताते हैं कि प्रेम चोपड़ा ने एक बार उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में आने का न्योता दिया, परंतु कैंतुरा जी ने ठुकरा दिया। वे गांव आये तो यहीं के हो गये। पांच बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और शादियां कीं, परंतु नौकरी नहीं की। मल्ली सिंगोली में रामलीला आरंभ कराने का श्रेय नई पीढ़ी में उनको ही जाता है। उन्होंने अनवरत 13 वर्ष यहां रामलीला करवाई। अगले साल इस ऐतिहासिक आयोजन के 14 वर्ष पूरे होने थे। उत्तम सिंह एक सुरीले गायक भी थे। भजन गायन में उनका कोई सानी न था।
लोस्तु-बडियारगढ़ के अनेक गांवों में उन्हें रामलीलाओं में रावण के किरदार के लिए बुलाया जाता था। वे एक दार्शनिक प्रकृति के व्यक्ति थे। अच्छे भजन और गद्य लेखक थे। उनके घर में उनकी हस्तलिखित रचनाएं (पांडुलिपियां) हैं, परंतु उन्होंने कभी इनका प्रकाशन नहीं कराया। स्वांत:सुखाय के लिखने वाले उत्तम सिंह एकांतप्रिय थे, परंतु गत वर्ष पत्नी के निधन से उनके जीवन में अकेलापन आ गया। इस गहरे सदमे से वे उबर नहीं पाये। तब से उनके स्वभाव में अजीब परिवर्तन आ गया था। तभी से उनका स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा। अचानक तबीयत बहुत खराब होने पर उन्हें स्वामी राम अस्पताल, जौलीग्रांट में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन हो गया।
विधायक विनोद कंडारी तथा उत्तम सिंह कैंतुरा जी के बाल सखा प्रो.ध्रुवसिंह कैंतुरा इत्यादि उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस महान कलाकार की विदाई लोस्तु क्षेत्र के लिए हृदयविदारक है। श्री घंटाकर्ण मंदिर समिति अध्यक्ष कैप्टन सत्येसिंह भंडारी, महासचिव उम्मेद सिंह मेहरा, रामेश्वर बर्त्वाल, राकेश बर्त्वाल, रघुवीर भंडारी, श्री घंटाकर्ण देवता के रावल पं०दिनेशप्रसाद जोशी, अधिवक्ता सूरत सिंह मेहरा, राजेंद्र कैंतुरा, पत्रकार रवि कैंतुरा, शूरवीर भंडारी,त्रेपनसिंह भंडारी, प्रीतमसिंह कैंतुरा, जंगवीरसिंह रावत, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य उत्तम भंडारी,प्रताप भंडारी, रंगकर्मी गंभीर जयाडा़, फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रदीप भंडारी आदि लोस्तु-बडियारगढ़ क्षेत्र के लोगों ने गहरा दु:ख प्रकट करते हुए उत्तम सिंह कैंतुरा के निधन को क्षेत्र के कला जगत की अपूर्णीय क्षति बताया है।